विशिष्ट अधिगमकर्ता/विशिष्ट बालक का अर्थ परिभाषा अंतर प्रकार

विशिष्ट बालक का अर्थ





कक्षा में अधिकतर बालक-बालिकाएं सामान्य अथवा औसत श्रेणी के होते हैं समस्या में प्रायः एक समान होती हैं परंतु सभी विद्यार्थी एक समान नहीं होते हैं कोई तीव्र बुद्धि का होशियार विद्यार्थी होता है जो पढ़ाई गई बातों को शीघ्र समझ लेता है तो कोई मंदबुद्धि का, कुछ शारीरिक रूप से विकलांग, गूंगे, बहरे बच्चे, भी होते हैं कुछ संवेगात्मक रूप से असंतुलित व उग्र स्वभाव वाले बच्चे भी होते हैं कहने का अर्थ यह है कि जो बच्चे सामान्य बच्चों से भिन्न अपनी विशेषताएं प्रकट करते हैं उन्हें विशिष्ट बालक कैसे हैं






 विशिष्ट बालक की परिभाषाएं



जे. ए. वालेंस वालेन के अनुसार- दो श्रेणी के बालकों को विशिष्ट बालकों की कोटि में रखा जाता है एक ऐसे जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से सामान्य बालकों की तुलना में पिछड़े हुए हैं और दूसरे वे जो सामान्य बालकों की तुलना में उच्च बौद्धिक स्तर वाले हो

क्रो और क्रो के अनुसार- ऐसे बालक जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक रूप से सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं उन्हें विशिष्ट या असामान्य बालक कहते हैं इन बालकों को विशेष ध्यान देना पड़ता है जिससे वे अपने विकास की उच्चतम क्षमता तक पहुंच सके

एस. ए. किर्क के अनुसार- एक विशिष्ट बालक वह है जो शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विशेषताओं में किसी सामान्य बालक से उस सीमा तक विचलित होता है जब वह अपनी क्षमताओं के अधिकतम विकास के लिए सहायता, निर्देशन, विद्यालयी कार्यक्रम में संशोधन तथा विशिष्ट शैक्षिक सेवाओं की आवश्यकता रखता है


विशिष्ट और सामान्य बालों को में अंतर


  1. सामान्य बालकों का व्यवहार सामाजिक नियमों एवं प्रतिमानों अनुरूप होता है किंतु अपवादी बालकों का व्यवहार समाज के विपरीत एवं विचित्रताओं से भरा होता है 
  2. सामान्य बालकों की अभिरुचि सामाजिक कार्यों में होती है और वे अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का समुचित रूप से पालन करते हैं अपवादी बालक के सामाजिक कार्यों में अपेक्षित सहयोग प्रदान नहीं करते और सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाहन भली-भांति नहीं कर पाते 
  3. सामान्य बालकों को अपने परिवार, समाज एवं विद्यालयी जीवन के साथ समायोजन करने में कोई कठिनाई नहीं होती है किंतु अपवादी बालकों के सम्मुख सभी स्थलों पर समायोजन की समस्या बनी रहती है 
  4. सामान्य बालक प्रायः संवेगात्मक दृष्टि से संतुलित एवं सामान्य से होते हैं जबकि अपवादी बालक में संवेगात्मक अस्थिरता होती है 
  5. सामान्य बालकों की शैक्षिक उपलब्धि औसत या उससे अधिक होती है जबकि विशिष्ट बालकों की शैक्षिक उपलब्धि औसत से कम अथवा औसत से बहुत अधिक होती है 
  6. सामान्य बालकों की बुद्धि लब्धि 90 से 100 के बीच होती है जबकि विशिष्ट बालकों की बुद्धि एक जैसी नहीं होती है मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की बुद्धि 55 से 69 के बीच, मध्य श्रेणी के मानसिक पिछड़े बालकों की बुद्धि लब्धि 40 से 45 और अधिक मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की बुद्धि लब्धि 25 से 39 के मध्य होती है कुछ विशिष्ट बालकों की बुद्धि लब्धि 150 से भी अधिक होती है
  7. सामान्य बालक औसत शारीरिक गठन वाले एवं स्वस्थ होते हैं जबकि विशिष्ट बालक का गठन तो सामान्य बालकों जैसा होता है किंतु स्वस्थ नहीं होता 
  8. किसी भी प्रकार के शारीरिक श्रम में सामान्य बालक पीछे नहीं हटते और उसे समझदारी के साथ पूरा करते हैं विशिष्ट बालक के शारीरिक श्रम के कार्यों में कठिनाई का अनुभव करते हैं और कार्य को पूरा न कर अधिकतर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं पर कुछ विशिष्ट बालक आवश्यकता से अधिक मेहनती होते हैं







विशिष्ट बालकों के प्रकार


वैज्ञानिकों ने विशिष्ट बालकों को उनकी विशेषता की प्रकृति के आधार पर उनके विभिन्न प्रकार बताएं हैं जो निम्नलिखित हैं

  1.  प्रतिभाशाली बालक (Gifted children)
  2. पिछड़े बालक (Backward children)
  3. मंदबुद्धि बालक (Mentally Retarded)
  4. अधिगम असमर्थ (Learning disabled children)
  5. बालक समस्या (problem child)
  6. बालक शारीरिक रूप से विकलांग बालक (Physically handicapped children)
  7. बाल अपराधी (Delinquent children)

प्रभावशाली बालक


प्रतिभाशाली बालक विशिष्ट बालक होते हैं इनके बौद्धिक क्षमता सर्वोच्च श्रेणी की होती है और बुद्धि लब्धि सामान्य बालकों से अधिक होती है इनकी बुद्धि लब्धि 130 या इससे अधिक होती है इनकी कल्पना शक्ति, स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति और सूझ-बूझ शक्ति बहुत अधिक होती है प्रतिभाशाली बालक शैशवावस्था से ही अपनी प्रखर बुद्धि के कारण पहचान में आ जाते हैं इनमें ऊंची श्रवण क्षमता, कला, गणित अभिनय, संगीत, समझ आदि की विशेष शक्ति होती है प्रतिभाशाली बच्चे किसी भी काम को शीघ्रता से कर लेते हैं 

टरमन एवं ओडेन के अनुसार- प्रतिभाशाली बालक शारीरिक गठन, सामाजिक समायोजन, व्यक्तित्व के गुणों, विद्यालयी उपलब्धि, खेल सूचनाओं एवं रुचियों की विविधता में सामान्य बालको से विशिष्ट होते हैं 

टोरेंस के अनुसार वैसे बालक जिन्हें प्रतिभाशाली एवं प्रवीण बालक कहा जा सकता है जो मानव व्यवहार के किसी क्षेत्र में सर्वोत्तम निष्पादन करता है जो समाज के लिए अति महत्वपूर्ण होता है 

कोलेसनिक के अनुसार प्रतिभाशाली बालक उन सभी बालक को कहा जा सकता है जो अपनी आयु स्तर के बच्चों में विभिन्न योग्यताओं में अधिक होते हैं अधिक निपुण होते हैं तथा उनसे हमारे समाज को समृद्ध बनाते हैं


 पिछड़े बालक


पिछड़े बालक-बालिकाएं वे होते हैं जो अपनी कक्षा में अधिकतर सभी बच्चों से पीछे रहते हैं पिछड़े बालक औसत बालकों की भांति कार्य नहीं कर पाते यह बुद्धि, सीखने की गति आदि में पीछे रहते हैं ऐसे बालक सामान्य बुद्धि के भी हो सकते हैं और मंदबुद्धि के भी। आधुनिक मनोविज्ञान में मंदबुद्धि बालकों को अलग श्रेणी में रखा जाता है अतः शैक्षिक रूप से अपनी आयु वर्ग के छात्रों से पीछे रहने वाले बालकों को ही पिछड़े बालक की श्रेणी में रखेंगे यदि सामान्य बुद्धि वाले बालक की शैक्षिक उपलब्धि अपने आयु के अन्य बालकों से कम है तो उसे पिछड़े बालक की श्रेणी में रखा जाएगा 

सिरिल बर्ट के अनुसार- पिछड़े बालक वह है जो अपने अध्ययन काल में अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थ रहता है जो उसकी आयु के बालक आसानी से कर पाते हैं 

शॉनेल के अनुसार- पिछड़े बालक वह है जो अपने आयु के अन्य लोगों की अपेक्षा उल्लेखनीय शैक्षिक न्यूनता प्रदर्शित करता है 

बर्टन हॉल के अनुसार- पिछड़ा बालक शब्द का प्रयोग सामान्यतः उन बालकों के लिए किया जाता है जिनकी शैक्षणिक उपलब्धि उनकी स्वाभाविक योग्यताओं के स्तर से कम होती है


मंदबुद्धि बालक


मंदबुद्धि बालक वे होते हैं जो बौद्धिक दृष्टि से कमजोर होते हैं तथा इनकी मानसिक क्षमता औसत से कम होती है परंतु  मनोविज्ञान की भाषा में मंदबुद्धि बालक से अभिप्राय न सिर्फ निम्न मानसिक स्तर वाले बालकों से होता है बल्कि इनकी निम्न समायोजन शीलता से भी होता है इस प्रकार मंदबुद्धि बालक वे होते हैं जिनकी निम्न बुद्धि होती है तथा वे वातावरण से समायोजन करने में भी कठिनाई का अनुभव करते हैं ऐसे बालक स्वयं अपना जीवन निर्वाह करने में सक्षम नहीं होते हैं इनकी बुद्धि लब्धि 90 से भी कम होती है बुद्धि लब्धि के आधार पर मंदबुद्धि बालकों को कई प्रकारों में बांटा गया है जैसे- 0 से 25 तक वाले जड़बुद्धि, 25 से 50 तक वाले मूढ, 50 से 70 वाले मूर्ख, 70 से 80 वाले सीमांत या बुद्धिहीन कहलाते हैं 

हालिंगवर्थ के अनुसार- वह व्यक्ति मानस-मंद कहा जाता है जिसकी मौलिक बुद्धि लब्धि 70 अथवा उससे कम होती है तथा जो बौद्धिक दृष्टि से कम से कम बुद्धि वाले व्यक्ति के अंतर्गत हो 

क्रो और क्रो के अनुसार- जिन बालकों की बुद्धि लब्धि 70 से कम होती है मंदबुद्धि बालक कहलाते हैं 

ट्रेडगोल्ड के अनुसार- मानसिक बुद्धि की वह सीमित अवस्था मानस-मंदता है जिसके फलस्वरूप परिपक्व होने पर भी व्यक्ति अपने परिवेश से समायोजित होने अथवा समूह की मांगों को पूरा करने में असमर्थ होता है तथा अस्तित्व का निर्वाह किसी बाह्य सहायता अथवा मार्गदर्शन के बिना नहीं कर पाता 

एस. डी. पोर्टियस के अनुसार- दुर्बल बुद्धि वाले व्यक्ति वे हैं जिनमें स्थाई मान्यता अथवा सीमित मानसिक विकास पाया जाता है यह सीमित मानसिक विकास बचपन से ही होता है ऐसे व्यक्ति अपना काम स्वयं कर पाने में असमर्थ होते हैं







अधिगम असमर्थ बालक 


अधिगम असमर्थ बालक वैसे बालक होते हैं जो शारीरिक या मानसिक किसी भी प्रकार की अक्षमता के कारण पढ़ने या सीखने में असमर्थ होते हैं जैसे बालक में भाषा दोष होना, मानसिक बीमारी या चोट के कारण, ठीक से दिखाई ना देना, पढ़ने तथा लिखने में असमर्थ होना, गणितीय गणना न कर पाना, ऐसी स्थितियों में अधिगम असमर्थता देखी जा सकती है इनकी बुद्धि लब्धि 50 से 70 तक होती है यह अपने दैनिक कार्य आसानी से कर पाते हैं परंतु इनकी सोचने समझने व निर्णय करने की योग्यता बहुत कम होती है इन बालकों में संवेगात्मक अस्थिरता पाई जाती है और यह बालक में अतिक्रियाशीलता का गुण भी पाए जाता है

 समस्या बालक


समस्यात्मक बालक ऐसे बालक होते हैं जिनका व्यवहार समस्या उत्पन्न कर देता है जिन लोगों का व्यवहार सामान्य नहीं होता और वे समायोजन नहीं कर पाते वे समस्यात्मक बालक कहलाते हैं ऐसे बालक परिवार तथा समाज में सदैव कुछ ना कुछ समस्या उत्पन्न करते रहते हैं जैसे- चोरी करना, विद्यालय में अनुशासन भंग करना, तोड़-फोड़ करना, झगड़ा करना आदि शिक्षा मनोविज्ञान में ऐसे व्यक्तित्व वाले बालकों को उचित ढंग से काम करने वाला बनाने के लिए प्रयास किया जाता है 

वैलेंटाइन के अनुसार- समस्यात्मक बालक वे बालक है जिनका व्यवहार अथवा व्यक्तित्व किसी बात में गंभीर रूप से असाधारण होता है 

डॉ. माथुर के अनुसार- समस्या बालक कोई विशेष वर्ग या जाति नहीं है एक प्रकार से सभी बालक एक या दूसरे रूप में अधिक या कम मात्रा में समस्या बालक हैं 

कॉफमैन के अनुसार- समस्या बालक उन बालकों को कहा जाता है जो अपने वातावरण के प्रति सामाजिक रूप से अस्वीकार्य ढंग से या व्यक्तिगत रूप से असंतोषजनक तरीके से स्पष्ट ढंग से लंबे अरसे से अनुक्रिया करते हैं परंतु जिन्हें सामाजिक रूप से स्वीकार्य तथा व्यक्तिगत रूप से संतुष्टि देने वाले व्यवहार को सिखाया जा सकता है

शारीरिक रूप से विकलांग बालक


यह बालक ऐसे बालक होते हैं जो किसी दुर्घटना के फलस्वरूप अपंग हो जाते हैं या जन्मजात अपंग या दृष्टिहीन होते हैं कुछ शारीरिक रूप से तथा कुछ मानसिक रूप से बाधित होते हैं जिसके कारण इन्हें सामाजिक काम काज और समायोजन में कठिनाई होती है ऐसे बालकों को विकलांग बालक कहते हैं 

क्रो और क्रो के अनुसार- एक ऐसा बालक जिसमें शारीरिक दोष होता है जो किसी भी रूप में उसे साधारण कार्यों में भाग लेने से रोकते हैं अथवा सीमित रखते हैं उन्हें विकलांग बालक कहते हैं 

विपिनबिहारी बाजपेई के अनुसार- मानसिक, सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक किसी भी क्षेत्र में हुई विकलांगता जब सीखने-सिखाने की समस्या उत्पन्न कर देता है तो वे विकलांग कहलाते हैं उनके हेतु विशेष पाठ्यक्रम का आयोजन करना होता है 

यू भट्ट के अनुसार- शारीरिक रूप से विकलांग बालकों के लिए विशेष शैक्षणिक पद्धति, विशेष विद्यालय, विशेष कक्ष तथा पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है







 बाल अपराधी 


ऐसे बालक बाल अपराधी कहलाते हैं जो समाज द्वारा निर्मित सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, शैक्षणिक नियमों का उल्लंघन करते हैं हर समाज में सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ नियमों को बनाया जाता है इनका पालन करना समाज में रहने वाले हर एक व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है जब कोई बालक या किशोर इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उससे समाज में हानि पहुंचती है उन बालकों को बाल अपराधी कहते हैं बाल अपराध के अंतर्गत चोरी करना, बलात्कार, हत्या करना, सार्वजनिक संपत्ति को हानि पहुंचाना, सार्वजनिक स्थानों को गंदा करना, नशा करना आदि आते हैं 

हिली के अनुसार- वह बालक जो समाज द्वारा निर्धारित व्यवहार के सामान्य प्रतिमान का अनुसरण नहीं करता बाल अपराधी कहलाता है 

डॉ. सेठानी के अनुसार- बाल अपराध से तात्पर्य किसी स्थान विशेष के नियमों के अनुसार एक निश्चित आयु से कम के बच्चे अथवा किशोर द्वारा किए जाने वाले अपराध है 

पेज के अनुसार- बालकों एवं किशोरों द्वारा किया गया अपराध जो कानून द्वारा निश्चित आयु के अधीन आते हैं बाल अपराध कहलाता है 

सिरिल बर्ट के अनुसार- एक बालक वैधानिक रूप से उस समय बाल अपराधी बन जाता है जब उसके समाज विरोधी कार्य इतने गंभीर हो जाते हैं कि शासन पर नियंत्रण करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करता है अथवा कार्यवाही करने की संभावना अनुभव करता है

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