मूल्यांकन का अर्थ, परिभाषा, अवधारणा, उद्देश्य, प्रकार

मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Evaluation)





शैक्षिक मूल्यांकन छात्रों के मूल्यांकन को व्यक्त करता है जिसमें छात्रों का बौद्धिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास किया जाता है शिक्षा में मूल्यांकन एक नवीन अवधारणा है इसका प्रयोग विद्यालय कार्यक्रम, पाठ्यक्रम, शैक्षिक सामग्री आदि की जांच के लिए किया जाता है
मूल्यांकन प्रचलित परीक्षाओं की तुलना में बहुत अधिक व्यापक तथा उद्देश्यपूर्ण है परीक्षा की तरह मूल्यांकन में एक या दो बार की जांच से कार्य नहीं चलता। मूल्यांकन की प्रक्रिया एक सतत प्रयास है, जिसके द्वारा अध्यापक और विद्यार्थियों दोनों अपने परिश्रम तथा लाभ की मात्रा का मूल्यांकन करते हैं






मूल्यांकन की अवधारणा (Concept of Evaluation)


आधुनिक शैक्षिक विचारों और आवश्यकताओं ने आंकलन, निर्धारण तथा परीक्षा के बदलते मूल्यांकन पद को अस्तित्व प्रदान किया है विकसित देश में इसका उद्भव द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत हो गया था छठे दशक तक इन देशों में मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया था भारत सहित विश्व में अन्य  विकासशील देशों में इस अवधारणा का प्रवेश छठे दशक के उपरांत हुआ विशेष रूप से भारत में एन. सी. ई. आर. टी. के अस्तित्व में आने से आधुनिक शिक्षा की नवीन अवधारणाओं सिद्धांतों, तकनीकों, विधियों को व्यापक प्रसार के अवसर उपलब्ध हुए।

मूल्यांकन की परिभाषाएं (Definition of Evaluation)


सी. ई. बिबे के अनुसार- मूल्यांकन संख्याओं का एक क्रमबंद संकलन एवं व्याख्या है प्रक्रिया के एक भाग के रूप में कार्य की दृष्टि, मूल्य निर्धारण को प्रेरित करता है

जेम्स एम. ली. के शब्दों में― मूल्यांकन विद्यालय, कक्षा कक्ष एवं स्वयं के द्वारा निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के संबंध में छात्र की प्रगति की जांच है

टारगेर्सन एवं एडम्स के शब्दों में- शैक्षिक मूल्यांकन किसी शिक्षण प्रक्रिया अथवा सीखने के अनुभवों की उपादेयता की मात्रा निर्णय करना है

शिक्षा आयोग के अनुसार- मूल्यांकन सतत प्रक्रिया है जो संपूर्ण शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग है और शैक्षिक लक्ष्यों से घनिष्ठ रूप से संबंधित है यह छात्रों की अध्ययन आदतों तथा शिक्षक की शिक्षण विधियों पर अधिक प्रभाव डालता है इस प्रकार यह न केवल शैक्षिक उपलब्धि के मापन में सहायता करता है वरन् उसमें सुधार भी करता है

माइकेलिस के शब्दों में- मूल्यांकन लक्ष्यों की प्राप्ति की सीमा को निर्धारित करने की प्रक्रिया है।






मूल्यांकन के प्रकार (Types of Evaluation)


मूल्यांकन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं

1.नियोजनात्मक मूल्यांकन- विषय-वस्तु सिखाने की प्रारंभिक स्तर पर बालक की स्थिति को जानने के लिए उपयोग किया जाता है विषय वस्तु की शिक्षा देने से पहले शिक्षक छात्र के पूर्व ज्ञान को मालूम करते हैं इस मूल्यांकन की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसके उपयोग से बच्चे की सीखने की कमजोरियों का ज्ञान शिक्षक को आसानी से हो जाता है

2.निर्माणात्मक मूल्यांकन-  किसी विषय में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सतत बनाने के लिए निर्माणात्मक मूल्यांकन किया जाता है शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के विषय में जानकारी अर्जित की जाती है यदि कोई कमी रह जाती है तो पुनः शिक्षण के द्वारा उसे दूर कर लिया जाता है इसमें निर्माणात्मक मूल्यांकन कहते हैं बालक किसी विषय शिक्षण में किसी सीमा तक विषय वस्तु को समझ रहा है वह निर्माणात्मक मूल्यांकन का उद्देश्य है

4.निदानात्मक मूल्यांकन- किसी विषय के निदानात्मक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निदानात्मक मूल्यांकन किए जाते हैं इससे भाषा दोषों तथा सीखने की प्रक्रिया में आने वाली कठिनाइयों का निदान उपचारात्मक शिक्षण द्वारा किया जाता है कभी-कभी विषय वस्तु में सीखने की समस्याओं के निदान खोजने के निश्चित उद्देश्य से विशेष परीक्षण तैयार किए जाते हैं

5.संकलनात्मक मूल्यांकन- यह भी एक अन्य तरह का मूल्यांकन हेतु मूल्यांकन की प्रक्रिया सतत नहीं चलती बल्कि सत्र के अंत में प्रयुक्त होती है इस मूल्यांकन में यह जाने का प्रयास किया जाता है कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया द्वारा छात्रों के कितने लक्ष्य को प्राप्त किया है संकलनात्मक मूल्यांकन में छात्रों की उपलब्धि की जांच के साथ-साथ शिक्षण तथा शिक्षण विधियों की प्रभावशीलता की जांच भी की जाती है।

मूल्यांकन के प्रकारों का विभाजन एक और प्रकार से भी किया जा सकता है

मूल्यांकन के प्रकार


1.लिखित परीक्षाएं- यह परीक्षाएं सामान्यता सभी विद्यालयों में सुचारू रूप से चल रही है

2.मौखिक परीक्षा- मौखिक परीक्षा लेने से लिखित परीक्षाओं की पूर्ति होती है

3.प्रयोगात्मक परीक्षाएं- इसका प्रयोग विज्ञान, चित्रकला आदि में विशिष्ट दृष्टिकोण से होता है इससे लिखित परीक्षाओं तथा मौखिक परीक्षाओं की पूर्ति होती है

4.रिकॉर्ड- बालकों के द्वारा तैयार की गई डायरी द्वारा उनके घर तथा विद्यालयों की सूचनाओं के आधार पर बालक का मूल्यांकन होता है

5.साक्षात्कार- इसके द्वारा बालक की रुचि तथा अभिवृत्ति का ज्ञान होता है।


सतत मूल्यांकन (Continuous Evaluation)


सतत मूल्यांकन उस प्राचीन परंपरा का ही एक अधिक व्यवस्थित एवं औपचारिक रूप है जिसमें शिक्षक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं के द्वारा अपने छात्रों के ज्ञान बोध एवं कौशल का मापन करते हैं तथा उन्हें सुधार हेतु अपेक्षित पृष्ठ पोषण प्रदान  करते हैं सतत मूल्यांकन में वस्तुतः परीक्षा सुधार के दो कार्य पर आधारित है

1.जो व्यक्ति शिक्षण कार्य करें वही व्यक्ति मूल्यांकन का कार्य भी करें
2.मूल्यांकन कार्य सत्र के अंत में ना होकर संपूर्ण सत्र की समयावधि में लगातार होता रहे।

व्यापक मूल्यांकन (Comprehensive Evaluation)


विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की स्थिति का मूल्यांकन करने हेतु उसकी शैक्षिक क्षेत्रों के साथ-साथ सहशैक्षिक क्षेत्रों एवं व्यक्तिगत सामाजिक गुणों का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है सहशैक्षिक क्षेत्रों तथा व्यक्तिगत सामाजिक गुणों का मूल्यांकन व्यापक मूल्यांकन के अंतर्गत आता है इसके महत्व को दृष्टिगत रखते हुए शिक्षा में इसे अनिवार्य कर दिया गया है सहशैक्षिक क्षेत्रों के अंतर्गत साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, खेलकूद, योग आदि सम्मिलित है इसी प्रकार व्यक्तिगत और सामाजिक गुणों के अंतर्गत नियमितता, समयबद्धता, सहयोग, स्वच्छता, ईमानदारी, नेतृत्व की क्षमता, कर्त्तव्यनिष्ठा, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता और अभिवृत्ति  आदि को सम्मिलित किया गया है।





मापन (Measurement)


मापन एक किया है अथवा मापने के प्रविधि है इसमें जिसका मापन किया जाता है उस पर कोई मूल्य नहीं रखा जाता इसीलिए यह एक सदाचार निरपेक्ष है किसी भी वस्तु की भौतिक विशेषताएं, जैसे― लंबाई, मात्रा, आकार का मापन उसके किसी मूल्य को नहीं दिखाते हैं वह मात्रा गुण अथवा विशेषताएं हैं जिनका अध्ययन किया गया है इस प्रकार मनोवैज्ञानिक विशेषताओं, जैसे― किसी भी घटना के प्रति अभिवृत्ति आदि मूल्य नहीं दिखाते
मूल्यांकन पूर्ण रूप से मापन के विपरीत है जिसमें प्रमुख विशेषताएं हैं, जिनका अध्ययन किया गया है उनका चयन शैक्षिक मूल्य मूल्यों के कारण किया है, उद्देश्य शैक्षिक मूल्य है जो इस बात को परिभाषित करते हैं कि हम शैक्षिक अनुभव के आधार पर उनमें क्या विकसित करना चाहते हैं उनमें उपलब्धि, जो सीखा है उसके प्रति अभिवृत्ति, स्व-सम्मान आदि भी सम्मिलित होते हैं
इसी प्रकार मापन वह प्रविधि है, जिसमें किसी वस्तु अथवा घटना के मापन की इकाई निर्धारित की जाती है, इसमें उसकी विशिष्टता स्थापित की जा सके। उदाहरणार्थ- पेड़ की लंबाई 2 मीटर है। इस उदाहरण में आयाम का मापन किया गया है वह ऊंचाई है और इकाई मीटर है।

मूल्यांकन एवं मापन में अंतर (Differences in Evaluation and Measurement)


मूल्यांकन एक व्यापक संप्रत्यय हैं। मूल्यांकन में परिणामात्मक तथा गुणात्मक दोनों का वर्णन होता है इसमें मूल्य निर्णय भी होते हैं। मापन में यह नहीं होता। मापन किसी भी घटना कहा मात्र परिमाणात्मक वर्णन करता है। इसमें गुणात्मक वर्णन नहीं होता।

मूल्यांकन के सोपान (Steps of Evaluation)


मूल्यांकन के सोपान निम्नलिखित हैं

1.उद्देश्य का निर्धारण- सर्वप्रथम शिक्षक विषय वस्तु के लिए उद्देश्य को सूत्रबद्ध करता है
2.उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षण क्रियाओं का निर्धारण- शिक्षक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रभावी अधिगम स्थितियों के सृजन के लिए उपर्युक्त विधि, तकनीकों, कौशलों सामग्रियों का चयन करता है तथा इसकी सहायता से प्रभावी व्यूह-निर्माण करता है
3.स्थिति का ज्ञान- उन स्थितियों की पहचान करना जिनमें छात्र अधिगम विषय वस्तु का उपयोग कर सकता है
4.मूल्यांकन के उपकरणों का चयन- शिक्षक उन उपकरणों का चयन करता है, जो वांछित उद्देश्यों के मापन में सहायक हों इसके लिए शिक्षक स्वनिर्मित परीक्षणों का उपयोग करता है
5.उपकरणों का प्रशासन- शैक्षिक उद्देश्यों के आधार पर शैक्षिक उपलब्धि के मापन के लिए उपकरणों का प्रशासन करना।
6.परिणामों की व्याख्या- परीक्षण प्रशासन के पश्चात प्राप्त अंकों का कोई महत्व नहीं है इन अंको की व्याख्या तथा विवेचन ही छात्र के संबंध को स्पष्टीकरण करते हैं
7.मूल्यांकन परिणामों का उपयोग- मूल्यांकन के परिणामों का उपयोग शिक्षण प्रक्रिया में सुधार के लिए करना चाहिए।


मूल्यांकन के उद्देश्य (Purposes of Evaluation)


  1. मूल्यांकन द्वारा छात्रों की उपलब्धि की सूचना मिलती है।
  2. मूल्यांकन के द्वारा छात्रों को उनके अधिगम की प्रतिपुष्टि होती है जिससे वह अधिगम में सुधार ला सके।
  3. मूल्यांकन द्वारा शिक्षक को शिक्षण के में मार्गदर्शन होता है। 
  4. मूल्यांकन द्वारा प्राप्त सूचना से छात्रों का श्रेणीकरण (Grading) संभव है।
  5. मूल्यांकन द्वारा निदानात्मक एवं उपचारित शिक्षण संभव है।
  6. मूल्यांकन से शैक्षिक उद्देश्यों, शिक्षण विधियों तथा निर्धारित पाठ्यचर्या के प्रभाव को निर्धारित किया जा सकता है।

मूल्यांकन के कार्य (Work Of Evaluation)


मूल्यांकन के कार्य निम्नलिखित हैं 

  1. पाठ्यक्रम एवं कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का निश्चय करने के लिए।
  2. शैक्षणिक उद्देश्यों का चयन और उनका मूल्यांकन करना।
  3. शैक्षणिक उद्देश्यों का स्पष्टीकरण।
  4. शिक्षण प्रक्रिया में सुधार।
  5. सीखने के प्रभावशाली अनुभवों का चयन।
  6. निर्देशन में सुधार।
  7. प्रभावशाली सीखने को प्रेरित करना।
  8. शिक्षकों, शिक्षण-विधियों, पाठ्यवस्तु, पुस्तकों आदि की उपयुक्तता की जांच करना।
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