पाठ योजना का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, आवश्यकता, महत्व, कारक
पाठ नियोजन का अर्थ
मुख्यतः शिक्षण कार्य करना एक कला है कुशल शिक्षक वही है जो इस कला में दक्ष हो शिक्षक की सफलता उत्तम शिक्षा पर निर्भर करती है श्रेष्ठ शिक्षण समुचित पाठ योजना के बारे के बिना संभव नहीं है शिक्षक को उत्तम शिक्षण के लिए पढ़ाने से पूर्व पाठ योजना बनानी चाहिए
वैज्ञानिक रूप से की गई क्रमबद्ध तैयारी को ही पाठ योजना कहते हैं बिना पाठ योजना के योग्यतम शिक्षण कक्षा में असफल हो जाते हैं पाठ योजना के रूप में तो विभिन्न विद्वानों में मतभेद हो सकता है किंतु इसकी आवश्यकता पर दो मत नहीं हो सकते पाठ योजना में बालक के अर्जित ज्ञान, नया ज्ञान, प्रश्न विधि, साधन, सामग्री आदि का वर्णन होता है वास्तव में पाठ योजना उस कथन का शीर्षक कही जा सकती है जो इसका विवरण देता है कि शिक्षक को क्या-क्या उपलब्धियां प्राप्त करनी है तथा किन-किन साधनों द्वारा इन्हें कक्षाओं की क्रियाओं के फलस्वरूप 1 घंटे के अंदर प्राप्त किया जा सकता है
पाठ योजना की परिभाषा
सिम्पसम के अनुसार- पाठ योजना में शिक्षक अपनी विषय-सामग्री और छात्रों के बारे में जो कुछ भी जानता है उन बातों का प्रयोग सुव्यवस्थित ढंग से करता है
लेण्डन के अनुसार- हम पाठ योजना को समस्त आवश्यक बिंदुओं से युक्त, चाहे वे विषय-वस्तु अथवा विधि के हो, कागज पर स्पष्ट रूप से अंकित पाठ की रूपरेखा के रूप में परिभाषित कर सकते हैं
बाइनिंग एवं बाइनिंग के अनुसार- दैनिक पाठ नियोजन में लक्ष्यों को परिभाषित करना, पाठ्य पुस्तक का चयन, व्यवस्थित करना और विधि एवं प्रक्रिया को निर्धारित करना समाहित है
पाठ योजना के प्रकार/रूप
1.लिखित एवं लिखित पाठ योजना- जो शिक्षक प्रशिक्षित होते हैं वह दैनिक शिक्षण के लिए पाठ का नियोजन अपने मस्तिष्क में कर लेते हैं और कक्षा में अपने शिक्षण को पूर्ण करते हैं अधिकतर शिक्षक अपने शिक्षण में लिखित पाठ नियोजन का उपयोग करते हैं जबकि प्रशिक्षण समस्याओं में अलिखित पाठ नियोजन पर अधिक बल दिया जाता है छात्राध्यापक पाठ नियोजन लिखित रूप से करते हैं
2.विस्तृत एवं सूक्ष्म पाठ नियोजन- गणित और विज्ञान शिक्षण में विस्तृत पाठ नियोजन पर आधारित शिक्षण अभ्यास कराया जा सकता है 35 से 40 मिनट के लिए कक्षा शिक्षण हेतु पाठ नियोजन किया जाता है विस्तृत पाठ नियोजन से पहले सूक्ष्म पाठ नियोजन किया जाता है सूक्ष्म पाठ नियोजन में 5 से 10 मिनट तक का अभ्यास कराया जाता है इसमें शिक्षण कौशल की प्राप्ति पर अधिक बल दिया जाता है
3.दैनिक एवं वार्षिक पाठ नियोजन- गणित शिक्षण में शिक्षण अभ्यास करने के लिए दैनिक नियोजन किया जाता है 35 से 40 मिनट के लिए कक्षा में शिक्षण अभ्यास कराया जाता है
शिक्षण अभ्यास की प्रायोगिक परीक्षा के लिए वार्षिक पाठ नियोजन किया जाता है इसमें 35 से 40 मिनट के लिए वास्तविक कक्षा शिक्षण हेतु पाठ योजना तैयार की जाती है
4.इकाई पाठ योजना- किसी बड़े पाठ को छोटे-छोटे इकाइयों में बाँटकर छात्रों को समझने के लिए पाठ नियोजन किया जाता है
पाठ योजना की आवश्यकता
- पाठ योजना शिक्षक को नवीन अधिगम क्रियाएं विकसित करने का अवसर देती है
- पाठ नियोजन करने से छात्रों को विषय से संबंधित सिद्धांत समस्याएं सरलता पूर्वक समझ में आ जाती हैं
- पाठ नियोजन में शिक्षक को शिक्षण के लक्ष्य की जानकारी होनी चाहिए
- पाठ योजना शिक्षक को शिक्षण सामग्री का सही उपयोग छात्रों में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का विचार एवं उद्देश्य आधारित शिक्षक अधिगम का अवसर देती है
- उन छात्रों की रुचियों, क्षमताओं, विभिन्नताओं, आवश्यकताओं ज्ञान भी शिक्षक को कर लेना चाहिए
- पाठ योजना शिक्षक को आवश्यकतानुसार समय विभाजन और प्रयोग के लिए अवसर देती है
- पाठ योजना से विषय वस्तु का चयन, क्रमानुसार सुव्यवस्थित एवं प्रभावशाली संगठन होता है
- पाठ योजना से छात्रों को पूर्व ज्ञान होता है जिस पर आगामी शिक्षण आधारित होता है जिससे छात्र नवीन ज्ञान का निर्माण करते हैं
- पाठ योजना में विशिष्ट उद्देश्य लेखन कक्षा शिक्षण को दिशा देते हैं
पाठ योजना का महत्व
- पाठ योजना के द्वारा एक उत्तम शिक्षक का निर्माण होता है जो छात्रों को उत्तम शिक्षण प्रदान करता है
- पाठ योजना कर लेने से शिक्षक कक्षा कक्ष में अनुशासन की समस्या को बड़ी आसानी से दूर कर सकता है
- पाठ योजना कर लेने से शिक्षक के समय तथा शक्ति की बचत होती है
- शिक्षण कार्य के लिए आवश्यक सहायक सामग्री शिक्षक आसानी से व्यवस्थित कर लेते हैं
- पाठ नियोजन के द्वारा शिक्षण कार्य को प्रभावपूर्ण एवं रोचक बनाया जा सकता है
- पाठ नियोजन कर लेने से शिक्षक कक्षा-कक्ष में पूरे आत्मविश्वास से शिक्षा कार्य करता है
- पाठ नियोजन से शिक्षण की विषय वस्तु नियोजित एवं व्यवस्थित होती है
पाठ योजना प्रभावित करने वाले कारक
पाठ योजना को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारण निम्न है
- विद्यालय की प्रकृति- नगरीय अथवा ग्रामीण
- विद्यालय एवं कक्षा का सामाजिक पर्यावरण
- कक्षा में छात्रों की पृष्ठभूमि एवं उनकी संख्या
- शिक्षक द्वारा निश्चित छात्रों का पूर्व ज्ञान
- छात्रों की औसतन आयु
- पाठ के विशिष्ट उद्देश्य
- विषय की प्रकृति
- चयनित एवं सुव्यवस्थित विषय वस्तु
- सहायक शिक्षण सामग्री की उपलब्धता
- शिक्षक का दर्शन एवं व्यक्तित्व।
UPI ID:- achalup41-1@oksbi
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