शिक्षण की विधियां
शिक्षण की विधियां
सहभागी/सहभागी विधि (participatory/co-operative Method)
परंपरागत शिक्षण प्रणाली में अधिगम अर्जन हेतु अधिगम के जिस पथ का अनुसरण करने की विद्यार्थियों से अपेक्षा की जाती है वह पूरी तरह से व्यक्तिगत उपलब्धियों को ही आगे बढ़ाने वाला होता है इसमें सभी विद्यार्थियों से यह आशा किया जाता है कि वह एक दूसरे से पारंपरिक प्रतिस्पर्धा करते हुए अधिक से अधिक अच्छे अंक, डिवीजन, प्रतिशत प्राप्त करने का प्रयत्न करें इस परिस्थिति में विद्यार्थियों से यह भी आशा किया जाता है कि वे अपने प्रयत्नों से प्राप्त सूचना, अधिगम अनुभव आदि का परस्पर आदान प्रदान करते रहे अधिगम में जहां प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता का बोलबाला हो वहां पर सहकारिता तथा सहयोग की बात नहीं आ सकती क्योंकि अंत में सबकी अपनी उपलब्धि तथा सहयोग का ही मूल्यांकन होता है
इस स्थिति से बाहर आने में सहकारी अधिगम उपागम बहुत मदद कर सकता है जहां व्यक्तिक और प्रतिस्पर्धात्मक अधिगम के स्थान पर सहकारी और सहभागी ढंग से अधिगम के अर्जन की बात विद्यार्थियों के सामने रखी जाती है और शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों की भूमिका और उत्तरदायित्वों में सार्थक ढंग से उचित बदलाव लाया जा सकता है
सहभागी विधि का अर्थ- सहभागी विधि को एक ऐसी शिक्षण अधिगम व्यूह रचना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक कक्षा में विद्यार्थी अपने आपको छोटे-छोटे विभिन्न समूहों में बाँटकर प्रतिस्पर्धा रहित अधिगम वातावरण में सहकारी ढंग से परस्पर मिलजुलकर विषय विशेष से संबंधित पाठ्य सामग्री के अधिगम करने का प्रयास करते हैं
विशेषताएं
- इसकी यह मान्यता है कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थियों को मिलजुलकर सहकारी ढंग से काम करने का मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उनके भविष्य में एक सहयोगी तथा उत्तरदाई सामाजिक जीवन जीने के लिए उचित रूप से तैयार किया जा सकता है
- इसकी मान्यता है कि विद्यार्थी तभी अच्छी प्रकार सीखते हैं जबकि वे सीखने की प्रक्रिया से पूरी तरह से जुड़ कर एक दूसरे से सहयोग करते हुए अधिगम पथ पर आगे बढ़े
- इसका विश्वास है कि सही और वास्तविक अधिगम अपने पूर्ण रूप में तभी संभव है जब कि वह समूह के अंतर्गत सहयोग पूर्ण ढंग से मिलजुल कर अर्जित किया जाए
- यह प्रणाली यह विश्वास करके चलती है कि शिक्षक को एक सहयोगी, मित्र तथा हितैषी मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हुए विद्यार्थियों को इस प्रकार की अधिगम सुविधाएं देने का कार्य करना चाहिए
- यह इस बात में विश्वास करती है कि विद्यार्थी तभी अच्छी तरह सीखते हैं जबकि उन्हें इस प्रतिस्पर्धा रहित, चिंतनमुक्त सहयोगी वातावरण में सीखने को स्वतंत्र और सहयोग पूर्ण अधिगम अवसरों की प्राप्ति होती रहे
- यह विद्यार्थियों से पहल करने और अपना अधिगम मार्ग स्वयं चुनने की अपेक्षा करती है उन्हें शिक्षक द्वारा तय मार्ग पर चलने को मजबूर नहीं करती
- सहकारी अधिगम प्रणाली शिक्षण अधिगम को विषय एवं अध्यापक केंद्रित बनाने पर ही जोर देते हैं
सीमाएं
- अभिभावकों को डर रहता है कि इस प्रणाली को अपनाने से उनके बच्चे का व्यक्तित्व विकास रुक जाएगा और वे प्रतिस्पर्धा और एक दूसरे से आगे निकलने वाली दुनिया में व्यर्थ ही पीछे रह जाएंगे
- अधिकारी और प्रशासक वर्ग को सहकारी अधिगम प्रणाली की विचारधारा और कार्यप्रणाली का कोई वांछित ज्ञान नहीं होने से वे इसका अज्ञानतावश विरोध करते हैं
- उन्हें यह डर रहता है कि सहकारी अधिगम के बहाने अध्यापक अपने शिक्षण दायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार ना कर मौज मस्ती करते रहेंगे
- विद्यार्थियों को ना तो ऐसा कोई पिछली कक्षाओं का पूर्व अनुभव है और ना ही उन्हें कोई ऐसा प्रशिक्षण दिया गया है जिससे वे स्वयं के प्रयत्नों से मिलजुल कर अधिगम अनुभव कर सकें
- विद्यार्थी यह अनुभव करते हैं कि विषयों के शिक्षण अधिगम के लिए व्याख्यान विधि से अच्छी कोई विधि नहीं है
- सहकारी अधिगम प्रणाली के उपयोग हेतु बिल्कुल अलग तरह की ऐसी मूल्यांकन तकनीकों की जरूरत पड़ेगी अध्यापकों को इस नए मूल्यांकन तरीके का ज्ञान नहीं है
- शिक्षकों में इतना आत्मविश्वास ही नहीं है कि वे शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में किसी नई प्रणाली को प्रयोग में लाकर देखें
- अध्यापक इस बात से डरते हैं कि विद्यार्थियों को मिलजुल कर स्वयं अध्ययन करने की आजादी देकर भी अपना अधिकार और वर्चस्व को देंगे एक तरह से वे अपनी भूमिका सबसे ऊपर की ही रखना चाहते हैं मात्र सुविधा प्रदान करने वाले दर्शक कि नहीं
- शिक्षकों ने स्वयं अपने विद्यालय या महाविद्यालय स्तर पर सहकारी अधिगम प्रणाली से शिक्षा प्राप्त नहीं की है और इसीलिए वे स्वयं इस प्रकार के नए प्रयोग के लिए तैयार नहीं है
प्रयोजना/योजना विधि (Project Method)
प्रोजेक्ट प्रणाली के प्रवर्तक का श्रेय जॉन डीवी को है शिक्षा जगत में अपने प्रयोग के आधार पर उन्होंने इस प्रणाली को जन्म दिया और उनके सहयोगी एवं शिष्य किलपैट्रिक (W. H. Kilpatric) ने अपने प्रयोग द्वारा उसे और अधिक स्पष्ट कर दिया इसी कारण अनेक विद्वानों ने प्रोजेक्ट प्रणाली के जन्म का श्रेय किलपैट्रिक को दिया है किलपैट्रिक ने इस प्रणाली को इसलिए अपनाया क्योंकि उसके अनुसार तात्कालिक शिक्षण पद्धतियां नीरस थी बालकों को जो शिक्षा प्रदान की जाती थी वह दैनिक जीवन से कोई संबंध नहीं था शिक्षा में बालकों की रुचि, प्रवृत्तियों, आवश्यकता का ध्यान नहीं रखा जाता था और शिक्षा में सामाजिक दृष्टिकोण की उपेक्षा की जाती थी
प्रोजेक्ट का अर्थ
किलपैट्रिक का विचार है कि हम दो प्रकार के कार्य करते हैं 1.पहले से योजना बनाकर 2.बिना किसी योजना के। जिन कार्यों को योजना बनाकर संपन्न किया जाता है अभी अधिक सुचारू रूप से होते हैं योजना वाले कार्य भी दो प्रकार के होते हैं― पहले प्रकार के कार्य वे कार्य होते हैं जिनका हमारे जीवन की किसी समस्या को हल करने से कोई संबंध नहीं होता और दूसरे प्रकार के कार्य वे कार्य होते हैं जिनका संबंध हमारे जीवन की किसी समस्या को हल करने से होता है वह कार्य को हमारे जीवन की किसी समस्या से संबंधित होते हैं उनमें हमारी रुचि अधिक होती है और हम उन्हें शीघ्रता पूर्वक एवं पूरी तल्लीनता से करते हैं इसका एकमात्र कारण यही है कि योजना का जीवन की वास्तविक समस्या से संबंध जोड़ दिया गया है
परिभाषाएं
किलपैट्रिक- प्रोजेक्ट वह सहृदय उद्देश्य पूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है
बेलार्ड- प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक भाग है जो कि शिक्षालय में प्रयोग किया जाता है
स्टीवेंसन- प्रोजेक्ट एक समस्या मूलक कार्य है जो स्वाभाविक परिस्थिति में पूरा किया जाए
योजना या प्रोजेक्ट के प्रकार
प्रोजेक्ट के निम्न प्रकार होते हैं
1.प्रोजेक्ट के सामान्य प्रकार- सामान्य प्रकार के प्रोजेक्ट दो तरह के होते हैं
- सरल प्रोजेक्ट- इस प्रकार के प्रोजेक्ट में एक ही तरह का कार्य संपन्न होता है जैसे- रोटी पकाना
- बहुमुखी प्रोजेक्ट- इस प्रकार के प्रोजेक्ट में विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों का ज्ञान होता है उदाहरण के लिए नाटक, खेलना, पार्सल भेजना आदि
- साहित्य संबंधित प्रोजेक्ट
- ऐतिहासिक एवं जीवन संबंधी प्रोजेक्ट्स
- विज्ञान संबंधित प्रोजेक्ट
- हस्त कौशल संबंधी प्रोजेक्ट
- औद्योगिक एवं व्यवहारिक प्रोजेक्ट
विशेषताएं
- प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है
- विभिन्न विषयों में सहयोग स्थापित होता है
- यह स्वयं करके सीखने पर आधारित है
- यह मनोवैज्ञानिक विधि है
- छात्रों में धैर्य, संतोष तथा आत्म संतुष्टि के भाव जागृत होते हैं
- छात्र अपने उत्तरदायित्व को समझता है एवं पूरा करता है
- इसमें शारीरिक मानसिक दोनों प्रकार के ही कार्य छात्रों में छात्रों को करने पड़ते हैं फलस्वरुप श्रम के प्रति निष्ठा उसमें जागृत होती है
- छात्र पूरी योजना में सक्रिय रहता है
- छात्र स्वयं चिंतन करके पढ़ते हैं और कार्य करते हैं
दोष/सीमाएँ
- वास्तविक सिद्धांतों का सही ज्ञान नहीं हो पाता
- अनुभवहीन शिक्षकों के लिए कठिनाई पैदा करने वाली है
- अधिक समय और धन व्यय होता है
- शिक्षक को अधिक परिश्रम करना पड़ता है
- निश्चित पाठ्यक्रम इस नीति से पूरा करना कठिन है
- ज्ञान क्रमबद्ध तरीके से प्राप्त नहीं होता हैं
- यह कक्षा शिक्षण में अधिक समय लेती है
निर्माणात्मक विधि
निर्माणात्मक विधि के जनक जीन पियाजे (Jean Piaget) माने जाते हैं जिनके अनुसार समायोजन तथा आत्मसातीकरण के द्वारा नवीन अनुभव प्राप्त करके ज्ञान की अनुभूति करता है जब व्यक्ति आत्मसात करता है तो वह प्राप्त नवीन अनुभव करके मस्तिष्क के पूर्व निर्धारित ज्ञान के सांचे में जुड़ता जाता है इस सिद्धांत के अनुसार जब व्यक्ति समायोजन करता है तो वह पूर्व निर्धारित विचारों के संगठन को नवीन परिस्थितियों में स्थापित करने का प्रयास करता है इस प्रक्रिया के द्वारा वह नवीन स्थितियों में सहज हो पाता है यह विधि विद्यार्थियों की सहभागिता को परंपरागत से अच्छा करने पर बल देती है
विशेषताएं
- यह परंपरागत विधि की तुलना में अधिक उपयोगी हैं
- यह विधि समस्या पर आधारित होती है
- यह प्रौढ़ शिक्षा एवं बच्चों की शिक्षा हेतु अत्यंत उपयोगी है
- अधिगम हेतु इसके द्वारा एक सुदृढ़ ढांचा दिया जा सकता है
- यह अधिगमकर्ता के समक्ष नई चुनौतियां प्रस्तुत करती है
- विषय वस्तु को तार्किक क्रम में रखा जाता है
- पाठ्यक्रम का विशिष्ट स्थान होता है
- शिक्षण के द्वारा अधिगम करने का प्रयास किया जाता है
- विभिन्न कौशलों एवं पृष्ठभूमि से आए हुए विभिन्न अधिगमकर्ताओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करती है
- यह विद्यार्थी शिक्षक तथा पाठ्यक्रम के मध्य सक्रिय अंतः क्रिया कराती है
- अधिगम की प्रकृति सक्रिय एवं सामाजिक होती है
- शिक्षक की भूमिका अधिगम वातावरण तैयार करने एवं अधिगम करने में सहयोग करता की होती है
- अधिगमकर्ता को अधिगम हेतु प्रोत्साहन मिलता है
- अधिगमकर्ता की जिम्मेदारी, अधिगम हेतु बढ़ जाती है
- इसमें अधिगमकर्ता की पृष्ठभूमि एवं संस्कृति का भी प्रभाव पड़ता है
- यह अधिगमकर्ता को अधिगम हेतु उचित वातावरण प्रदान करती है
दोष/सीमाएं
- प्रत्येक बुद्धि लब्धि के अधिगमकर्ताओं हेतु यह उपयुक्त नहीं है
- इसके प्रयोग से समय अधिक लगता है
- इसके द्वारा प्रत्येक प्रकरण नहीं पढ़ाया जा सकता है
- इसको प्रत्येक आयु वर्ग के अनुसार अलग-अलग संचालित करना पड़ता है
- यह कई बार अधिगमकर्ताओं को गलत दिशा में आगे ले जाती है
समस्या समाधान विधि
समस्या पद्धति पूर्णतया नवीन है सुकरात के अध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया था आधुनिक युग में विचारशील शिक्षकों तथा विचारकों ने इसको एक शैक्षिक साधन के रूप में स्वीकार किया है
समस्या समाधान विधि का अर्थ
समस्या समाधान एक शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक तथा छात्र किसी महत्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाइयों के समाधान एवं स्पष्टीकरण के लिए सचेत होकर पूर्ण संलग्नता के साथ प्रयास करते रहते हैं समस्या पद्धति छात्रों को स्वयं सीखने के लिए तत्पर बनाती है ऐसा वे अपनी स्वयं शक्तियों का प्रयोग करके करते हैं
चिंतन एवं तर्क ही समस्या का समाधान है जब व्यक्ति किसी लक्ष्य पर पहुंचने के लिए प्रयासरत होता है परंतु प्रारंभिक प्रयासों में उसे सफलता नहीं मिलती तब व्यक्ति के लिए लक्ष्य तक पहुंचना है कि एक समस्या हो जाती है जब व्यक्ति मार्ग में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करके अपने लक्ष्य पर पहुंच जाता है तब कहा जाता है कि उसने अपनी समस्या का समाधान कर लिया
परिभाषा
गुड के अनुसार- समस्या पद्धति निर्देश की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौतीपूर्ण स्थितियों की सूचना द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है जिनका समाधान करना आवश्यक है
स्किनर के अनुसार- समस्या समाधान लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक प्रतीत होने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है
विशेषताएं
- समस्या समाधान का व्यक्तित्व के विकास में विशेष महत्व है
- यह छात्रों में उदारता एवं सहिष्णुता के गुणों को विकसित करती है
- यह छात्रों को मुद्रित प्रश्नों का मूल्यांकन करने योग्य बनाती है
- यह छात्रों की प्रवृत्ति तथा विद्यालय भावना दोनों को प्रभावित करती है
- यह छात्रों को समस्याओं के समाधान के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करती है
- यह रुचि को जागृत करती है इस कारण शैक्षिक प्रक्रिया में सहायक है
- यह मानसिक कुशलता, धारणाओं, व्यक्तित्व तथा आदर्शों के विकास में सहायक है
- यह जीवन के अनुरूप है
सीमाएँ/दोष
- इसके द्वारा शिक्षण करने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है क्योंकि इसमें छात्रों की प्रगति बहुत धीमी गति से होती है
- शिक्षक के लिए प्रत्येक विषय में वास्तविक समस्याओं को प्रतिपादित करना कठिन है
- साथ ही इसके द्वारा सभी प्रकरणों को नहीं पढ़ाया जा सकता
- यदि इस पद्धति का प्रयोग बार-बार किया जाए तो इसमें अरुचि उत्पन्न होने की अधिक संभावना है
- सभी विषयों को समस्याओं के आधार पर संगठित करना हानिकारक होता है
- यह पद्धति छात्रों को विषय की व्यापक समझदारी प्रदान नहीं कर पाती
UPI ID:- achalup41-1@oksbi
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