यूक्लिड, ब्रह्मगुप्त, लीलावती का गणित में योगदान
यूक्लिड (Euclid)
यूक्लिड के जन्म और मृत्यु का ठीक-ठीक पता नहीं है परंतु इतना अवश्य पता है कि उनका जन्म 300 ई. पूर्व अलेक्जेंड्रिया (Alexandria) में हुआ था इनकी प्रारंभिक शिक्षा एन्थेस में हुई। टॉलेमी प्रथम (Ptolemy I) के राज्यकाल में इन्होंने अलेक्जेंड्रिया में एक स्कूल खोला ऐसा जहां जाता है कि एक बार इनके एक शिष्य ने ज्यामिति का प्रथम साध्य पढ़ने के बाद कहा कि इसके सीखने से क्या मिलेगा यूक्लिड ने अपने नौकर से कहा कि इसे 6 पैनी(पैसे) दे दो क्योंकि यह प्रत्येक बात में लाभ ही जाता है
यूक्लिड का सबसे विख्यात ग्रंथ एलिमेंट्स (Element) है जिसके 1882 ई. से अब तक 1000 से अधिक संस्करण हो चुके हैं इस ग्रंथ में निम्नलिखित विषय थे
- सर्वांगसमता (Congruency) और समानता (Parallelism)
- बीजगणितीय सर्वसमिकायें और क्षेत्रफल (Algebraic Identity and Area)
- वृत्त (Circle)
- अंतर्गत और परिगत बहुभुज (Inscribed and Circumscribed polygons)
- समानुपात (proportion)
- बहुभुजाओं की समरूपता (Similarity of Polygons)
- अंकगणित (Arithmetic)
- असुमेय राशियां (Irrational Number)
- ठोस ज्यामिति (Solid Geometry)
1.डाटा (Data)- इसमें 94 साध्य दिए गए हैं इन साध्यों में किसी आकृति के कुछ अंग (Elements) ज्ञात होने पर शेष अंग ज्ञात करने की विधि का उल्लेख है
2.आकृतियों के विभाजन पर एक पुस्तक- इस पुस्तक का विषय है कि यदि कोई आकृति त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत आदि दी हुई हो तो ऐसे दो भाग में किस प्रकार विभाजित किया जाए कि उन दोनों भागों के क्षेत्रफल में एक निर्दिष्ट/उल्लेखित (Given) अनुपात हो
3.स्यूडेरिया (Pseudaria)- इस पुस्तक में यह विषय वर्णित किया गया है कि ज्यामिति के अध्ययन में विद्यार्थी आमतौर पर कौन-कौन सी गलती करते हैं
4.शांकव (Conic)- यह पुस्तक जिल्दों में है
5.पोरिज्मस (Porisms)- यहां ग्रंथ ज्यामिति विषय वर्णित किया गया है
6.तल-बिंदुपथ (Surface Loci)- यह ग्रंथ दो भागों में वर्णित है।
यूक्लिड की अन्य कृतियाँ ज्योतिष, संगीत, चाक्षुषी (Optics) आदि पर है
ब्रह्मगुप्त (Brahamgupta)
ब्रह्मगुप्त गणित ज्योतिष के बड़े आचार्य हो गए हैं प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य ने भी इन्हें 'गणित चक्र चूड़ामणि' कहा है
इनका पंजाब के अंतर्गत भिलनालका नामक स्थान पर सन 598 ईसवी में हुआ था इनके पिता का नाम विष्णु गुप्ता था यह चापवंशी राजा के यहां रहते थे परंतु स्मिथ के अनुसार यह उज्जैन नगरी में रहा करते थे वहीं पर उन्होंने कार्य किया उन्होंने सन 628 ई. में 'ब्रह्म स्फुट सिद्धांत' और सन 665 में खण्ड साधक को बनाया था इन्होंने 'ध्यान ग्रहोपदेश' नामक ग्रंथ भी लिखा था ब्रह्म स्फुट सिद्धांत में 21 अध्याय हैं जिनमें गणित अध्याय तथा कुटखाध्यका उल्लेखनीय है गणित अध्याय का उल्लेख गिनने तथा कुटखाध्यका में बीजगणित का उल्लेख किया है इन्होंने अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित पर प्रकाश डाला है और यह π का मान मानकर चले हैं वर्गीकरण की विधि का वर्णन सर्वप्रथम ब्रह्मगुप्त ने ही किया था तथा विलोम विधि का वर्णन बड़ी अच्छी तरह से किया है गणित अध्याय शुद्ध गणित में ही है इसमें जोड़ना, घटाना आदि है अंगड़िया परिपाटी गणित में है श्रेणी व्यवहार, क्षेत्र व्यवहार, त्रिभुज, चतुर्भुज आदि के क्षेत्रफल जानने की रीति, चित्र व्यवहार (ढाल-खाई आदि के घनफल जानने की रीति) त्रैवचिक व्यवहार, राशि व्यवहार (अन्न के ढेर का परिणाम जानने की रीति), छाया व्यवहार (इसमें दोष, संबंध तथा उसके स्तंभ की अनेक रीति) आदि 24 प्रकार के अध्याय इसी के अंतर्गत हैं
लीलावती (Leelavati)
लीलावती भास्कराचार्य की पुत्री थी लीलावती के जीवन के संबंध में एक रोचक कथा है ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि लीलावती को कभी भी विवाह नहीं करना चाहिए परंतु भास्कराचार्य ने गणनाओ के आधार पर लीलावती के विवाह के लिए एक शुभ मुहूर्त खोज निकाला समय सूचना के लिए नाड़िका यंत्र स्थिर कर दिया। यह तांबे का एक बर्तन होता है और इसके पेंदे में छोटा छिद्र होता है धीरे-धीरे इस छिद्र में से बर्तन में पानी जमा होता है जिससे समय की सूचना मिलती है यह एक प्रकार की जल घड़ी है जिसका प्राचीन ज्योतिषी कालगणना के लिए प्रयोग करते थे लीलावती ने अचानक जब इस नाड़िका यंत्र में पानी चढ़ते हुए देखा तो उसके वस्त्र का एक मोती उस पात्र में गिर गया मोती छिद्र के मुंह पर बैठ जाने से भीतर का पानी रुक गया और इस प्रकार विवाह का शुभ मुहूर्त निकल गया। पिता और पुत्री दोनों बहुत को बड़ा दुख हुआ लीलावती को सांत्वना देने के लिए भास्कराचार्य ने उससे कहा मैं तुम्हारे नाम का एक ऐसा ग्रंथ लिखूंगा जो अमर कीर्ति बन जाएगा क्योंकि सुनाम एक प्रकार का दूसरा जीवन ही होता है
कुछ लोगों का मत है कि लीलावती भास्कराचार्य की पत्नी थी क्योंकि 'सखे' संबोधित भी मिलता है परंतु ग्रंथ के अन्य संबोधन भी मिलते हैं जैसे- मित्र, कुशल, गणक आदि इसके आधार पर कुछ लीलावती कुछ लोग ने उपर्युक्त धारणा का खंडन किया है नामकरण के पीछे जो कुछ भी रहस्य रहा हो लीलावती वास्तव में एक रोचक और सुलभ ग्रंथ है कुछ ऐसे भी उदाहरण है जो बुद्धि को जाकझोर देने के लिए पर्याप्त हैं इसी कारण किसी ने कहा है, "भास्कराचार्य ने लिखे हुए को या तो स्वयं भास्कर चार्य ही समझ सकते हैं या सरस्वती या फिर ब्रह्मा हमारे पुरुषों के वंश की बात नहीं"
लीलावती नामक ग्रंथ की पश्चिमी विद्वानों में भी काफी प्रशंसा की है इस गणित ग्रंथ का अकबर ने फौजी द्वारा फारसी में अनुवाद करवाया था लीलावती ग्रंथ में एक बहुत ही रोचक प्रश्न कर्ण भुज योग के स्थान पर भुजमान निकालने का बड़ा ही स्वाभाविक उदाहरण दिया है― एक बिल के ऊपर 9 हाथ ऊंचे पर एक मयूर बैठा हुआ है, उसे 27 हाथ की दूरी पर एक सर्प को स्तंभ में स्थित बिल की ओर आते हुए आते देखा गया और तिरछी चाल से उसकी तरफ झपटा तो बताओ मयूर ने कितनी दूर पर सर्प आते हुए पकड़ा?
लीलावती नामक ग्रंथ भास्कराचार्य का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है इसमें अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति के ग्रन्थों का प्रतिपादन किया है
लीलावती का अंग्रेजी अनुवाद सन 1816 में टेलर (Taylor) ने किया था लीलावती में पूर्णांक और भिन्न, त्रैमासिक ब्याज, व्यापार, गणित, मिश्रण, श्रेणी, क्रमचय के संबंध में जानकारी दी है लीलावती स्वयं एक विद्वान एवं योग्य थी उसकी विद्वता की चर्चा बहुत दूर तक फैली थी।
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