आदर्शवाद का अर्थ, परिभाषाएं, सिद्धांत, उद्देश्य

 आदर्शवाद का अर्थ (Meaning of Idealism)




आदर्शवाद को अंग्रेजी में 'Idealism' कहा जाता है यह दो शब्दों से मिलकर बनाएं एक शब्द 'Idea' और दूसरा शब्द 'ism' बीच में 'I' अक्षर उच्चारण के सौंदर्य के लिए प्रयुक्त किया गया है Idea का अर्थ है विचार और ism का अर्थ है वाद इसीलिए इसे 'विचारवाद' भी कहा जाता है दर्शन की सबसे प्राचीनतम विचारधाराओं में आदर्शवाद का प्रमुख स्थान है आदर्शवाद में विचारों, आदर्शों, मूल्यों, कृतियों पर अधिक बल देने के कारण इसे विचारवाद या प्रत्ययवाद के नाम से भी जाना जाता है








आदर्शवाद की परिभाषा (Definitons of Idealism)


हेंडरसन के अनुसार– आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पर बल देता है क्योंकि उनके अनुसार आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य जीवन के अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू हैं आदर्शवादियों का विश्वास है कि मनुष्य इन मूल्यों को अपने सीमित मन से प्राप्त करता है वे यह मानते हैं कि व्यक्ति और संसार दोनों बुद्धि की अभिव्यक्तियां हैं वे कहते हैं कि भौतिक संसार की व्याख्या मन से ही की जा सकती है

जे. एस. रॉस के अनुसार- आदर्शवादी दर्शन के बहुत और विविध रूप हैं परंतु सभी का आधारभूत तत्व यही है कि संसार की उत्पत्ति का कारण मन और आत्मा है वास्तविक रूप मानसिक चरित्र का रूप है

फ्रॉबेल के अनुसार- शिक्षा मानव जीवन के लगातार विकास की क्रिया है जो उसे भौतिक ज्ञान देती है और आध्यात्मिक ज्ञान की ओर ले जाती है और अंत में ईश्वर के साथ एकता करती है

हॉर्न उनके अनुसार- आदर्शवादी शिक्षा दर्शन मानसिक जगत का मानव को अभिन्न अंग समझने की अनुभूति का विवरण है

आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धांत (Principles of Idealism)


आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धांत निम्न है

1.आध्यात्मिक जगत को महत्त्व– आदर्शवादियों ने आध्यात्मिक जगत को भौतिक तथा प्राकृतिक जगत की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति का स्वरूप भी आध्यात्मिक है और भौतिक जगत मिथ्या है

2.नियामक व सामाजिक विज्ञान पर बल– आदर्शवादियों ने नियामक व सामाजिक विज्ञान के अध्ययन पर विशेष बल दिया है नियामक विज्ञान के अंतर्गत तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र व सौंदर्य शास्त्र आदि आते हैं इनका संबंध मानव जीवन के मूल्य उद्देश्य और आदर्शों से होता है सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र, अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान आते हैं आदर्शवादी इन्हीं के आधार पर अपने सिद्धांत की व्याख्या करते हैं

3.आध्यात्मिक मूल्यों में विश्वास– आदर्शवादी आध्यात्मिक मूल्य सत्यम् (Truth), शिवम्(Goodness) तथा सुंदरम् को शाश्वत एवं सर्वव्यापी मानते हैं उनके अनुसार जीवन का परम लक्ष्य इन आध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त करना है तभी ईश्वर की प्राप्ति भी संभव है इन तीनों आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति में मानव के मन की तीनों क्रियाएं– ज्ञान, अनुभव और इच्छा शामिल है

4.अनेकता में एकता– आदर्शवाद अनेकता में एकता के सिद्धांत को मानता है उनके अनुसार समस्त प्रकृति में एक ही चेतन तत्व विद्यमान है एक चेतन तत्व को ईश्वर के नाम से संबोधित करते हैं संपूर्ण विश्व एक केंद्र शक्ति से संचालित तथा क्रियाशील है यही तत्व समस्त प्राणियों को विविधता के बावजूद एक तत्वों के सूत्र में बांधता है

5.मानव व्यक्तित्व में विश्वास– आदर्शवादी मानव को ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना मानते हैं मनुष्य अपनी बुद्धि के द्वारा नैतिक आदर्शों तथा संस्कृति एवं आध्यात्मिक संस्थाओं के द्वारा अन्य जीवो से अपने आपको अलग कर लेता है धर्म, नैतिकता, कला, गणित, साहित्य और विज्ञान जो सच्चे अर्थों में मानव संबंधी शास्त्र हैं युग-युगांतर से चले आते हुए मनुष्य के नैतिक, बौद्धिक क्रियाकलापों के परिणाम हैं






आदर्शवाद और शिक्षा (Idealism and Education)


आदर्शवादियों का शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है आदर्शवाद दार्शनिक चिंतन की प्राचीनतम विचारधाराएं आदर्श वादियों के अनुसार शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति आध्यात्मिक गुणों को प्राप्त कर पाता है आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा के दो रूप हैं– भौतिक तथा आध्यात्मिक। शिक्षा का भौतिक उद्देश्य शरीर की रक्षा करना  हैं आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ भौतिक ज्ञान भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी पर उसका जीवन निर्भर है इसी की सहायता से वह अपने भौतिक वातावरण को अपनी इच्छा अनुसार और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अधिक उपयुक्त बना लेता है आध्यात्मिक गुण मनुष्य को पशु से अलग करते हैं शिक्षा साध्य न होकर एक साधन मात्र है जिसके द्वारा आदर्श नागरिक का निर्माण संभव है

आदर्शवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Idealism and Aims of Education)


1.बालक का बौद्धिक विकास– मनुष्य की बुद्धि एवं विवेक उसके सभी आदर्शों तथा आध्यात्मिक चेतना ऊपर आधारित होते हैं शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य बालक का बौद्धिक विकास होना चाहिए तभी वह अपनी बौद्धिक क्षमता व विवेकशीलता के द्वारा इन नियमों व सिद्धांतों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है

2.सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि– आदर्शवादियों के अनुसार शिक्षा का अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत की समृद्धि है सांस्कृतिक संपदा की सुरक्षा और विकास में सहयोग देकर ही व्यक्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अपनी संस्कृति हस्तांतरित कर सकता है

3.अमर आदर्शों एवं मूल्यों की प्राप्ति– आदर्शवादियों के अनुसार सत्यम, शिवम, सुंदरम मानव जाति के आध्यात्मिक आदर्श हैं एवं जीवन के शाश्वत मूल्य हैं अतः शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो मनुष्य को इन नियमों की प्राप्ति में सहायक हो इन आदर्शों के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर मस्तिष्क सत्य को जानता है और असत्य से दूर रहता है सुंदरता का अनुभव करता है और असुंदरता से दूर रहता है अच्छाई का संकल्प करता है और बुराई से दूर रहता है

4.आध्यात्मिक विकास– आदर्शवाद आध्यात्मिक पूर्णता अथवा आत्मानुभूति कोई व्यक्ति का पूर्ण विकास मानता है आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य बालकों का आध्यात्मिक विकास करना है और इसके अनुकूल ही शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए

5.व्यक्तित्व का उच्चतम विकास या आत्मानुभूति– आदर्शवाद में मानव व्यक्तित्व को सर्वोच्च तथा सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय कृति माना गया है इसीलिए जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य व्यक्तित्व का उच्चतम विकास कर अथवा आत्मानुभूति है दूसरे शब्दों में व्यक्तित्व में निहित शक्तियों का पूर्ण विकास स्वानुभूति है आदर्शवादियों के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य यही है कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को पहचाने और उसकी अनुभूति कर सके।

आदर्शवाद और पाठ्यक्रम (Idealism and Curriculum)


आदर्शवादियों के अनुसार, पाठ्यक्रम मानव के विचारों और आदर्शों एवं अनुभवों के आधार पर होना चाहिए पाठ्यक्रम मानव जाति के संचित अनुभवों का प्रतीक होना चाहिए आदर्शवादियों के अनुसार बालक के व्यक्तित्व के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक तीनों पक्षों का विकास करने के लिए तीनों पक्षों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए

1.रॉस के विचार– पाठ्यक्रम के बारे में रॉस महोदय ने लिखा है कि "व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आध्यात्मिक मूल्य विकसित करने का होना चाहिए" रॉस ने व्यक्ति की क्रियाओं को दो भागों में बांटा है


  1. भौतिक (शारीरिक क्रियाएं) 
  2. आध्यात्मिक क्रियाएं 

     

2.हरबर्ट के विचार– हरबर्ट के अनुसार शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य नैतिकता का विकास है और इसीलिए वह पाठ्यक्रम में उन विषयों के समावेश पर बल देते हैं जो नैतिकता के विकास में सहायक हैं


3.प्लेटो के विचार– प्लेटो ने मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य आत्मानुभूति को माना है और इसके लिए सत्यम, शिवम, सुंदरम की प्राप्ति आवश्यक है यह तीन मूल्य मनुष्य की बौद्धिक, नैतिक, कलात्मक क्रियाओं के द्वारा प्राप्त होते हैं पाठ्यक्रम में उन्हीं विषयों एवं क्रियाओं का समावेश होना चाहिए जो मानव को उपर्युक्त क्रियाओं में दक्षता प्रदान करें



आदर्शवाद और शिक्षण विधियां (Idealism and Method of teaching)


विभिन्न आदर्शवादियों ने विभिन्न शिक्षण विधियों को अपनाया है जो निम्न है


  1. अभ्यास व आवृत्ति विधि– पेस्टालॉजी ने अभ्यास व आवृत्ति विधि को सर्वश्रेष्ठ माना है 
  2. खेल विधि– फ्रोबेल ने खेल विधि को अच्छा माना है 
  3. निर्देश विधि– हरबर्ट निर्देश विधि को अच्छा माना है 
  4. तर्क विधि– हीगल ने तर्क विधि को अपनाया है 
  5. संवाद विधि– प्लेटो ने इस विधि का विकास किया है 
  6. प्रश्नोत्तर विधि– सुकरात ने इस विधि का प्रयोग किया है 
  7. निगमन विधि एवं आगमन विधि– अरस्तू ने इस विधि द्वारा शिक्षा दिए जाने पर बल दिया है 
आगमन विधि– सामान्य से विशिष्ट की ओर
निगमन विधि– विशिष्ट से सामान्य की ओर





आदर्शवाद के गुण (Merits of Idealism)


  1. आदर्शवाद में स्वानुशासन पर बल दिया जाता है दमनात्मक अनुशासन का विरोध किया है आत्मानुशासन होने से बालक में चारित्रिक व आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है 
  2. आदर्शवादी पाठ्यक्रम में बालक के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु सभी क्रियाओं जैसे बौद्धिक, कलात्मक व नैतिक पर समान रूप से बल दिया गया है 
  3. आदर्शवाद में नैतिक एवं चारित्रिक विकास पर बल दिया जाता है वर्तमान समय में बालकों को नैतिक विकास की शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है इसके लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय आदर्शवाद का सहारा लेना चाहिए 
  4. आदर्शवाद में शिक्षक को गरिमामय स्थान प्राप्त है इससे बालक व समाज का हित होता है बालक के सही मार्ग के चयन व उनके विकास का दायित्व शिक्षक पर होता है 
  5. आदर्शवाद द्वारा शिक्षा के उद्देश्य को व्यापक स्वरूप प्रदान किया गया है आदर्शवाद शिक्षा का उद्देश्य सत्यम, शिवम, सुंदरम की प्राप्ति बताता है 

आदर्शवाद के दोष (Demerits of Idealism)


  1. आदर्शवादियों द्वारा शिक्षा के जो उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं यह व्यवहारिक हैं इन उद्देश्यों का संबंध वर्तमान से न होकर दूरस्थ भविष्य से है 
  2. आधुनिक युग की शिक्षा बालक केंद्रित है जबकि आदर्शवाद में बालक का स्थान गौण व शिक्षक का स्थान सर्वोपरि माना गया है मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आदर्शवाद का यह सबसे बड़ा दोष है 
  3. आदर्शवाद में आत्मानुभूति की बात कही जाती है इसके लिए पाठ्यक्रम आध्यात्मिक विषयों को स्थान दिया गया है जबकि वर्तमान में वैज्ञानिक विषयों को स्थान दिया जाना चाहिए 
  4. आदर्शवादी शिक्षा में प्रयोगात्मक शिक्षण विधियों पर अधिक बल नहीं दिया जो वर्तमान युग की आवश्यकता है 
  5. आदर्शवाद में दर्शन पर अधिक बल दिया गया है आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति को ही जीवन का अंतिम उद्देश्य माना है जो कि वर्तमान समय के लिए उपयुक्त नहीं है।