रवीन्द्रनाथ टैगोर, विश्वभारती (शांतिनिकेतन) शिक्षा, उद्देश्य, पाठ्यक्रम
रवींद्रनाथ टैगोर जीवन परिचय (Ravindranath Tagor Life-History)
भारतीय शिक्षा दर्शन में अमूल्य योगदान करने वाले विचार को में रविंद्र नाथ टैगोर जी प्रमुखता माने जाते हैं बहुमुखी प्रतिभा के धनी टैगोर जी का जन्म 6 मई सन 1861 ईसवी में कोलकाता में हुआ था इनके पिता का नाम महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर था जो स्वयं एक महान दार्शनिक एवं सामाजिक नेता थे पिता का प्रभाव बालक टैगोर पर भी पड़ा और उनकी माता का नाम शारदा देवी था उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई उन्होंने प्रारंभिक अवस्था में ही हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला, चित्रकला पर प्रवीणता प्राप्त कर ली थी टैगोर को एक के बाद एक नवीन विद्यालयों में पढ़ने भेजा गया किंतु वातावरण की कृत्रिमता ने उनका मोह भंग कर दिया।
संसार ने उनकी योग्यता और कवित्व का समुचित आदर किया और गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद पर नवंबर 1913 ईस्वी में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ और विश्व में प्रसिद्ध हुए साहित्य, कला, विज्ञान आदि पर दिया जाने वाला यह विश्व का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार है कोलकाता विश्वविद्यालय ने सन 1913 में उन्हें डी. लिट. की हॉनरेरी डिग्री प्रदान कर उन्हें आदर और सम्मान का परिचय दिया भारत सरकार ने सन 1915 में नाइट की उपाधि दी।
शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)
टैगोर ने शिक्षा शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग किया है उनके शब्दों में– सर्वोच्च शिक्षा वही है जो संपूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है
सर्वोच्च शिक्षा वह है जो हमें ना केवल सूचना प्रदान करती है वरन् हमारे जीवन का वह परिस्थितियों से सामंजस्य बनाती है टैगोर ने "सा विद्या या विमुक्तये" का समर्थन किया है उनके अनुसार शिक्षा केवल जन्म मरण से मुक्ति नहीं देती वरन् वह आर्थिक मानसिक, सामाजिक, दासता से भी मुक्ति देती है।
शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)
- व्यक्तित्व तथा समाज का संबंध स्थापित करना
- नैतिक व आध्यात्मिकता का विकास करना
- सार्वभौमिक नागरिकता का विकास करना
- चरित्र का निर्माण करना
- बौद्धिक शक्ति का विकास करना
- व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना
- शारीरिक विकास करना
- राष्ट्रीयता का विकास करना
- अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण का विकास करना।
शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Education)
उन्होंने व्यक्तित्व विकास के परिपेक्ष में व्यापक पाठ्यक्रम की वकालत की टैगोर पूर्ण मानव को विकसित करना चाहते थे इस महान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने भारतीय विद्यालयों के पाठ्यक्रम को दोषपूर्ण बताया और एक व्यापक पाठ्यक्रम बनाने का सुझाव दिया उनके अनुसार पाठ्यक्रम इतना व्यापक होना चाहिए कि वह बालक के जीवन के सभी बच्चों का विकास कर सके और पूर्ण जीवन की प्राप्ति में सहायक हो सके उनके अनुसार पाठ्यक्रम के कुछ मुख्य विषय व क्रियाएं इस प्रकार हैं
- विषय– इतिहास, भूगोल, साहित्य, विज्ञान, प्रकृति अध्ययन आदि
- क्रियाएं– नाटक, भ्रमण, बागवानी, क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोगशाला कार्य, ड्राइंग, मौलिक रचना आदि
- अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाएं– खेलकूद, समाज सेवा, छात्र स्वशासन आदि।
शिक्षण विधि (Teaching Method)
उनका मत था सीखने के लिए प्रकृति की गोद अपेक्षित है जहां बालक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति को उन्होंने निम्नलिखित शिक्षण विधियों को अपनाने पर बल दिया
- निरीक्षण द्वारा सीखना
- क्रिया द्वारा सीखना
- भ्रमण विधि द्वारा सीखना
- प्रकृति के अनुसरण द्वारा
- प्रश्नोत्तर द्वारा सीखना
- मातृभाषा द्वारा शिक्षण
- खेल द्वारा शिक्षण
- स्वानुभव द्वारा शिक्षण
- वाद-विवाद द्वारा।
टैगोर का विश्वभारती विश्वविद्यालय(शांतिनिकेतन) (Vishwabharati university of Tagor)
सन 1962 में गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने अध्यात्मिक साधना के लिए बंगाल के बोलपुर के पास कोलकाता से लगभग 100 मील की दूरी पर नगर के कोलाहल से दूर, शांत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान पर एक आश्रम की स्थापना की सन 1901 ईसवी में टैगोर ने वही शांतिनिकेतन विद्यालय स्थापित किया टैगोर ने अपने विद्यालय की स्थापना के लिए स्थान चुनने के विषय में लिखा है– "मेरे मन में एक आदर्श विद्यालय का रूप था जिसमें घर और मंदिर की एक साथ अनुभूति हो जहाँ शिक्षण उपासनायुक्त जीवन का एक अंग बन सके। मैंने इस स्थान को चुना जो नगर के सभी आकर्षणों तथा विकृतियों से दूर था और जहां का वातावरण एक पवित्र जीवन की स्मृति से व्याप्त था, जिसने परमात्मा के सान्निध्य में अपने दिन बिताए थे"
शांतिनिकेतन की स्थापना के उद्देश्य (Objectives of Establishment of Shantiniketan)
- बालकों को यहां ऐसी शिक्षा दी जा सके जो प्रकृति से विलग न हो और बच्चे परिवार के वातावरण का अनुभव करें
- जहां बालक स्वतंत्रता पारस्परिक विश्वास और उल्लास का अनुभव करें
- बालकों में भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम उत्पन्न हो सके
यहां सभी विद्यार्थियों को अपना कार्य स्वयं करने की प्रेरणा दी जाती है 5:00 बजे सुबह से कार्य आरंभ हो जाता है और 6:30 बजे तक सफाई का काम समाप्त हो जाने के पश्चात 2 घंटे अध्ययन कार्य चलता है दोपहर को मध्यावकाश हो जाता है उसके पश्चात भारतीय नृत्य, संगीत, शारीरिक व्यायाम, खेलकूद आदि की व्यवस्था है शिक्षक और छात्रों के संबंध बड़े मधुर हैं
विश्वभारती (Vishwabharati)
23 सितंबर सन 1918 को मुक्त शिक्षा संस्थान शांतिनिकेतन को अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर उसका नाम विश्वभारती रखा गया इसके कार्यक्रमों में उस समय रवींद्रनाथ के समक्ष निम्न चार उद्देश्य प्रमुख थे
1.भारतीय संस्कृति का केंद्र― भारतीय संस्कृति व धर्म के आधार पर सभी जातियों, धर्मों तथा वर्गों के अतीत एवं वर्तमान की शिक्षा प्रदान करना
2.पाश्चात्य संस्कृति का केंद्र– प्राच्य संस्कृति से सामंजस्य कर उसमें घनिष्ठता उत्पन्न करना तथा पाश्चात्य संस्कृति और विज्ञान के अध्ययन की प्रेरणा प्रदान करना
3.अंतरराष्ट्रीय संस्कृति का केंद्र― मानवता एवं विश्व बंधुता की भावना का संचार और प्रसार करना तथा विश्व शांति की स्थिति उत्पन्न करना
4.ग्राम पुनर्निर्माण का केंद्र― लौकिक समृद्धि को दृष्टिगत रखकर कृषि तथा अन्य कला कौशल एवं उद्योगों का विकास करना एवं समाज सेवा के रूप में जनकल्याण करना।
UPI ID:- achalup41-1@oksbi
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