वैदिक, उपनिषद्, बौद्ध कालीन शिक्षा

वैदिक काल (Vedic Period)





प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति तथा शिक्षा के मूल आधार वेद रहे हैं वेद ही भारतीय दर्शन के स्रोत हैं वेद स्वयं में कोई दार्शनिक ग्रंथ नहीं है वरन् इनमें सब भारतीय दर्शन के आधार मिलते हैं भारतीय दर्शन की विभिन्न शाखाएं वेदों को मानती हैं चार वेदों का वर्णन किया जाता है― ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इनमें सें ऋग्वेद सबसे पुरातन है इसकी रचना पद्य रूप में हुई है इसमें ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, कर्मफल, सृष्टि आदि  का वर्णन किया गया है सामवेद गीतों की पुस्तक है इसमें अनेक प्रार्थनाएं है जो ऋग्वेद से ली गई हैं अथर्ववेद विज्ञान परक है इसमें मानव के वास्तविक जीवन से संबंधित विचारों का समावेश है यजुर्वेद की रचना गद्य में हुई है इसमें कर्मकांड की प्रक्रिया की व्याख्या है



वैदिक चिंतन के प्रारंभिक काल में धार्मिक कृत्यों पर जोर था वेदों में अनेक प्रकार के अनुष्ठानों का वर्णन है इस काल में एक आदर्श पुरुष जिसे हम शिक्षित पुरूष कह सकते हैं वह व्यक्ति समझा जाता था जो कि पूर्ण श्रद्धा के साथ वैदिक रीति से अनुष्ठान करता हो धार्मिक कृत्य या अनुष्ठान के लिए या आवश्यक समझा जाता था कि व्यक्ति एक शुद्ध, परोपकारी जीवन जो दूषित विचारों से स्वतंत्र हो व्यतीत करता हो अतः इस काल में शिक्षा का मुख्य थे ऐसे व्यक्ति का विकास करने पर था जो शुद्ध, सरल, निष्ठावान हो ताकि अनुष्ठान करने योग्य हो सके।
समय के साथ दार्शनिक चिंतन में भी परिवर्तन आने लगा उपनिषद के काल तक आते-आते नैतिक स्तरों में गहरे परिवर्तन हो गए प्रारंभिक वैदिक काल के अनुष्ठानों पर बल के साथ पर कर्मकांड पर जोर दिया जाने लगा। कर्म संबंधी नियम मानव जीवन की असमानताओं की तर्कपूर्ण ढंग से व्याख्या करने के लिए प्रस्तुत किए गए






उपनिषद् काल (Upanished Period)


उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ से उसकी शैक्षिक विचारधारा का संकेत मिलता है उपनिषदों का तात्विक विवेचन संवाद के रूप में है जिसमें जिज्ञासु शिष्य प्रश्न करता है और गुरु उसके प्रश्नों के उत्तर देते हुए उसकी आशंकाओं का निवारण करता है
वेद का अंतिम अंश उपनिषद् है उपनिषदों में तर्क वितर्क की प्रधानता है उपनिषद अनेक हैं अब तक हमें 112 का पता है अनेक और भी हो सकते हैं शंकराचार्य के विचार में केवल 10 ऐसे उपनिषद् हैं जिनको श्रुति की मान्यता प्राप्त है इनके अतिरिक्त तीन ऐसे पुराने उपनिषद हैं जो ईशा, केना तथा मेत्री उपनिषद है इस प्रकार 13 उपनिषद् को ध्यान में रखकर हम शिक्षा संबंधी उपनिषद् कालीन चिंतन को प्रस्तुत कर सकते हैं
अनेक शतकों से उपनिषद् भारतीयों के जीवन पर तथा भारतीय चिंतन पर गहरा प्रभाव डालते रहे हैं
उपनिषद् आत्मा को पूर्ण अखंड एवं अनश्वर बनाते हैं यह मानव जीवन का लक्ष्य वर्णन करते हैं यह तत्व संबंधी संसार को अवास्तविक तथा परासत्ता संबंधी संसार को वास्तविक मानते हैं इस ज्ञान द्वारा हमारे सामने से संसार की वास्तविकता का पर्दा उठ जाता है और हमारे जीवन की झूठी प्रकृति का पता लग जाता है इस प्रकार इस चिंतन में एक ऐसी सर्व सत्ता का वर्णन किया जाता है जिसे निर्गुण ब्रह्म कहते हैं जो सब गुणों तथा विशेषताओं से रहित होता है वास्तव में उपनिषद् की विचारधारा में ब्रह्म के दो रूप हैं- मूर्त और अमूर्त निर्गुण ब्रह्म अमूर्त रूप ही है
उपनिषदों के ज्ञान पर बल दिया है यह दो प्रकार के ज्ञान का वर्णन करते हैं एक निम्न स्तर का ज्ञान जिसे उन्होंने अपरा विद्या कहा जो बाहरी दिखावे की ओर ले जाता है और एक उच्चतर ज्ञान जिसे परा विद्या कहां गया जो ब्रह्म संबंधी उच्च ज्ञान की ओर ले जाने वाला है
महादेवन का कहना है कि निम्न स्तर के ज्ञान के अंतर्गत सब भौतिक एवं विज्ञान कलाएं आती हैं और साथ-साथ इस प्रकार का पावन ज्ञान जो उन वस्तुओं और आनंदों से संबंधित है जो नश्वर हैं उच्च स्तर का ज्ञान आत्मज्ञान है जब सत्य ज्ञान प्राप्त होता है तो आत्मा को अपनी असली प्रकृति जो आनंद है जो चेतना है उसकी अनुभूति हो जाती है
उपनिषद शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएं है


  1. शिक्षा सामूहिक प्रक्रिया न होकर वैयक्तिक प्रक्रिया है इसमें शिष्य अपनी आवश्यकता योग्यता एवं क्षमता के अनुसार अपनी गति से अपनी योजना अनुसार शिक्षा ग्रहण करता है 
  2. ज्ञान की प्राप्ति स्वयं के प्रयास से की जा सकती है किंतु इस प्रक्रिया में गुरु की सहायता और मार्गदर्शन आवश्यक है 
  3. ज्ञान रहे समय एवं गुप्त है इसकी प्राप्ति से व्यक्ति में अनंत गुनी शक्ति बढ़ जाती है 
  4. ज्ञान उसी व्यक्ति को प्रदान करना चाहिए जो उसके प्राप्त करने के योग्य हो। इसका अभिप्राय है कि जो व्यक्ति अपात्र हो उसे व्यर्थ ज्ञान प्रदान नहीं करना चाहिए।






 बौद्ध कालीन शिक्षा (Buddhist education)


महात्मा बुद्ध ने संसार को दुख और वेदना से भरा हुआ माना उन्होंने कहा कि हमें जन्म के समय वेदना होती है क्षीण होने पर वेदना होती है और मृत्यु की वेदना होती है प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह दुख को समाप्त करें और मोक्ष को प्राप्त करें

महात्मा बुद्ध ने अपना यह धर्म उपदेश सर्वप्रथम वाराणसी से लगभग 8 किलोमीटर दूर सारनाथ स्थान पर दिया था यहां से चार शिष्यों के साथ उन्होंने यह कार्य आगे बढ़ाया इनके इस कार्य में तात्कालिक राजा महाराजाओं का बड़ा सहयोग रहा देखते देखते देश के विभिन्न भागों में बौद्ध मठों और विहारों का निर्माण हो गया प्रारंभ में तो यह बौद्ध मठ एवं विहार महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं के केंद्र के रूप में विकसित हुए थे पर आगे चलकर यह जन शिक्षा की व्यवस्था भी करने लगे इस कार्य में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा नई शिक्षा प्रणाली का विकास किया गया जिसे बौद्ध शिक्षा प्रणाली कहते हैं बौद्ध शिक्षा प्रणाली का विकास बौद्ध काल में हुआ और यह बौद्ध धर्म एवं दर्शन पर आधारित थी वैदिक धर्म की कठोर वर्ण व्यवस्था और कर्मकांड के प्रतिकूल बौद्ध धर्म समानता, प्रेम और करुणा पर आधारित थी।

बौद्ध धर्म तर्क पर बल देता है न कि वेद और धर्म की सत्ता पर। बौद्ध दर्शन धर्म और कर्म की धारणा पर केंद्रित है कर्म के फल एकत्रित होते रहते हैं और यह धर्म ही है जो संपूर्ण संसार को गतिशील बनाता है बौद्धिक दर्शन के अनुसार हम एक शिक्षित व्यक्ति उसे कह सकते हैं जो कि धर्म के अनुरूप जीवन व्यतीत करता है और अच्छे कर्म करता है वह तर्क को मान्यता देता है और प्रयोजनशील है वह अनुभव को ही ज्ञान का स्रोत मानता है। एक मानव का जीवन दर्द और दुख से भरा है किंतु इसका मूल कारण या लालसा है कामना काम संबंधी आनंद के लिए हो सकती है अथवा धन के लिए। एक व्यक्ति कामना करता है क्योंकि वह अज्ञानी है और इस कारण वेदना पाता है उसकी वेदना और दुख मिट सकते हैं यदि वह अज्ञानता से दूर करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए सही मार्ग पर चले जो कि शारीरिक आनंद और भौतिक सुख से छुटकारा पाने का है जो मार्ग सुख की प्राप्ति का और वेदना के अंत का है वह अष्टगुणी मार्ग है 

अष्टगुणी मार्ग― यह निम्न प्रकार हैं 

1.सम्यक् दृष्टि― व्यक्ति को वस्तुओं को उसी रूप में देखना चाहिए जिसमें कि वह यथार्थ में है उसे सही ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए जो कि संसार तथा आत्मा के परस्पर संबंधों की अज्ञानता को दूर करने वाला होगा। 

2.सम्यक् संकल्प― व्यक्ति को आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने का संकल्प करना चाहिए उसे बुरे विचारों से, कामेच्छा से और सांसारिक तत्वों की चाहत से बचना चाहिए

3.सम्यक् वाक्य― सत्य की खोज करने वाले को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए उसे ना तो झूठ बोलना चाहिए ना ही कड़े तथा अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए

4.सम्यक् कर्मान्त― व्यक्ति को बलिदान, सहानुभूति तथा  उदारता की भावना को अपने में उत्पन्न करना चाहिए महात्मा बुद्ध ने सन्यासी, अभिभावक, बालक, शिक्षक, विद्यार्थी, पति-पत्नी इत्यादि सबके लिए आचरण संहिता प्रतिपादित की है

5.सम्यक् जीविका― एक आदर्श पुरुष को अपनी जीविका उचित तथा ईमानदारी से प्राप्त करनी चाहिए एक ज्ञानी धोखे से या रिश्वत से धन नहीं कम आएगा

6.सम्यक् व्यायाम― व्यक्ति को आत्म नियंत्रण प्राप्त करना चाहिए और लगातार चेष्टा करनी चाहिए कि दूषित विचार उसके मस्तिष्क में निष्कासित हो जाए

7.सम्यक् स्मृति― व्यक्ति को अपने शरीर की अपवित्रता की ओर तथा दुख एवं सुख की ओर उचित अभिवृत्तियाँ रखनी चाहिए

8.सम्यक् समाधि― जब एक व्यक्ति उपरोक्त 7 मार्गों को अपना लेता है और उनको अपने अनुभवों में सम्मिलित कर लेता है तब वह आठवें मार्ग पर चलने के लिए तैयार होता है यह एक समाधि का मार्ग समाधि में ही व्यक्ति अपने मन को सत्यापन और तर्क ध्यानशील कर देता है।

बौद्ध कालीन शिक्षा के उद्देश्य (Purpose of Buddhist education)


  1. बौद्ध शिक्षा प्रणाली के प्रशासन एवं वित्त के संबंध को समझ सकें 
  2. शिक्षा की संरचना एवं संगठन का ज्ञान प्राप्त कर सकें 
  3. बौद्ध शिक्षा प्रणाली के शिक्षा के उद्देश्य और आदर्शों को समझ सके 
  4. बौद्ध शिक्षा प्रणाली की शिक्षा की परीक्षाएं को जान सकें 
  5. बौद्ध कालीन मुख्य बौद्ध शिक्षा केंद्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें 
  6. मानव संस्कृति का संरक्षण एवं विकास हो सके 
  7. सामाजिक आचरण की शिक्षा दी जा सके 
  8. ज्ञान का विकास हो सके 
  9. चरित्र का निर्माण 
  10. कला कौशल एवं व्यवसायों की शिक्षा प्रदान करना 
  11. बौद्ध धर्म की शिक्षा देना।

वैदिक शिक्षा प्रणाली और बौद्ध शिक्षा प्रणाली में समानताएं (Similarities between Vedic education system and Buddhist education system)


  1. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा राज्य के निर्णय से युक्त थी 
  2. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षण संस्थाओं की आय के मुख्य स्रोत दान और भिक्षा थे 
  3. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा का संगठन उचित प्राथमिक एवं उच्च शिक्षा दोनों स्तरों में किया गया था 
  4. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा के उद्देश्य लगभग समान थे और छात्रों के चरित्र निर्माण पर विशेष बल दिया जाता था दोनों से चा प्रणालियों की पाठ्यचर्या में तब तक विकसित 
  5. समस्त ज्ञान एवं कला कौशलों को स्थान दिया गया था 
  6. दोनों शिक्षा प्रणाली में सामान्य विषय पढ़ाने के लिए मौखिक विधियों का और क्रियात्मक विषय पढ़ाने के लिए प्रदर्शन एवं अभ्यास विधियों का प्रयोग किया जाता था 
  7. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षकों के लिए योग्य एवं संयमी होना आवश्यकता और शिक्षकों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था 
  8. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षार्थी को शिक्षा संस्थाओं के नियमों का कठोरता से पालन करना होता था वे सादा एवं संयमित जीवन जीते थे और वासनाओं से दूर रहते थे 
  9. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच पवित्र और मधुर संबंध थे 
  10. दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षक संस्थाएं आवासीय थी इसमें प्रवेश के समय छात्रों का क्रमश: उपनयन और पबज्जा संस्कार होता था और उनकी व्यवस्था शिक्षक और शिक्षार्थी संयुक्त रूप से करते थे।






वैदिक शिक्षा प्रणाली और बौद्धिक शिक्षा प्रणाली में असमानताएं (Inequalities between Vedic education system and Buddhist education system)


  1. वैदिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षा पर गुरुओं का नियंत्रण था, बौद्ध शिक्षा प्रणाली में यह बौद्ध संघों के नियंत्रण में था 
  2. वैदिक शिक्षा प्रणाली में केवल शिष्य भिक्षा मांगते थे और बोलकर मांगते थे बौद्ध शिक्षा प्रणाली में गुरु और शिष्य दोनों भिक्षा मांगते थे और मौन होकर मांगते थे 
  3. वैदिक शिक्षा प्रणाली में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों में होती थी बौद्धिक शिक्षा प्रणाली में इसकी शिक्षा की व्यवस्था मठों और विहारों में होती थी 
  4. वैदिक शिक्षा प्रणाली में वैदिक धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी बौद्ध शिक्षा प्रणाली में बौद्ध धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी 
  5. वैदिक शिक्षा प्रणाली में शिक्षा का माध्यम विशुद्ध भाषा संस्कृत थी बौद्ध शिक्षा प्रणाली में शिक्षा का माध्यम लोक भाषा पाली थी 
  6. वैदिक शिक्षा प्रणाली में आंतरिक अनुशासन पर अधिक बल रहता था बौद्ध शिक्षा प्रणाली में बाह्य अनुशासन पर बल रहता था 
  7. वैदिक शिक्षा प्रणाली में केवल गुरु ही छात्रों के आचरण पर दृष्टि रखते थे बौद्ध शिक्षा प्रणाली में गुरु और शिक्षक दोनों एक दूसरे के आचरण पर दृष्टि रखते थे 
  8. वैदिक शिक्षा प्रणाली में केवल ब्राह्मण वर्ण के व्यक्ति ही  शिक्षण कार्य करते थे बौद्ध शिक्षा प्रणाली में किसी भी वर्ण के व्यक्ति (पुरूष व स्त्री) भिक्षु शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिक्षण कार्य कर सकते थे 
  9. वैदिक शिक्षा प्रणाली की अपेक्षा बौद्ध शिक्षा प्रणाली में शिक्षार्थियों को अधिक संयम से रहना होता था।