अधिगम शिक्षण का स्थानांतरण या अंतरण

 अधिगम शिक्षण का स्थानांतरण (Transfer of Training or Teaching)

adhigam shikshan ka sthaanaantaran ya antaran


शिक्षण के स्थानांतरण का अर्थ है जो ज्ञान, आदतें, अनुभव विधियां आदि सीखी गई हैं उनका वास्तविक जीवन में या शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में पुनः प्रयोग करना है जैसे अंग्रेजी में टाइप करने का कौशल हिंदी टाइप करने में मदद करता है या गणित का ज्ञान जरूरी हिसाब किताब को करने में मदद करता है

अधिगम स्थानांतरण की परिभाषाएं 

क्रो एवं क्रो के अनुसार, "चिंतन अनुभूति या काम करने की आदतो, ज्ञान या कौशलों को सीखने के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाने को प्राय: शिक्षण स्थानांतरण कहा जाता है 

वेब महोदय के अनुसार, "शिक्षण के स्थानांतरण के संबंध इस प्रश्न से होता है कि क्या एक विषय जैसे गणित की सामग्री का ज्ञान दूसरे विषय जैसे भौतिक शास्त्र या रसायन शास्त्र की सामग्री को बाद में सीखने में सहायता देती या बाधा डालती है या ऐसा नहीं होता है"


अधिगम स्थानांतरण के प्रकार (Types of Transfer of Teaching)

विद्वानों ने तीन रूप बताए हैं 

  1. धनात्मक स्थानांतरण 
  2. ऋणात्मक स्थानांतरण 
  3. शून्य स्थानांतरण 

1. धनात्मक स्थानांतरण (Positive Transfer)

जब एक कौशल, ज्ञान दूसरे कौशल, ज्ञान को सीखने में सहायक होता है तो इसे धनात्मक स्थानांतरण कहते हैं जैसे साइकिल चलाने का कौशल का इस्तेमाल मोटरसाइकिल चलाने मे करना या हिंदी का ज्ञान संस्कृत सीखने में करना। 

2. ऋणात्मक या नकारात्मक स्थानांतरण (Negative Transfer) 

जब एक कौशल, ज्ञान किसी दूसरे ज्ञान या कौशल में अवरुद्ध या बाधा डालता है तो उसे ऋणात्मक स्थानांतरण कहते हैं जैसे सीधे हाथ से लिखने वाले बच्चे को उल्टे हाथ से लिखने में कठिनाई ऋणात्मक स्थानांतरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं 

  • पूर्व लक्षी नकारात्मक या ऋणात्मक स्थानांतरण (Retro-active Negative Transfer)- जब पहले प्रकार की सीखी गई कोई चीज दूसरे प्रकार की सीखी जाने वाली किसी चीज से दुष्ट प्रभावित होने लगे या भूलने लगे तो इस स्थिति को पूर्व लक्षी नकारात्मक स्थानांतरण कहते हैं जैसे दूसरी कविता को याद कर लेने के पश्चात पहले याद की गई कविता भूल जाना। 
  • प्रतिलक्षी नकारात्मक स्थानांतरण (Pro-active Negative Transfer)- जब पहले प्रकार की सीखी गई कोई चीज दूसरे प्रकार की सीखी जाने वाली किसी चीज पर बुरा प्रभाव डालने लगे या बाधा उत्पन्न करने लगे तो इस स्थिति को प्रतिलक्षी नकारात्मक स्थानांतरण कहते हैं जैसे पहले याद की गई कविता के पश्चात यदि दूसरी कविता याद करने में बाधा उत्पन्न हो अथवा पहली और दूसरी कविता आपस में मिल जाए। 

3. शून्य स्थानांतरण (Zero Transfer)- 

जब कोई ज्ञान या कौशल किसी दूसरे ज्ञान या कौशल के सीखने में न तो सहायता करता है न ही बाधा उत्पन्न करता है तो इसे शून्य स्थानांतरण कहते हैं जैसे मोटरसाइकिल चलाना सीखे हुए व्यक्ति का डांस सीखना।

अधिगम स्थानांतरण के रूप (Forms of Transfer)

मुख्यत: अधिगम स्थानांतरण के पांच रूप होते हैं 

1. पार्श्वीय स्थानांतरण (Lateral Transfer)- 

पार्श्वीय स्थानांतरण वह स्थानांतरण होता है जिसमें सीखे गये कौशल का स्थानांतरण एक ऐसी परिस्थिति या ऐसे विषय के सीखने में होता है जो उसी स्तर का होता है उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे को बताया जाए कि 2 में से 1 घटाने पर एक बचता है तो वह घर आकर यह बता सकता है कि ₹2 में से ₹1 खर्च कर दिए तो एक रुपए बचेगा। 

2. ऊर्ध्वाधर स्थानांतरण (Vertical Transfer)- 

इस स्थानांतरण को अनुलम्ब स्थानांतरण भी कहते हैं इस स्थानांतरण में सीखें गये कौशल का स्थानांतरण उच्च स्तर के कौशल को सीखने में होता है दूसरे शब्दों में जब किसी ज्ञान या अनुभव का उपयोग प्राणी द्वारा किसी अन्य क्षेत्र या प्रकार की उच्च स्तरीय परिस्थितियों में किया जाता है तब उसे ऊर्ध्वाधर स्थानांतरण कहते हैं जैसे सामान्य गणित क्रियाओं को सीखने के बाद जटिल अंकगणितीय समस्याओं का समाधान कर लेना।

3. अनुक्रमिक स्थानांतरण (Lequential Transfer)- 

विषयों को एक क्रम में सीखने के बाद किसी नए विषय या नए कौशल को सीखने में पड़ने वाले प्रभाव को अनुक्रमिक स्थानांतरण कहते हैं उदाहरण के लिए यदि शिक्षार्थी जोड़, घटाव, गुणा करने की प्रक्रिया को सीखने के पश्चात भाग देने की प्रक्रिया को सीखता है तो पहले तीन कौशल को सही क्रम से सीखने की योग्यता के कारण भाग देने की प्रक्रिया में सहायता मिलेगी। 

4. समस्तर स्थानांतरण (Horzental Transfer)- 

इस स्थानांतरण को क्षैतिज स्थान अंतरण भी कहते हैं जब किसी भी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, कौशल का लगभग उसी प्रकार की समान परिस्थिति में किया जाता है तो इसे सीखने का क्षैतिज स्थानांतरण कहते हैं 

5. द्विपार्श्विक स्थानांतरण (Bilateral Transfer)- 

मानव शरीर के दो समान पार्श्वीय भाग(Lateral aspects) होते हैं- एक दाँया तथा दूसरा बाँया जब शरीर के दाएँ अंग से सीखे गए कौशल का स्थानांतरण बाएँ अंग के द्वारा कार्य करने में लगभग या सहायक सिद्ध होता है तो उसे द्विपार्श्विक स्थानांतरण कहा जाता है जैसे कोई क्रिकेट का खिलाड़ी दाएं हाथ से बैटिंग करने में कुशल है लेकिन उसका यह कौशल बाएं हाथ से भी बैटिंग करने के दौरान उसकी मदद करेगा।

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