स्मृति और विस्मृति प्रकार, सिद्धांत

  स्मृति और विस्मृति (Memory and Forgetting)


smrti aur vismrti prakaar, siddhaant


स्मृति का अर्थ (Meaning of Memory)


प्राचीन मनोवैज्ञानिक स्मृति को मन की एक शक्ति मानते थे जिसे अभ्यास के द्वारा सुधारा जा सकता है किंतु आधुनिक मनोवैज्ञानिक स्मृति को शक्ति न मानकर एक मानसिक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करते हैं चीजों को पुनः याद करने की शक्ति ही स्मृति है

स्मृति की परिभाषाएं (Definition of Memory)


रॉस के अनुसार, "चेतन स्तर पर उठी हुई संचय शक्ति ही स्मृति है"
वुडवर्थ एवं माक्रिस के अनुसार, "एक स्मृति पूर्व में सीखी गई क्रिया का स्मरण है"
गिलफोर्ड के अनुसार, "सूचनाओ का किसी भी प्रकार भंडारण अथवा धारण ही स्मृति है" 


स्मृति के खंड (Factors of Memory)


स्मृति के मुख्यता चार खंड बताए जाते हैं 

i.सीखना (Learing)

कुछ भी सीखने के पश्चात हम सीखे हुए अनुभव का स्मरण करते हैं इस प्रकार हम देखते हैं कि स्मृति सीखने पर निर्भर करती है और सीखना स्मृति पर दोनों में बड़ा गहरा संबंध है 

ii.धारणा (Retention)

सीखने के बाद धारण की क्रिया शुरू होती है जब हम किसी कार्य कौशल को पहली बार सीखते हैं तो हमें उसमें कठिनाई होती है किंतु बार-बार उसकी पुनरावृत्ति करने पर वह कार्य आसान लगने लगता है इसका कारण यह है कि हम उस कार्य को अपनी स्मृति में धारण कर लेते हैं 

iii.पुनर्स्मृति क्रिया (Recall)

वह मानसिक प्रक्रिया जिसमें पूर्व प्राप्त अनुभवों को बिना मौलिक उद्दीपक के उपस्थित हुए वर्तमान चेतना में पुनः लाने का प्रयास किया जाता है पुनर्स्मृति कहलाता है 

पुनर्स्मृति क्रिया के भेद- 

पुनर्स्मृति की क्रिया के दो भेद होते हैं 

  • तात्कालिक पुनर्स्मृति- उस मानसिक क्रिया को कहते हैं तात्कालिक पुनर्स्मृति क्रिया उस मानसिक क्रिया को कहते हैं जिसमें हम किसी विषय को सीखने के तुरंत बाद उसका पुनः स्मरण करते हैं 
  • विलंबी पुनर्स्मृति- वह मानसिक क्रिया होती है जिसमें किसी विषय को सीखने के कुछ समय पश्चात उसका पुनः स्मरण किया जाता है 

iv.प्रत्यभिज्ञान या पहचानना (Recognition) 

प्रत्यभिज्ञान से भी धारण क्रिया की जांच होती है प्रत्यभिज्ञान एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति परिचित वस्तुओं को अपरिचित वस्तुओं से तथा पूर्वानुभूत वस्तुओं को नवीन वस्तुओं से अलग करता है 

प्रत्यभिज्ञान के भेद- प्रत्यभिज्ञान के दो भेद होते हैं 

  • निश्चित प्रत्यभिज्ञान(Definite Recognition)- जब भूतकाल घटनाओं के विषय में निश्चयपूर्वक ज्ञान हो जाता है कि वह घटना कब और कहां घटी थी तो उसे निश्चित प्रत्यभिज्ञान कहते हैं 
  • अनिश्चित प्रत्यभिज्ञान(Indefinite Recognition)- अनिश्चित प्रत्यभिज्ञान में ऐसा जान पड़ता है कि कोई व्यक्ति अथवा वस्तु परिचित है किंतु उसे कब और कहां देखा था इसका ज्ञान नहीं होता है तो उसे अनिश्चित प्रत्यभिज्ञान कहते हैं 

स्मृति के प्रकार (Types of Memory)


स्मृति के कई प्रकार होते हैं कुछ प्रमुख स्मृति के प्रकार निम्न है 

1.शारीरिक स्मृति (Physical Memory)- कोई शारीरिक कार्य बार-बार करने से अंग क्रिया को स्वयं याद कर लेता है और बुद्धि का प्रयोग नहीं करना पड़ता है जैसे- टाइपराइटर की उंगलियां 

2.यांत्रिक स्मृति (Machanical Memory)- जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को बार बार करता है तो बार-बार कार्य करने से व्यक्ति को उस कार्य को करने की आदत पड़ जाती है और फिर पुनः वह कार्य करने के लिए विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता है  जैसे- एक कार या  बस का ड्राइवर 

3.वैयक्तिक स्मृति (Personal Memory)- इस स्मृति का संबंध स्वयं व्यक्ति के अनुभवों से होता है व्यक्ति अपने जीवन की बहुत सी संकट और परिस्थितियों को याद रखता है और यह भी पुनर्स्मृति करता है कि उस परिस्थिति में किसने सहायता की थी और किसने धोखा दिया था 

4.अवैयक्तिक स्मृति (Impersonal Memory)- यह स्मृति व्यक्ति के बाहर अन्य ऐसी बातों और वस्तुओं से संबंधित होती है जो व्यक्ति के अनुभव क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप से नहीं आती 

5.इंद्रिय स्मृति (Sense Impression)- विभिन्न इंद्रियां भिन्न भिन्न प्रकार की अनुभूतियों को मस्तिष्क तक ले जाती हैं उनसे संबंधित किसी अनुभव की याद उन्हीं के माध्यम से आती है जैसे- इमली को देखकर खटास के स्वाद का याद आना 

6.निष्क्रिय स्मृति (Passive Memory)- हमारे शरीर में कुछ सीखे हुए तथ्य निष्क्रिय रूप से पड़े रहते हैं और इसके पुनर्स्मृति में विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता है 

7.सक्रिय स्मृति (Active Memory)- इस स्मृति में व्यक्ति जानबूझकर कुछ तथ्यों को धारण करता है और उनकी पुनर्स्मृति आवश्यकता पड़ने पर प्रयास के साथ करता है यह स्मृति व्यक्ति को चेतन अवस्था में सदैव रहती हैं और इसका प्रयोग भी बार-बार होता है 

8.तात्कालिक स्मृति (Immediate Memory)- इस स्मृति में प्रायः याद की हुई सामग्री को तत्काल सुना सकते हैं परंतु अधिक दिनों तक टिकने वाली स्मृति नहीं होती 

9.वास्तविक स्मृति (Real Memory)- यह स्मृति व्यक्ति के विवेक तथा बुद्धि पर आधारित है इसमें स्वतन्त्र रूप से विचारो का साहचर्य होता है तथा मानसिक चित्र संम्मिलित होते है 

10.अभ्यस्त स्मृति (Habitual Memory)- अभ्यस्त स्मृति को रटने वाली स्मृति भी कहते है इसमें तथ्यों को बार-बार दुहराकर याद करने का प्रयत्न किया जाता है


 विस्मृति का अर्थ (Meaning of Forgetting)


जब हम किसी विषय को सीखते हैं और कुछ समय के उपरांत जब हम उनके पुनर्स्मरण में सफल होते हैं तो कहा जाता है कि हमारी स्मृति अच्छी है किंतु जब हम स्मृति चिन्हों का पुनर्स्मरण करने में असफल हो जाते हैं तो कहा जाता है हमें वह चीजें विस्मृति हो गई हैं और स्मृति का अर्थ यही होता है कि याद की हुई चीजों का मिटना या भूलना।

वुडवर्थ के अनुसार, "समय स्वतः मस्तिष्क के ऊपर छूटे हुए स्मृति चिन्हों को नहीं मिटा सकता, प्रत्युत किसी विषय को सीखने और पुनर्स्मरण करने के समय के बीच की अवधि में होने वाली विभिन्न क्रियाओं का प्रभाव स्मृति चिन्ह पर पड़ता है फलत: स्मृति चिन्ह मस्तिष्क से मिटते जाते हैं और हम उस विषय को भूल जाते हैं 

विस्मरण के सिद्धांत (Theory of Forgetting)


विस्मरण के मुख्य सिद्धांत निम्न है 

1.अनुप्रयोग सिद्धांत (Disuse or Decay Theory)- 

इंबिगहॉस (Ebbinghaus) ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था इस सिद्धांत के अनुसार अधिगम या सीखने के समय हमारे मस्तिष्क में स्मृति चिन्ह बनते हैं जो समय के व्यतीत होने के साथ-साथ अभ्यास की कमी के कारण कमजोर पड़ जाते हैं इसे हम विस्मृति कहते हैं जिस प्रकार कुछ समय पहले लिखे शब्द धूमिल पड़ जाते हैं उसी प्रकार स्मृति चिन्ह भी धूमिल पड़ जाते हैं ऐसी स्थिति में पुनः स्मरण करना कठिन हो जाता है 

2.हस्तक्षेप या व्यतिकरण सिद्धांत (Interference Theory)- 

जब एक कार्य का अधिगम करने के पश्चात दूसरे कार्य का अधिगम किया जाए तो पहला कार्य दूसरे कार्य के पुनर्स्मरण को प्रभावित करता है तथा दूसरा कार्य पूर्व में किए गए कार्य के पुनर्स्मरण को प्रभावित करता है अधिगम में इस प्रकार की बाधा को व्यतिकरण कहा जाता है व्यतिकरण दो प्रकार के होते हैं 
  • अग्रोन्मुख व्यतिकरण (Proactive Interference)- इस व्यतिकरण में पहले किया गया अधिगम वर्तमान में करे जाने वाले अधिगम या कार्य को प्रभावित करता है अर्थात पहला कार्य दूसरे कार्य को प्रभावित करता है 
  • पृष्ठोंमुख व्यतिकरण (Retroactive Interference)- जब एक कार्य का अधिगम करने के पश्चात दूसरे कार्य किया जाता है और दूसरा कार्य पूर्व किए गए कार्य के स्मरण में अवरोध उत्पन्न करें तो इस प्रकार के अवरोध को पृष्ठोंमुख व्यतिकरण कहते हैं 

3.संकेताश्रित विस्मरण सिद्धांत (Cue-Dependent Forgetting Theory)- 

इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की दीर्घकालिक स्मृति में जो सूचनाएं एकत्र होती हैं उनका भंडारा है स्थाई होता है और टॉमसन (Tomson) का विचार है कि जब दीर्घकालिक स्मृति में भंडारित सूचनाओं का स्मरण किया जाता है तो उपयुक्त संकेतों के अभाव में सूचनाएं सक्रिय होकर पहचान में नहीं आती अतः यह कहा जा सकता है कि विस्मरण का कारण अनुक्रिया में होने वाली प्रतिस्पर्धा नहीं है बल्कि विस्मरण का कारण मुख्य रूप से उयुक्त स्मरण संकेतों का उपलब्ध न होना है स्मृति में क्या भण्डारित होता है यह प्रत्त्यक्षीकरण पर निर्भर करता हैं