पर्यावरण का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र, प्रकृति

पर्यावरण का अर्थ (Meaning of environment)

पर्यावरण का अर्थ



मानव पर्यावरण के उपयोग से न केवल अपनी मूलभूत आवश्यकताओं भोजन, कपड़ा और मकान की पूर्ति करता है अपितु अपना आर्थिक विकास भी करता है 
पर्यावरण दो शब्दों के मेल से बना है परि + आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर तथा आवरण का अर्थ है ढके हुए या घेरे हुए। अतः यह स्पष्ट है कि मनुष्य को जो तत्व सामाजिक रूप से चारों ओर से गिरे हुए हैं उनको ही पर्यावरण कहते हैं 
सी.सी. पार्क के अनुसार, "मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन संपूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है उसे पर्यावरण कहते हैं।" 
विश्व शब्दकोष के अनुसार, "पर्यावरण उन सभी दशाओं, प्रणालियों एवं प्रभाव का योग है जो जीव जातियों के विकास जीवन एवं मृत्यु को प्रभावित करता है।"
ए. जी. टांसले के अनुसार, "प्रभावकारी दशाओं का वह संपूर्ण योग पर्यावरण कहलाता है जिसमें जीव जंतु रहते हैं।"

 

पर्यावरण शिक्षा का संप्रत्यय (Concept of Environmental Education)


पर्यावरण एवं मानव का संबंध अत्यंत प्राचीन है अन्य जीवो की भाँति मनुष्य भी प्रकृति की देन है मानव में प्रकृति में पाए जाने वाले अन्य जीवो के परिपेक्ष्य में पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने के विशेष गुण पाए जाते हैं जैसे- व्यक्ति घर, पंखा, ए.सी. आदि वस्तुएं बना लेता है मनुष्य का क्रमिक विकास अपने पर्यावरण के साथ समायोजन का ही प्रतिफल है मानव पर्यावरण के उपयोग से न केवल अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करता है अपितु अपना आर्थिक विकास भी करता है

पर्यावरण शिक्षा की प्रकृति -


पर्यावरण शिक्षा की निम्न प्रकृति है 

1.पर्यावरण शिक्षा सामाजीकरण की प्रक्रिया है- सामाजीकरण प्रक्रिया का एक गुण पर्यावरण के प्रति लोगों में चेतना का विकास करना है वर्तमान समय में परिस्थितिकी असंतुलन, पर्यावरण प्रदूषण आदि समाज के संपूर्ण प्राणी के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक मनुष्य हास् को रोकने में सहायता प्रदान करें इसके लिए  पर्यावरणीय शिक्षा ही इस सामाजिक गुण का विकास कर सकती है 

2. पर्यावरण शिक्षा द्वारा मानव-पर्यावरण संबंधों का ज्ञान- पर्यावरण शिक्षा एक ऐसा साधन है जो मानव और पर्यावरण संबंधों का ज्ञान कराती है पर्यावरण शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जो यह ज्ञान कराती है कि पर्यावरण किस प्रकार मानव का पालन-पोषण करती है तथा उसके रहन-सहन, खान-पान आदि कार्यों को किस प्रकार प्रभावित करती है इसलिए पर्यावरण शिक्षा का ज्ञान होना व्यक्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है 

3. पर्यावरण शिक्षा का व्यवहारिक ज्ञान पर बल- पर्यावरण शिक्षा और सामान्य शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जहां सामान्य शिक्षा सैद्धांतिक पक्ष पर बल देती है वहीं पर्यावरण शिक्षा व्यवहारिक ज्ञान प्रबल देती है क्योंकि व्यवहारिक ज्ञान के द्वारा ही समाज के लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूक किया जाता जा सकता है 

4. पर्यावरण द्वारा ज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक पक्षों का विकास- पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा मनुष्य को यह जानकारी मिलती है कि किस तरह के पेड़ पौधे लगाए जाएं जो हमारे जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हो जिससे छात्र नवीन अनुभव अर्जित कर के अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकें सकते हैं और उनके ज्ञानात्मक पक्ष का विकास हो सकता है 

5. पर्यावरण शिक्षा का संबंध मानव भविष्य से है- जिस प्रकार सामान्य शिक्षा बालक को भावी जीवन के लिए तैयार करती है उसी तरह पर्यावरण शिक्षा मानव को उसके भविष्य के लिए तैयार करती है पर्यावरणीय शिक्षा मानव को सचेत करती है कि जिस तरह वर्तमान में पर्यावरण का हास् हो रहा है वह हमारे भविष्य के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो सकती है इसलिए पर्यावरण शिक्षा मानव को भविष्य के लिए सचेत करती है 

6. पर्यावरण शिक्षण समन्वित शिक्षा है- यदि पर्यावरण शिक्षा का संबंध अन्य पाठ्य-विषयों से नहीं है तो यह बिल्कुल सही नहीं है क्योंकि पर्यावरण शिक्षा का विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान से घनिष्ठ संबंध है इसके अलावा पर्यावरणीय शिक्षा भूगोल, अर्थशास्त्र, नागरिक शास्त्र आदि विषयों से भी संबंधित है स्वच्छ एवं शुद्ध पर्यावरण ही मानव विकास का आधार है 

7. पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा कौशल एवं मूल्यों का विकास- 
पर्यावरणीय शिक्षा द्वारा व्यक्तियों में विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास किया जा सकता है जैसे- प्राकृतिक संकट पैदा होने पर उसका बचाव कैसे करें कौशल उनको बताकर निपुण बनाया जा सकता है इसके द्वारा ही पर्यावरण में सुधार संभव है 

 

पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र- 


पर्यावरणीय शिक्षा के क्षेत्र निम्न है 

1. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में- विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं क्योंकि विज्ञान जीवन की वास्तविकताओं से परिचित कराती है और प्रौद्योगिकी मानव की आवश्यकता के अनुरूप नवीन ज्ञान का विकास करवाती है अतः इसकी ज्ञान से पर्यावरण में परिवर्तन किया जा रहा है 

2. साहित्य के क्षेत्र में- पर्यावरण शिक्षा का संरक्षण, संवहन, विकास को वर्तमान में जोड़ने का माध्यम साहित्य ही है पर्यावरण के क्षेत्र में सोचने, समझने और लिखने तथा संचार माध्यमों द्वारा प्रसार करने से ही मानव पर्यावरण के प्रति जागरूक हो सकता है 

3. कला एवं संगीत के क्षेत्र में- सामाजिक विज्ञान, कला, संगीत और पर्यावरण पर किए गए खोज से ही पता चलता है कि मनुष्य पर्यावरण से स्थायित्व चाहता है 

4. मानविकी के क्षेत्र में- व्यक्ति प्रकृति से ही सुख की अनुभूति प्राप्त करता है क्योंकि मानविकी ही मानव को पर्यावरण से जोड़ने का कार्य करती है पर्यावरण की निरंतरता पर्यावरण एक परिवर्तनशील प्रक्रिया है जो उसकी निरंतरता का कारण है पर्यावरण मानव द्वारा किए गए नुकसान का कुछ हद तक पूर्ति करता है उसकी समाप्ति के बाद पर्यावरण भी दूषित हो जाता है

 

पर्यावरण संरक्षण के राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास (Efforts at national level for environmental protection)


भारत में भी पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति को देखकर अनेक सरकारी और गैर सरकारी संगठनों ने पर्यावरण प्रबंध एवं संरक्षण के लिए चिंता व्यक्त की है स्वयं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार ने राष्ट्रीय पर्यावरण जागरूकता अभियान चला रखा है तथा पर्यावरण प्रबंध एवं संरक्षण के लिए अनेक समितियों एवं परिषदों की स्थापना की है इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण संरक्षण के उद्देश्य से कुछ महत्वपूर्ण कानून भी बनाए हैं जिनका विवरण निम्नवत है 

1. पर्यावरण नियोजन एवं सहयोग राष्ट्रीय समिति 1972 
2. राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषदों की स्थापना 1976 
3. कीटनाशक अधिनियम 1968 
4. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 
5. जल प्रदूषण निरोधक एवं नियंत्रण अधिनियम 1974 
6. जल प्रदूषण कर अधिनियम 1978 
7. वायु प्रदूषण निरोधक एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 
8. केंद्र एवं राज्य सरकारों में वन पर्यावरण मंत्रालय की स्थापना 
9. पर्यावरण विभाग की स्थापना 1980 
10. पर्यावरण विभाग के अंतर्गत भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग तथा राष्ट्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय भी पर्यावरण प्रबंध एवं संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत है

पर्यावरण संरक्षण के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास(International efforts for environmental protection)- 


वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय स्तर की समस्या बन चुकी है अतः अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यापक प्रयास किए गए हैं अनेक वैज्ञानिक तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने पर्यावरण प्रबंधन एवं क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण प्रबंध एवं संरक्षण के लिए अनेक संगठन कार्यरत हैं इनमें से कुछ महत्वपूर्ण संगठन अंतर्राष्ट्रीय जीव वैज्ञानिक कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय जल कार्यक्रम, मानव एवं जैव मंडल कार्यक्रम, पर्यावरण समस्याओं पर वैज्ञानिक समिति तथा यूनेप, मॉन्ट्रियाल, प्रोटोकॉल, वियना सम्मेलन आदि है इन संस्थाओं के प्रयास से पर्यावरण संरक्षण के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जागरूकता आई है