केन्द्रीय प्रवृत्ति, मध्यमान, मध्यांक, बहुलांक, विशेषताएँ

 केन्द्रीय प्रवृत्ति (Central tendency)



सांख्यिकीय में केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीन माप हैं- मध्यमान, मध्यांक, बहुलांक। इन तोनों में कितनी समानता होगी, यह आवृत्ति वितरण की प्रकृति पर निर्भर करता है। यदि आवृत्ति वितरण सिमेट्रिकल है तो मध्यमान, मध्यांक, बहुलांक का मान समान आता है और जब आवृत्ति वितरण में आँकड़े वक्र के मध्य में एकत्रित न होकर किसी एक दिशा की तरफ होते हैं, तब इनके मान भिन्न-भिन्न होते हैं। यदि वितरण में धनात्मक विषमता है, तो मध्यमान मान सबसे अधिक, मध्यांक का मान उससे कम और बहुलांक मान सबसे कम होता है। मध्यमान सबसे अधिक शुद्ध, मध्यांक उससे कम और बहुलांक सबसे कम शुद्ध होता है।

मध्यमान (Mean)

मध्यमान की विशेषताएँ- साधारणतः जहाँ कहीं औसत शब्द का प्रयोग होता है वहाँ उसका अर्थ मध्यमान से होता है, जैसे- औसत तापक्रम, औसत वर्ष, औसत उपज, औसत मूल्य आदि । 

1. सामाजिक तथा आर्थिक अध्ययन अथवा व्यापार और वाणिज्य में मध्यमान का प्रयोग किया जाता है।

2. सांख्यिकीय राशियों की गणना में किया जाता है।

3. मध्यमान दिये हुए विवरण का केन्द्र बिन्दु है।

4. वितरण का प्रत्येक आँकड़ा मध्यमान की स्थिति को प्रभावित करता है, जैसे किसी भी वितरण के आँकड़ों में किसी आँकड़े को घटाने या बढ़ाने पर मध्यमान भी घट या बढ़ जाता है।

5. केन्द्रीय प्रवृत्ति के विभिन्न मापों में मध्यमान सर्वाधिक शुद्ध व उत्तम मान है। 

6. मध्यमान की मध्यांक, बहुलांक की अपेक्षा मानक त्रुटि कम होती है। 

7. सामान्य वितरण के छोरों पर स्थित आँकड़े मध्यमान के मान को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं।

मध्यमान का प्रयोग कब करना चाहिए?

1. जब प्राप्तांकों का वितरण सामान्य होता है। 

2. जब सबसे अधिक शुद्ध और विश्वसनीय केन्द्रीय प्रवृत्ति का पता लगाना हो

3. जब सत्य बहुलांक ज्ञात करना होता है। 

4. माध्यमान का प्रयोग सह-सम्बन्ध, प्रामाणिक त्रुटि या प्रामाणिक विचलन ज्ञात करने के लिए भी होता है। 

5. जब वितरण के प्रत्येक अंक को महत्त्व देना होता है।

6. जब सबसे अधिक विश्वसनीय केन्द्रीय प्रवृत्ति का पता लगाना हो, तब मध्यमान का प्रयोग करना होता है। कहीं कहीं पर मध्यमान का प्रयोग नहीं भी करना चाहिए। जब दिया हुआ अंक वितरण हो, तब मध्यमान का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसके अतिरिक्त जब अंक वितरण असामान्य हो, तब भी मध्यमान का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

 

मध्यांक (Median)

मध्यांक का अर्थ उस बिन्दु से है जो क्रम में व्यवस्थित अंकों को दो भागों में बाँट दे। 

गैरेट के अनुसार- "जब अव्यवस्थित अंक या अन्य माप क्रम में व्यवस्थित हो, तो मध्य का अंक मध्यांक कहलाता है।" 

मध्यांक का प्रयोग कब करना चाहिए?

1. मध्यांक का प्रयोग उस समय होता है, जब प्राप्तांकों का वितरण सामान्य नहीं होता है। 

2. जब बहुत अधिक शुद्धता और विश्वसनीयता की आवश्यकता नहीं होती है 

3. जब केन्द्रीय प्रवृत्ति शीघ्र मालूम करनी होती है।

4. जब अंक सामग्री का वास्तविक मध्य विन्दु ज्ञात करना होता है। 

5. मध्यांक का प्रयोग उस समय उपयोगी होता है, जबकि किसी वर्ग में किसी व्यक्ति की सापेक्ष ज्ञात करनी होती है तब यह कहकर स्थिति प्रकट की जा सकती है कि व्यक्ति मध्यांक के ऊपर है या नीचे अर्थात् वह आधों से अच्छा है अथवा बुरा है।

6. मध्यांक का प्रयोग उस दशा में किया जाता है, जबकि आवृत्ति वितरण के दोनों सिरों के मान या तो प्राप्त नहीं है या असम्भव है या असामान्य है। 

7. जब प्राप्तांक अलग-अलग नहीं मापे जा सकते, तब भी मध्यांक का ही प्रयोग किया जाता है।

8. जब किसी विषय में व्यक्तियों को संख्यात्मक मान नहीं दे सकते, जैसे- बुद्धिमान, योग्यता आदि तब भी इसी मध्यांक का प्रयोग किया जाता है।

9. जब बहुलांक ज्ञात करना हो।

10. छोटे अंक समूहों का मध्यांक कम समय में ज्ञात किया जा सकता है। 

11. जब अंक वितरण विकृत हो तब भी मध्यांक का ही प्रयोग करना लाभप्रद होता है। 

बहुलक (Polymer)

"जिस प्राप्तांक की आवृत्ति सबसे अधिक होती है, उसे प्राप्तांक की दो हुई अंक सामग्री का बहुलक कहते हैं।"

बहुलक की विशेषताएँ (Characteristics of the Polymer)

1. बहुलक केन्द्रीय प्रवृत्ति का अधिक विश्वसनीय मानं नहीं है।

2. बहुलक की गणना करना अन्य मापों की अपेक्षा अधिक सरल है।

3. अव्यवस्थित अंक समूहों में बहुलांक की स्थिति निश्चित नहीं होती है। ऐसे समूहों में एक से अधिक बहुलांक भी हो सकता है।

बहुलक का प्रयोग कब करना चाहिए?


1. बहुलांक का उपयोग दिन-प्रतिदिन विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रूप से व्यवसाय क्षेत्र में बढ़ता ही जा रहा है, जैसे- यदि यह ज्ञात हो जाये कि बाजार में किस नम्बर का मोजा अथवा जूता अधिक विकता है, तो उसी के बनवाने पर अधिक समय और परिश्रम व्यय किया जायेगा। इससे स्पष्ट है कि व्यापार में पूर्वानुमान करने के लिए बहुलांक का विशेष महत्त्व है। 

2. बहुलांक का प्रयोग उस समय किया जाता है जब आवृत्ति वितरण अपूर्ण होता है और उसके निम्नतम एवं उच्चतम प्राप्तांक ज्ञात नहीं होते हैं। 

3. जब केन्द्रीय प्रवृत्ति को ज्ञात करने की शीघ्रता होती है। 

4. बहुलांक का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि केन्द्रीय प्रवृत्ति का केवल अनुमान लगाना होता है।

केन्द्रीय प्रवृत्ति का चुनाव (Election of central tendency)

छोटे वितरण में बहुलांक का प्रयोग उपयुक्त नहीं होता है तथा अन्य केन्द्रीय प्रवृत्तियों के समान शुद्ध भी कम है, फिर भी कुछ परिस्थितियों में मध्यमान की अपेक्षा मध्यांक उत्तम मान होता है। वितरण के सिरों के पदों के असामान्य होने पर मध्यमान का प्रयोग न करके मध्यांक का प्रयोग ही उत्तम होता है। शिक्षा के क्षेत्र में सबसे उत्तम केन्द्रीय प्रवृत्ति मध्यांक ही है जैसे– एक फैक्ट्री में 100 व्यक्ति कार्य करते हैं, जिनमें 5 व्यक्तियों का वेतन 1000 से ऊपर है और शेष 95 व्यक्ति 200 और 500 के बीच में वेतन पाते हैं। ऐसी परिस्थिति में मध्यमान को आय का औसत मानना अनुचित होगा, क्योंकि जो मान आयेगा वह साधारण कर्मचारी की आय से बहुत ऊँचा होगा, किन्तु मध्यांक के मान पर 5 व्यक्तियों के ऊँचे वेतन का प्रभाव नहीं पड़ेगा इसलिए यहाँ मध्यांक का प्रयोग ही अति उचित है।

कुछ परिस्थितियों में मध्यमान ही उत्तम औसत होता है। नमूना के अध्ययन में मध्यमान में अधिक स्थिरता होती है।

चूँकि मध्यमान गणितीय है। अतः उसकी सहायता से अनेक महत्त्वपूर्ण सांख्यिकीय राशियों की गणना की जाती है, जबकि यह गुण अन्य किसी केन्द्रीय प्रवृत्ति में नहीं पाया जाता है।

मध्यमान में एक अन्य गुण यह भी है कि जब कई वर्णों के माध्य से सम्पूर्ण सामग्री का माध्य ज्ञात करना होता है। तो मध्यमान निकालने के लिए वर्गों को एक आवृत्ति वितरण में नहीं। सजाना पड़ता है। विभिन्न वर्गों के मध्यमान और संचयी आवृत्ति संख्या से सम्पूर्ण सामग्री का मध्यमान प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु मध्यांक या बहुलांक को बिना आवृत्ति वितरण के नहीं निकाला जा सकता है।

मध्यमान बिना वर्गीकरण के ही निकाला जा सकता है, जबकि मध्यांक और बहुलांक को सही-सही निकालने के लिए आवृत्ति वितरण की आवश्यकता होती है। आवृत्ति वितरण में विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण से मध्यमान और मध्यांक के मान पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, किन्तु बहुलांक के मान में काफी अन्तर पड़ जाता है इसलिए मध्यांक तथा मध्यमान प्राय: अंक वितरण के मध्य में स्थित होते हैं, किन्तु बहुलांक कभी-कभी वितरण की सीमाओं के निकट स्थित होता है। इसलिए तब उसे प्राप्तांकों का प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता है।

कभी कभी बहुलांक ही सबसे उत्तम माध्यम होता है, जबकि प्राप्तांक सक्रम में नहीं होते हैं। अत: कोई एक माध्य सभी परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं होता है। उसका चुनाव परिस्थिति पर आधारित होता है, किन्तु बहुत-सी बातों को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि मध्यमान ही सबसे उत्तम औसत होता है, किन्तु शिक्षा के क्षेत्र में प्राय: मध्यांक ही सबसे उचित औसत होता है।

केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापकों की तुलना करते हुए यूल एण्ड केण्डाल ने लिखा है " औसत के रूप में मध्यमान सर्व सामान्य कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। मध्यमान की तुलना में मध्यांक कुछ अधिक सरलता से ज्ञात हो जाता है। औसत के रूप में बहुलांक साधारण प्रयोग के लिए बहुत ही कम उपयुक्त है।"