सह-सम्बन्ध, प्रकार

 सह-सम्बन्ध (Correlation)



सह-सम्बन्ध (Correlation) की उत्पत्ति दो शब्दों (Co-relation) से हुई है, जिसका अर्थ है- पारस्परिक सम्बन्ध सह-सम्बन्ध इस बात का सूचक होता है कि दो वस्तुएँ कहाँ तक आपस में सम्बन्धित हैं, जैसे- यह कहा जा सकता है कि गणित और भौतिकशास्त्र में सह-सम्बन्ध है, क्योंकि यह दोनों विषय आपस में एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। जो छात्र गणित में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं, वे भौतिकशास्त्र में भी अच्छे अंक प्राप्त करते हैं। यदि हम जानना चाहें कि क्या अच्छे शारीरिक विकास वाले व्यक्ति का मानसिक विकास भी उतना ही अच्छा है, तो हमें व्यक्ति की दोनों विशेषताओं का परीक्षणों द्वारा मापन करना होगा और प्रत्येक व्यक्ति के दोनों विषयों के अलग-अलग प्राप्तांकों को तालिका में जोड़ों के रूप में व्यवस्थित करके सांख्यिकीय गणना द्वारा दोनों में सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है, जिसे सह-सम्बन्ध कहते हैं। दो या दो से अधिक चल राशियों, घटनाओं या वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्ध को सह-सम्बन्ध कहते हैं।

गिलफोर्ड के अनुसार- "सह-सम्बन्ध गुणांक वह अकेली संख्या है, जो यह बताती है कि दो वस्तुएँ किस सीमा तक एक दूसरे से सह-सम्बन्धित है तथा एक के परिवर्तन दूसरे के परिवर्तन को किस सीमा तक प्रभावित करते हैं।"

फर्ग्यूशन के अनुसार- "सह-सम्बन्ध का उद्देश्य दो चलराशियों में पायी जाने वाली सम्बन्ध की मात्रा का पता लगाना होता हैं।"

डी. एन. श्रीवास्तव के अनुसार- "जब दो चलराशियाँ इस प्रकार सम्बन्धित हो कि एक चलराशि के बढ़ने से दूसरी चलराशि बढ़े या घंटे या इसके विपरीत हो (अर्थात् दूसरी चलराशि के बढ़ने से पहल चलराशि बढ़े या घंटे), तो उन दोनों चलराशियों में सह-सम्बन्ध पाया जाता है।"

सहसम्बन्ध गुणांक द्वारा दो या दो से अधिक चलराशियों के सह-सम्बन्ध की मात्रा को स्पष्ट करते हैं। सहसम्बन्ध को ग्रीक भाषा के शब्द RLO; P.R या r संकेतों को प्रदर्शित करते हैं।

सह-सम्बन्ध के ज्ञान का उपयोग क्रियात्मक रूप से करने के लिए शिक्षा तक सांख्यिकी वेत्ताओं ने इसे सांख्यिकी रूप में प्रकट कर दिया है अर्थात् यह सम्बन्ध अंकों में व्यक्त किया जा सकता है और इसकी मात्रा +1 और 1 के बीच रहता है।

सहसम्बन्ध के प्रकार (Type of correlation)


सहसम्बन्ध के प्रकार निम्नलिखित हैं


1. धनात्मक सहसम्बन्ध- जब पहली चलराशि के बढ़ने से दूसरी चलराशि भी बढ़े या पहली चलराशि घटने से दूसरी भी घंटे अर्थात् परिवर्तन एक ही दिशा में होते हैं, तो दोनों राशियों में धनात्मक सह-सम्बन्ध होता है, जैसे- बुद्धि और परीक्षा के प्राप्तांकों में धनात्मक सह-सम्बन्ध है, क्योंकि बुद्धि बढ़ने से प्राप्तांकों की संख्या बढ़ती है और अधिक प्राप्तांकों को देखकर कह सकते हैं कि अमुक बालक बुद्धिमान है।


2. ऋणात्मक सहसम्बन्ध- जब पहली चलराशि के बढ़ने से दूसरी चलराशि के घंटे या पहली चलराशि से दूसरी चलराशि बढ़े या दूसरी चलराशि के बढ़ने से पहली चलराशि घटे या दूसरी चलराशि के घटने से पहली चलराशि के बढ़ने से पहली चलराशि बढ़े तो चलराशियों में ऋणात्मक सह सम्बन्ध होता है अर्थात् जब दो चलराशियों में विपरीत दिशा में परिवर्तित होता है, तो उनमें ऋणात्मक सहसम्बन्ध होता है, जैसे- अधिक बहिर्मुखी बालकों की पास होने के प्रतिशत कम होती है या कम पास प्रतिशत बालक बहिर्मुखी अधिक होते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बहिर्मुखी बालक अधिक पास होते हैं अथवा पास प्रतिशत का बहिर्मुखी होते हैं। 

3. शून्य सह सम्बन्ध- जब पहली चलराशि की वृद्धि घटाव दूसरी चलराशि में कोई अन्तर उत्पन्न न करे, तब दोनों का सम्बन्ध शून्य सहसम्बन्ध कहलाता है। जैसे- मनुष्य आयु (और उसकी धनराशि में शून्य सह-सम्बन्ध है। 

4. रेखात्मक सहसम्बन्ध- जब दो चलराशियों के प्राप्तांकों में इस प्रकार परिवर्तन हो कि उनका ग्राफ एक सरल रेखा हो, तो इस प्रकार के सह सम्बन्ध को रेखात्मक सह सम्बन्ध कहते हैं, जैसे- आयु और लम्बाई चलराशियों से सम्बन्ध को ग्राफ पर प्रदर्शित करने पर चरों को वक्र रेखा सरल या सीधी वक्र रेखा है। इनके सम्बन्ध को रेखीय सह सम्बन्ध कहते हैं।

5. वक्रात्मक सह-सम्बन्ध- इस प्रकार सह-सम्बन्ध में एक विशेष सीमा तक दो चरों में सह-सम्बन्ध धनात्मक है और इस सीमा के बाद सह सम्बन्ध ऋणात्मक हो जाता है। में जैसे आयु और स्मरण शक्ति में ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है, क्योंकि आयु के बढ़ने के साथ-साथ स्मरण शक्ति एक निश्चित आयु तक ही बढ़ती है और तब केवल आयु बढ़ती जाती है। आगे चलकर स्मरण शक्ति के बढ़ने के स्थान पर घटने लगती है। जिस स्थान से स्मरण शक्ति घटने लगती है उसके आगे से ऋणात्मक सह-सम्बन्ध है।