क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषा, विशेषताएँ

 क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definitions of action research)



क्रियात्मक अनुसन्धान एक तत्स्थान अध्ययन है, जिसका लक्ष्य किसी तात्कालिक समस्या का हल खोजना है अर्थात् जहाँ समस्या वास्तव में उत्पन्न हुई है यहाँ उसके हल के लिए किया गया शोध क्रियात्मक अध्ययन है। किसी भी स्कूल में कुछ ऐसी समस्याएँ होती हैं, जिनके तात्कालिक अध्ययन और हल ही आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ, यदि किसी स्कूल विशेष में छात्रों के अनुशासनहीनता काफी बढ़ गयी है, तो इस समस्या का हल वहीं के अध्यापकों द्वारा वहीं अध्ययन कर प्राप्त किये जाने का प्रयास क्रियात्मक अनुसन्धान कहलाता है। क्रियात्मक अनुसन्धान की कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

कोरे के अनसार- "वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यावहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक रूप से उनकी समस्याओं का अध्ययन करता है, ताकि वह उनके निर्णयों और क्रियाओं को निर्देशित, सुधार और मूल्यांकित कर सके, इसे उनके लोग क्रियात्मक अनुसन्धान कहते हैं।" 

मौले के अनुसार- "शिक्षक के समक्ष उदित होने वाली समस्याओं में से बहुतायत समस्याएँ तात्कालिक समाधान चाहती हैं। समय पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान जिनका लक्ष्य तात्कालिक समस्या का समाधान करना होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से जाने जाते हैं। "

कार्टर वी. गुड. के अनुसार- "क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षकों, निरीक्षकों एवं प्रशासकों द्वारा अपने निर्णयों तथा कार्यों में गुणात्मक सुधार लाने के लिए किया जाने वाला अनुसंधान है।"

एस. वी. वेल के अनुसार- "क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालयों की समस्याओं से सम्बन्धित विद्यालय कार्यकर्त्ताओं द्वारा विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार लाने के लिए किया गया अनुसंधान है।"

मैकग्रेथ एवं अन्य के अनुसार- "क्रियात्मक अनुसंधान संगठित गवेषणा की क्रिया है, जिसका उद्देश्य व्यक्ति विशेष अथवा समूह की क्रिया में परिवर्तन तथा विकास के लिए अध्ययन करना तथा रचनात्मक सुझाव प्रस्तुत करना है।"

क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषता (Specialty of action research)

क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं 

1. यह मूलभूत अनुसन्धान से भिन्न होता है- क्रियात्मक अनुसन्धान मूलभूत शोध से भिन्न होता है। मौलिक शोध का उद्देश्य सामान्यीकरण करना और नियमों की खोज करना होता है। अतः मूलभूत शोध से प्राप्त परिणामों और निष्कर्मों का प्रयोग उसी प्रकार की अनेक घटनाओं की व्याख्या करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययनों का न्यादर्श बड़ा होता है तथा उससे प्राप्त प्रदत्तों का विश्लेषण भी जटिल होता है, जबकि क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य बहुत सीमित होता है। मौलिक शोध का प्राण कहे जाने वाले सामान्य नियमों की खोज एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन आदि क्रियात्मक शोध के उद्देश्य नहीं होते। क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य वर्तमान कार्य पद्धति में सुधार लाना तथा उससे सम्बन्धित किसी समस्या का हल खोजना आदि होता है। मौली के अनुसार किसी विशिष्ट समस्या को सुलझाने के लिए क्रियात्मक अनुसन्धान किया जाता है।


2. एक वैज्ञानिक एवं सुगठित कार्य प्रणाली की विधि- क्रियात्मक अनुसन्धान की नियमित कार्य प्रणाली उसकी दूसरी विशेषता है। किसी भी शैक्षिक संस्थान में कार्यकर्त्ताओं को प्रतिदिन अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उनको हल करने के लिए उन्हें निर्णय भी लेने पड़ते हैं तथा इन निर्णयों को आरोपित भी करना पड़ता है। इन निर्णयों का कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। यह प्रायः इन व्यक्तियों की अपनी बुद्धि, सामान्य ज्ञान और अनुभवों के आधार पर लिये जाते हैं, जो त्रुटिपूर्ण भी हो सकते हैं। क्रियात्मक अनुसन्धान इस प्रकार के निर्णय लेने के लिए ठोस वैज्ञानिक एवं वस्तुनिष्ठ आधार प्रदान करता है। उदाहरणार्थ, यदि यह निर्णय लिया जाता है कि कक्षा में अनुपस्थित छात्रों को अर्थदण्ड दिया जाय तो इस निर्णय का कोई ठोस आधार नहीं है। हमें पता लगाना होगा कि बच्चे कक्षा में क्यों नहीं आते। इसके लिए एक क्रियात्मक शोध करना होगा। यदि इस शोध के परिणाम इंगित करते हैं कि बालक कक्षा में इस कारण नहीं आते, क्योंकि शिक्षक कक्षा में पढ़ाते नहीं हैं। अत: प्राचार्य को शिक्षकों को कक्षा में पढ़ाने के लिए कहना होगा अन्यथा उन पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करनी चाहिए।


3. विद्यालयों की स्थिति में सुधार लाने की विशिष्ट विधि- क्रियात्मक अनुसन्धान विद्यालय की स्थिति में सुधार लाने की एक विधि है। कोरे की इस अवधारणा का केन्द्र बिन्दु ही 'विद्यालय सुधार' था। अतः इसके द्वारा विद्यालय की छोटी-छोटी समस्याओं को भी हल करने पर बल दिया जाता है। इन समस्याओं को हल करने के लिए क्रियात्मक शोध किये जाते हैं, जिनसे वस्तुनिष्ठ एवं विश्वसनीय परिणाम प्राप्त किये जाते हैं। क्रियात्मक शोध इसलिये किये जाते हैं कि विद्यालय के समस्त अंगों को सुचारू रूप से चलाने में सहायता प्राप्त हो ।

4. सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया की महत्त्वपूर्ण कड़ी- शिक्षा जगत् में आज कोरे क्रियात्मक अनुसन्धान का बहुत अधिक महत्त्व है। वस्तुतः यह शिक्षण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। अध्यापक का मुख्य कार्य बालकों को पढ़ाना और उनके व्यक्तित्व का विकास करना है, इसलिये क्रियात्मक अनुसन्धान भी उनके उत्तरदायित्व का अभिन्न अंग है। एक अच्छा अध्यापक सदैव अपने अध्यापन काल में प्रभावकारी विधि को ग्रहण करता है। साथ ही अपनी शिक्षण विधियों को सुधारने, अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने तथा प्रभावशाली बनाने के लिए वह क्रियात्मक अनुसन्धान करता है। अध्यापक में कौन-से व्यवहार छात्रों पर अच्छा प्रभाव डालते हैं, कौन-से व्यवहार से छात्रों में असन्तोष उत्पन्न होता है, किस प्रकार पढ़ाने से छात्र अधिक सीखते हैं, कौन-सी अभिप्रेरणाएँ अधिक प्रवल होती हैं, आदि का ज्ञान समय-समय पर किये गये वस्तुनिष्ठ अध्ययनों से होता है तथा यह ज्ञान अध्यापक को अपना उत्तरदायित्व अधिक प्रभावशाली रूप से निभाने में सहायक होता है। इन सभी क्रियाओं को जानकारी क्रियात्मक अनुसन्धान से मिलती है, जो स्कूल के निर्णयों, योजनाओं तथा कार्यवाहियों को अंजाम देने में सहायक होती हैं।

5. क्रियात्मक एवं व्यावहारिक अनुसन्धान- प्रायः क्रियात्मक अनुसन्धान और व्यावहारिक अनुसन्धान परस्पर भ्रम उत्पन्न करते हैं। दोनों प्रकार के अनुसन्धानों में उन परिणामों को स्थापित किया जाता है, जो समस्याओं के हल एवं कार्य प्रणालियों को समुचित बताने में प्रयोग किये जा सकते हैं, परन्तु दोनों प्रकार के अनुसन्धान में बहुत अन्तर है। व्यावहारिक शोध मौलिक शोध के अधिक निकट होता है, क्योंकि दोनों प्रकार के अनुसन्धान बड़े न्यादर्श पर किये जाते हैं तथा इनसे प्राप्त परिणाम अधिक व्यापक होते हैं एवं इन्हें अधिक नियन्त्रित परिस्थितियों में सम्पादित किया जाता है, जबकि क्रियात्मक अनुसन्धान विद्यालय और कक्षा की सीमाओं तक सीमित रहता है। इसके अतिरिक्त क्रियात्मक शोध पर औपचारिकता के बन्धन बहुत कम होते हैं। 

इनके अतिरिक्त अनुसन्धान की निम्नांकित विशेषताओं का भी उल्लेख मिलता है

1. क्रियात्मक अनुसन्धान परिस्थितिजन्य शोध होता है। इसमें विद्यालय से सम्बन्धित किसी विशिष्ट सन्दर्भ में समस्याओं का हल किया जाता है। दूसरे शब्दों में, यह किसी स्थान विशेष पर किया गया वह अध्ययन है, जिसका संचालन किसी तात्कालिक समस्या का स्थायी हल ढूँढ़ने के लिए किया जाता है। 

2. क्रियात्मक अनुसन्धान सर्वथा अनौपचारिक सन्दर्भ में क्रियान्वित होता है। यह वास्तविक और यथार्थ से सम्बन्धित होने के कारण गत्यात्मक होता है।

3. वर्तमान में प्रचलित या आरोपित निर्णयों को सुधारना ही क्रियात्मक अनुसन्धान का उद्देश्य होता है, जिससे वर्तमान परिस्थिति बेहतर एवं उपयोगी हो सके। 

4. क्रियात्मक शोध का स्वरूप उतना ही स्पष्ट एवं मूर्त होता है, जितना कि स्थानीय परिस्थिति का।

5. क्रियात्मक अनुसन्धान में उपकल्पना प्रस्तावित कार्य तथा उसके सम्भावित परिणाम के रूप में कथित की जाती है जैसा कि उपकल्पना को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि यह समस्या का सम्भावित उत्तर होती है, पर मौलिक अनुसन्धान की उपकल्पना की तरह यह कार्यकारण सम्बन्धों को इंगित नहीं करती। इसी कारण इसे क्रियात्मक उपकल्पना कहते हैं।

6. क्रियात्मक अनुसन्धान का अभिकल्प लचीला एवं परिवर्तनीय होता है। यह मौलिक शोध के अभिकल्पों की तरह स्थिर और जटिल नहीं होता है।

7. क्रियात्मक अनुसन्धान आत्म-मूल्यांकनपरक होता है। इसका मतलब यह है कि इसके आरोपण की अवधि में इससे उत्पन्न परिवर्तनों एवं उनके प्रभावों का आकलन शोधकर्ता द्वारा निरन्तर किया जाता है।

8. इस प्रकार के शोध के परिणामों को अनौपचारिक रूप अपने व्यावसायिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करते हुए सम्प्रेषित किया जाता है, जो मौखिक भी हो सकते हैं। 9. क्रियात्मक अनुसन्धान के ब्लूम के अनुसार दो महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं- प्रथम, निदानात्मक और द्वितीय, उपचारात्मक ।