पाठ्य सहगामी क्रियाओं का अर्थ, प्रकार, महत्त्व, लक्ष्य

 पाठ्य सहगामी क्रियाओं का अर्थ(Meaning of co-curricular activities)



आधुनिक काल में शिक्षा शास्त्रियों के अनुसार पाठ्य सहगामी क्रियाओं का शिक्षण में अत्यधिक महत्व है आधुनिक समाज में पाठ्य सहगामी क्रियाओं को पाठ्यक्रम के एक अंग के रूप में देखा जाने लगा है वस्तुतः जो भी क्रियाएं या अनुभव शिक्षण कार्य में अपना महत्व रखते हैं वही क्रियाएं पाठ्य सहगामी क्रियाएं कहलाती हैं अतः कहा जा सकता है कि पाठ्य सहगामी क्रियाओं के द्वारा शिक्षा के साथ-साथ छात्र के अन्य पक्षों भी विकास होता है

 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं के प्रकार(Types of co-curricular activities)- 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं के प्रकार निम्न है 

1.विद्यालय के संगठन से संबंधित क्रियाएं- इसके अंतर्गत छात्र परिषद, छात्र समुदाय, सीनेट, कार्यकारिणी समितियां आदि आती हैं 

2. सामुदायिक क्रियाएं- इसके अंतर्गत शिक्षा सप्ताह, स्वास्थ्य सप्ताह, साक्षरता सप्ताह, जूनियर नागरिक क्लब आदि आते हैं 

3. धार्मिक एवं नागरिक क्लब- धार्मिक शिक्षा संबंधी संगठन स्काउटिंग, सामाजिक सेवा क्लब, जूनियर रेडक्रॉस, प्राथमिक चिकित्सा समूह आदि 

4. सामाजिक क्रियाएं- इसके अंतर्गत पिकनिक, नृत्य, स्वागत समिति, विभिन्न पार्टियों का आयोजन आदि आते हैं 

5. शारीरिक परीक्षण- इसमें सामूहिक खेल, बाह्य एवं आंतरिक खेल, वैयक्तिक खेल, व्यायाम, पी.टी. आदि आते हैं 

6. विद्यालय प्रकाशन- इसके अंतर्गत समाचार पत्र, विद्यालय पत्रिका आदि आते हैं 

7. नाटक तथा भाषण संबंधी क्रियाएं- नाटक, एकाकी, वाद-विवाद, प्रतियोगिता आदि 

8. संगीत संबंधी क्रियाएं- संगीत क्लब, बैंड क्लब आदि आते हैं 

9. विषय संबंधी क्रियाएं- इसके अंतर्गत विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों के समुदाय आते हैं 

10. विविध क्लब क्रियाएं- इसके अंतर्गत विषयगम क्लबों के अतिरिक्त अन्य उपलब्ध आते हैं जैसे- रेडियो, फोटो संग्रह क्लब आदि 

11. ऐसेंबली क्रियाएं- इसके अंतर्गत प्रधानाचार्य, शिक्षक छात्र या समाज के नेताओं द्वारा भाषण, फिल्म शो आदि आते हैं

 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्व (Importance of co-curricular activities)

पाठ्य सहगामी क्रियाओं का महत्व निम्न है 

1. पाठ्य सहगामी क्रियाएं पाठ्यक्रम को रोचक बनाती हैं- निरंतर पढ़ते-लिखने रहने से छात्रों का जी ऊब जाता है इसलिए बीच-बीच में उनका खेलते-कूदते रहना है या अन्य कोई काम करते रहना जरूरी है सहगामी क्रियाओं के अभाव में पाठ्यक्रम की दशा उस मार्ग सी हो जाती है जिस पर मुसाफिरों के आराम, मनोरंजन और खाने पीने की व्यवस्था नहीं रहती जिस पर जाना लोग कतई पसंद नहीं करते 

2. अवकाश के समय का सदुपयोग- बालक निरंतर पढ़ते लिखते रहने से ऊब जाते हैं अतः उनको बीच-बीच में अवकाश देना चाहिए  इस अवकाश को बेकार की बातें एवं शरारती में खर्च कर सकते हैं इसलिए अध्यापकों का यह परम कर्तव्य है कि वे इन खाली समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करें 

3. स्वानुशासन- बच्चों को स्वानुशासित रहने का जितना अवसर सहगामी क्रियाओं में मिलता है उतना कक्षा के कार्यों में नहीं कक्षाओं में तो बच्चे अध्यापकों के नियंत्रण में रहते हैं पर खेलकूद आदि सभी प्रकार की सहगामी क्रियाओं में वे बिल्कुल स्वतंत्र रहते हैं 

4. सामाजिक विकास- स्वतंत्र वातावरण में परस्पर एक दूसरे के साथ हिल मिलकर काम करने से सामाजिक गुणों का विकास होता है सामाजिक गुणों के विकास का अवसर जितना स्वतंत्र वातावरण में मिलता है उतना कक्षा में नहीं बालक एक दूसरे के संपर्क में तभी आते हैं जब उनको साथ साथ मिलकर काम करने का अवसर मिलता है 

5. शारीरिक विकास- स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है स्वास्थ्य ही सफलता की कुंजी है बालकों का शारीरिक विकास उनका सबसे प्रमुख विकास है जिस राज्य में स्वास्थ नागरिक रहते हैं उस राज्य में किसी प्रकार की कमी नहीं हो सकती इसलिए प्रत्येक विद्यालय का काम स्वस्थ नागरिकों का निर्माण करना है यह कहने की आवश्यकता नहीं कि बालकों के शारीरिक विकास का अवसर केवल सहगामी क्रियाओं में ही मिलता है कहीं और नहीं। 

6. मानसिक विकास- सहगामी क्रियाओं से बालकों के मानसिक विकास का भी पर्याप्त अवसर मिलता है सहगामी क्रियाओं में बालक अपनी रूचि के अनुसार काम करने के लिए स्वतंत्र रहते हैं इससे यह नहीं समझना चाहिए कि इससे बालकों का मानसिक विकास नहीं हो सकता सहगामी क्रियाओं में बालकों को स्वतंत्र दृष्टि से सोचने विचारने का अवसर मिलता है बालकों के सामने बहुत सी ऐसी समस्याएं आती हैं जिसका समाधान भी अपने आप ढूंढते हैं इसमें उसको सोचने विचारने और तर्क करने का पर्याप्त अवसर मिलता है सहगामी क्रियाओं में बालक एक दूसरे के प्रति स्पर्धा का भाव रखते हैं इसलिए मानसिक प्रयास करने के लिए उन्हें पर्याप्त प्रेरणा मिलती है 

7. संवेगात्मक विकास- बालकों को अपनी मूल प्रवृत्तियों एवं संवेग के परिष्कार एवं शोध के लिए जितना अवसर सहगामी क्रियाओं से मिलता है उतना कहीं और नहीं। सहगामी क्रियाओं में बालकों को आत्माभिव्यक्ति का पर्याप्त अवसर मिलता है इस आत्माभिव्यक्ति से बालकों के संवेगों का शोधन होता है सहगामी क्रियाओं में बालक एक साथ मिलकर काम करते हैं इसलिए अपने संवेगो पर अपने आप नियंत्रण करने की क्षमता बालकों में आती है उनके व्यवहारों में परिवर्तन आता है यहां बालकों को अनेक ऐसे भावों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है जिनको कि वह अन्यत्र अभिव्यक्त नहीं कर सकते 

8. चारित्रिक विकास- बालकों के चरित्र निर्माण की समस्या वर्तमान शिक्षा की अनेक अनेक समस्याओं में से एक है प्रश्न उठता है कि बालों को का चरित्र विकास कैसे किया जाए? बालकों के चरित्र निर्माण के साधनों में सबसे उपयुक्त सहगामी क्रिया ही है 

9. मनोरंजन- मानव की अनेकानेक समस्याओं में से मनोरंजन भी आवश्यक है मनोरंजन की भी आवश्यकता है विद्यार्थियों को भी मनोरंजन की आवश्यकता है पाठ्यक्रम की सहगामी क्रियाएं बालकों के मनोरंजन का सबसे उत्तम साधन है इसमें बालक अपना मनोरंजन अपने आप कर लेते हैं 

10. विद्यालय का आर्थिक लाभ- सहगामी क्रियाओं में छात्र समिति और श्रमदान भी आते हैं छात्र समितियां विद्यालय का अधिकांश कार्यभार अपने हाथ में ले लेती हैं इसमें विद्यालय की थोड़ी बहुत आर्थिक बचत भी हो जाती है श्रमदान में छात्र कभी-कभी ऐसा काम कर देते हैं जिससे विद्यालय की पर्याप्त आर्थिक बचत हो जाती है विद्यालय की मरम्मत, विद्यालय की सफाई, विद्यालय का मैदान, विद्यालय की सड़क, विद्यालय की बागवानी आदि छात्र अपने सहयोग से तैयार कर देते हैं 

11. विद्यालय और समाज के बीच संबंध- विद्यालय एक सामाजिक संस्था है इसका निर्माण विद्यालय अपने हित के लिए कर सकता है इसलिए इन दोनों में परस्पर संबंध रहना जरूरी है दोनों एक दूसरे से जितना सन्निकट होते हैं उतना ही एक दूसरे की समस्याओं को जान सकेंगे एक दूसरे की समस्याओं को जानने के बाद ही वे एक दूसरे के हित के उपाय कर सकते हैं इसके लिए विद्यालय और समाज को एक दूसरे के सन्निकट लाना बहुत जरूरी है विद्यालय और समाज को एक दूसरे के सन्निकट लाने वाले साधनों में सहगामी क्रिया प्रमुख है 

12. छात्रों और अध्यापकों के बीच संबंध- छात्रों और अध्यापकों के बीच संबंध होना जरूरी है यह संबंध कक्षा के अंदर उतना ही नहीं हो सकता जितना कक्षा के बाहर की क्रियाओं में सहगामी क्रियाओं में अध्यापकों को छात्रों के निकट से पहचानने का अवसर मिलता है छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं का पता लगाना सहगामी क्रियाओं में छात्रों को आत्माभिव्यक्ति का पूर्ण अवसर मिलता है बालक जब स्वतंत्र वातावरण से में निसंकोच होकर कार्य करते हैं तभी उनको पहचाना जा सकता है अध्यापक किसी बालक की व्यक्तिगत समस्याओं को ऐसे समय जान सकता है 

14. छात्रों में त्याग और सहानुभूति की भावना- मानव को योग्य नागरिक बनाने के लिए उनमें त्याग और सहानुभूति का होना बहुत जरूरी है यहां त्याग और सहानुभूति की भावना सहगामी क्रियाओं के द्वारा जितनी आती है उतनी कहीं और से नहीं मिलती 

15. सहयोग की भावना- बालकों को योग्य नागरिक बनाने के लिए उन्हें जनतंत्र की शिक्षा जरूरी है इसके लिए बलकों को स्वालंबन और सहयोग का भाव विकसित करना बहुत जरूरी है 

16. बालको में समस्याओं से लड़ने की क्षमता आती है- सहगामी क्रियाओं में भाग लेने से छात्रों में समस्याओं से लड़ने की क्षमता पैदा होती है 

17. सहगामी क्रियाओं में विद्यालय का स्तर ऊपर उठता है- उन विद्यालयों की गणना अच्छे विद्यालय में होती है जहां सहगामी क्रियाओं पर पर्याप्त पैसा खर्च होता है 

18. छात्रों में नेतृत्व ग्रहण करने की क्षमता आती है- सहगामी क्रियाओं से बालकों में स्फूर्ति और कार्यकुशलता आती है इससे उनमें नेतृत्व ग्रहण करने की क्षमता आती है

 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं के लक्ष्य(Goals of co-curricular activities)- 

पाठ्य सहगामी क्रियाओं के लक्ष्य निम्न है 

1. शैक्षिक विकास के साथ-साथ चरित्र विकास करना। 

2. छात्रों को स्वशासन का अनुभव प्राप्त करवाना। 

3. बालकों में सहयोग और सहअस्तित्व की भावना का विकास करना। 

4. विद्यालय एवं समाज के पारस्परिक अस्तित्व को बढ़ावा देना। 

5. बालकों के सर्वांगीण विकास में सहयोग देना। 

6. अवकाश का सदुपयोग करना।