समावेशी शिक्षा, विशेषताएँ, आवश्यकताएँ

 समावेशी शिक्षा (Inclusive education)



समावेशी शिक्षा की परिकल्पना इस संकल्पना पर आधारित है कि सभी बच्चों को विद्यालयी शिक्षा में समावेशन व उसकी प्रक्रियाओं की व्यापक समझ की इस प्रकार आवश्यकता है कि उन्हें क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, सामाजिक परिवेश और विस्तृत सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक प्रक्रियाओं दोनों में ही संदर्भित करके समझा जाये क्योंकि भारतीय संविधान में समता, स्वतन्त्रता, सामाजिक न्याय एवं व्यक्ति की गरिमा को प्राप्त मूल्यों के रूप में निरूपित किया गया है। यह समावेशी शिक्षा की ओर संकेत करता है।


शिक्षा किसी भी देश के विकास की आधारशिला होती है। भारत जैसी लोकतान्त्रिक प्रणाली में प्रत्येक बालक के लिए शिक्षा आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है। शिक्षा केवल व्यवसाय एवं जीवनयापन के साधनों की प्राप्ति तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका कार्य बालकों का संज्ञानात्मक, संवेगात्मक, सृजनात्मक विकास करके उनमें सकारात्मक गुणों, सन्तुलित स्वभाव, सहनशीलता, समतावादी दृष्टिकोण का विकास करके एक उत्पीड़न रहित समाज का निर्माण करना है। यह तभी सम्भव है जब हम शिक्षा की मुख्य धारा में उन छात्रों को भी सम्मिलित करें जिनकी शारीरिक, मानसिक बौद्धिक अथवा संवेगात्मक आवश्यकताएँ उन बालकों से भिन्न हैं जो सामान्य विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं। समावेशी शिक्षा इस दिशा में सतर्कता से किया जा रही आशाओं से परिपूर्ण एक प्रयास है। समावेशी अथवा समावेशी शिक्षा पृथक्करण अथवा अलगाव का विपरीतार्थक है। पृथक्करण अथवा वर्जन स्वभाव से ही नकारात्मक, अनुपयुक्त तथा मानव मूल्यों का विरोधी है इसलिए समावेशी शिक्षा का अर्थ सबको साथ लेकर उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बालकों के बौद्धिक, संवेगात्मक एवं सृजनात्मक विकास के अतिरिक्त परस्पर सीखने-सिखाने तथा अभियोजन का एक अनूठा प्रयास है जो कठिन तो है लेकिन असम्भव नहीं है।

स्टेनबैंक तथा स्टेनवैक के अनुसार-"समावेशी विद्यालय से तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहाँ प्रत्येक बालक को उसके साथियों तथ विद्यालय समुदाय के अन्य सदस्यों द्वारा स्वीकार किया जाता है व सहारा दिया जाता है जिससे कि वह अपनी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।"

यूनेस्को के अनुसार-“समावेशी शिक्षा अथवा समावेशन की उक्ति सबके लिए सामान्य स्कूल में शिक्षा के प्रत्यय को स्पष्ट करती है। यह भावना विश्वासों का एक ऐसा प्रतिमान है जो एक सार्वभौमिक समाज के निर्माण एवं विकास का उद्देश्य रखता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए जगह हो।"

समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ (Features of Inclusive Education)- 

समावेशी शिक्षा की निम्न विशेषताएँ हैं 

1. समावेशी शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जिसके अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालक तथा सामान्य बालक साथ-साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपंग बालकों को कुछ अधिक सहायता प्रदान की जाती है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा अपंग बालकों के पृथक्कीकरण की विरोधी व्यावहारिक समाधान है।

2. समावेशी शिक्षा विशिष्ट शिक्षा का विकल्प नहीं है। समावेशी शिक्षा तो विशिष्ट शिक्षा की पूरक है। कभी-कभी बहुत कम शारीरिक रूप से बाधित बालकों को समावेशी शिक्षा संस्था में प्रवेश कराया जा सकता है। गम्भीर रूप से अपंग बालक को जो विशिष्ट शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करते हैं, सम्प्रेषण व अन्य प्रतिभा ग्रहण करने के पश्चात् वे समन्वित विद्यालयों में भी प्रवेश पा सकते हैं।

3. इस शिक्षा का ऐसा प्रारूप दिया गया जिससे अपंग बालक को समान शिक्षा के अवसर प्राप्त हों तथा वे समाज में अन्य लोगों की भाँति आत्मनिर्भर होकर अपना जीवनयापन कर सकें।

4. यह अपंग बालकों को कम प्रतिबन्धित तथा अधिक प्रभावी वातावरण उपलब्ध कराती है, जिससे वे सामान्य बालकों के समान जीवनयापन कर सकें। 

5. यह समाज में अपंग तथा सामान्य बालकों के मध्य स्वस्थ सामाजिक वातावरण तथा सम्बन्ध बनाने में समाज के प्रत्येक स्तर पर सहायक है। समाज में एक-दूसरे के मध्य दूरी कम तथा आपसी सहयोग की भावना को प्रदान करती है।

6. यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत शारीरिक रूप से बाधित बालक भी सामान्य बालकों के समान महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकताएँ (Needs of inclusive education)

कुछ शिक्षाविद् विशिष्ट शिक्षा के पक्षधर नहीं हैं। उनके अनुसार यह शिक्षा के अवसरों के समान नहीं है तथा बालकों के विचारों में भिन्नता पैदा होती है। सामान्य कक्षाएँ अपंग बालकों में हीन भावना उत्पन्न करती है। कुछ ही समय पहले, मनोवैज्ञानिकों ने विचार दिया है कि समावेशी शिक्षा हमारे सामान्य विद्यालयों में दी जाये जिससे सभी बालकों को शिक्षा के समान अवसर मिलें। शिक्षाविद् भी इस प्रकार की शिक्षा के पक्षधर हैं तथा इसे निम्न कारणों से उचित बताते हैं

1. सामान्य मानसिक विकास सम्भव है- विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं, जिसके कारण उनके साथ पृथकता से व्यवहार किया जा रहा है। समावेशी शिक्षा व्यवस्था में, अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ रहा है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों की सामान्य मानसिक प्रगति को अग्रसर करती है।

2. सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करती है- अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुत संगत होते हैं, जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का संग पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक गुण, प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था में छात्र में केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं परन्तु विस्तार में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्द्धा की भावना विकसित होती है। 

3. समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है- निःसन्देह विशिष्ट शिक्षा अधिक महँगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं। दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है। विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने के लिए अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है, जैसे- प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ चिकित्सक आदि। अपंग बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्च आता है।

4. समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण सम्भव है- विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किये जाते हैं अर्थात् उच्चारण अधिक है। अपंग तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है। इस वातावरण में अपने सहपाठियों से सीखना, स्वीकार करना तथा स्वयं को दूसरों द्वारा स्वीकार कराया जाना समावेशी शिक्षा द्वारा सम्भव है। सामान्य वातावरण में छात्र में उपयुक्तता की भावना तथा भावनात्मक समायोजन का विकास होता है।

5. शैक्षिक एकीकरण सम्भव है- शैक्षिक योग्यता सामान्यतः समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा सम्भव है। शिक्षाविदों का ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्था एक बालक के प्रवेश के पश्चात् समान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक के गुणों को ग्रहण करता है। शिक्षाविदों को यह भी मालूम होता है कि विशिष्ट विद्यालयों में छात्र तथा • अपंग छात्र शिक्षा के पूर्ण ग्राही (ग्रहण करने वाले) नहीं होते। सामान्य विद्यालयों में बाधित छात्रों को प्रवेश दिलाने के कारण वह ठीक प्रकार से शिक्षा ग्रहण करने में असमर्थ होते हैं। एक प्रकार से कहा जा सकता है कि लचीले वातावरण तथा आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ रसमावेशी शिक्षा शैक्षिक एकीकरण लाती है।

6. समानता के सिद्धान्त का अनुपालन करना है- भारत में सामान्य शिक्षा के व्यापक रूप से विस्तार की संवैधानिक व्यवस्था की गयी है और साथ-साथ शारीरिक रूप से बाधित बालकों के लिए शिक्षा को व्यापक रूप देना भी संविधान के अन्तर्गत दिया गया है। समावेशी शिक्षा के वातावरण के माध्यम से समानता के उद्देश्य की भी प्राप्ति की जानी चाहिए, जिससे कोई भी छात्र अपने आपको दूसरों की अपेक्षा हीन न समझे।