शैक्षिक प्रबंधन का अर्थ, परिभाषा, तत्व, कार्य

 शैक्षिक प्रबन्धन का अर्थ(Meaning of Educational Management)



आधुनिक समय में वैज्ञानिक एवं तकनीकी के क्षेत्र में हुई आशातीत प्रगति के परिणामस्वरूप समाज, शिक्षा तथा ज्ञान के कई क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए तथा चिन्तन के परिणामस्वरूप विविध पहलुओं में नूतन आयामों का अभ्युदय हुआ। 'प्रबन्धन' शब्द शिक्षा में बिल्कुल नया है। इसे अभी हाल में ही शिक्षा और शिक्षण में स्थापित किया गया है। सम्भवतः 'प्रबन्धन' शब्द को व्यवसाय एवं उद्योगों से ग्रहण किया गया है।

सामान्य अर्थों में प्रबन्धन से तात्पर्य किसी निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए। व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूहों तथा साधनों की सहायता से किसी कार्य के सम्पादन से लगाया जाता है। वस्तुत: प्रत्येक संगठन में प्रबन्धन का अपना अलग महत्त्व होता है। लेकिन प्रायः निश्चित कार्यों को ध्यान में रखकर विविध साधनों की मदद से किये जाने वाले कार्य प्रक्रिया को प्रबन्धन के नाम से सम्बोधित किया जाता है। प्रबन्धन का मुख्य लक्ष्य अधिकतम कुशलता  तथा सम्पन्नता का स्तर प्राप्त करना है। अतः प्रबन्धन में उपलब्ध मानवीय भौतिक साधनों के साथ-साथ वैज्ञानिक विधियों, उपकरणों तथा सिद्धान्तों को भी अपनाया जाता है, जिससे प्रबन्धन के लक्ष्यों की प्राप्ति प्रभावी ढंग से की जा सके। इसी कारण प्रबन्धन को कभी-कभी वैज्ञानिक प्रबन्धन भी कहा जाता है।

'प्रबन्धन' को समझने में विद्वानों की निम्नांकित परिभाषाएँ उल्लिखित की जा सकती है। 

अमेरिकन मैनेजमेण्ट एसोसिएशन के अनुसार- "प्रबन्धन का कार्य मानवीय एवं भौतिक संसाधनों को ऐसी गतिशील संगठित इकाइयों में तब्दील कर देना है, जिसके द्वारा उद्देश्यों की पूर्ति हेतु इस प्रकार का कार्य किया जा सके, जिनके लिए प्रबन्धन किया जा रहा है, उन्हें सन्तुष्टि प्राप्त हो सके तथा जो कार्य कर रहे हैं, उनमें उच्च नैतिक स्तर बनाये रखते हुए उत्तरदायित्व निभाने की भावना बनी रहे।" 

एफ. डब्ल्यू. टेलर के अनुसार- "प्रबन्धन किसी संस्था या विशिष्ट संगठन में कार्यरत कार्मिकों की दृष्टि से एक मानसिक क्रान्ति है।" 

फेयोल के शब्दों में- "प्रबन्धन का तात्पर्य पूर्व अनुमान, संगठन, नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण करने से है।" 

शूल्जे के मतानुसार- "प्रबन्धन वह शक्ति है जो किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए किसी संगठन का नेतृत्व, पथ-प्रदर्शन तथा निर्देशन करती है।" 

मिलवर्ड के शब्दों में- "प्रबन्धन वह विधि एवं माध्यम है, जिसके अनुसार नीतियों को क्रियान्वित करने की योजना बनायी जाती है तथा निरीक्षण किया जाता है।"

मेयर के अनुसार- "प्रबन्धन एक आन्तरिक अवधारणा है जो किसी संगठन की इकाई के ढाँचे के अन्तर्गत सम्पन्न की गयी क्रिया को प्रकट करता है।"

विल्सन के अनुसार- "प्रबन्धन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत मानवीय शक्तियों को किसी निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयोग में लाने तथा लक्ष्य निर्देशित रहने का कार्य किया जाता है।"

अत: उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के आधार पर प्रबन्धन की प्रकृति में निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं

(i) प्रबन्धन किसी कार्य को नियोजित ढंग से करने की कला है। 

(ii) प्रबन्धन सामूहिक सहयोग या सहकारिता पर आधारित प्रक्रिया है।

(iii) प्रबन्धन संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सम्पूर्ण मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के कौशल एवं शक्ति का प्रयोग है।

(iv) प्रबन्धन में अनुमान, संगठन, नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण शामिल होता है। 

(v) प्रबन्धन किसी संगठन में कार्यरत व्यक्तियों का कुशलतायुक्त कार्य करने का तरीका है। 

(vi) प्रबन्धन कार्य एवं उत्तरदायित्वों की सीमा का निर्धारण है।

(vil) प्रबन्धन में गतिशीलता होती है यह समय सापेक्ष परिवर्तित भी होता रहता है। 

प्रबन्धन के मूल तत्त्व(Fundamentals of Management)- 

प्रबन्धन में मूलत: किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सर्वप्रथम उपलब्ध कार्यस्रोत जैसे- भूमि, इमारत, मानवीय संसाधन, यांत्रिक उपकरण, भौतिक संसाधन को दृष्टिगत रखकर रूपरेखा बनायी जाती है।

प्रबन्ध की रूपरेखा के निम्नलिखित मूल तत्त्व होते हैं 

  1.  नियोजन
  2.  नियन्त्रण
  3.  निर्देशन
  4.  सम्प्रेषण
  5.  समन्वय
  6.  मूल्यांकन


प्रबन्धन के प्रमुख कार्य(main functions of management)-


प्रबन्धन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं


1. नियोजन- प्रबन्धन में सर्वप्रथम लक्ष्य के निर्धारण के बाद योजना का निर्माण किया जाता है। 

2. बजटिंग- योजना बनाने के बाद बजट की व्यवस्था बनायी जाती है।

3. नियंत्रण- उसके बाद योजना पर निगाह रखने हेतु नियंत्रण के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है।

4. नियुक्तिकरण- नियंत्रण की रूपरेखा बनाने के बाद कर्मचारियों, प्रशासकों की नियुक्ति की जाती है।

5. निर्देशन- कर्मचारियों की नियुक्ति के बाद उन्हें कार्य के सन्दर्भ में यथोचित निर्देशन दिया जाता है।

6. समन्वय - कर्मचारियों के कार्यों का विभाजन करके उन्हें आपस में एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करने तथा समन्वय बनाने की रूपरेखा बनायी जाती है।

7. अभिप्रेरणा- समय-समय पर कर्मचारियों को कार्य के प्रति समर्पित होने के लिए अभिप्रेरणा की व्यवस्था की जाती है। यह अभिप्रेरणा पुरस्कार, वेतनवृद्धि, बोनस आदि के रूप में हो सकता है। 

8. संगठन - अन्त में एक सामूहिक संगठन का निर्माण होता है जो निर्धारित उद्देश्यों को समर्पित भाव से वांछित सफलता की प्राप्ति कराता है।