योग का अर्थ, महत्त्व, भेद, लक्ष्य, लाभ

 योग का अर्थ (Meaning of yoga)



योग शब्द संस्कृत में 'युज' धातु में 'यञ्' प्रत्यय लगाने से बना है, जिसका अर्थ है जोड़ना। अर्थात् योग एक ऐसी कला है जो जीवन को भली प्रकार समझकर उसे परमात्मा से मिलाने का मार्ग बताती है। योग से हमारे जीवन के सभी पहलुओं का विकास होता है।

योग वशिष्ठ के अनुसार, "संसार सागर से पार होने की युक्ति को ही योग कहते हैं"

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के अनुसार, "योग वह पुरातन पंथ है जो व्यक्ति को अंधी से प्रकाश में लाता है।"

महर्षि पतंजलि के अनुसार, "मन की वृत्तियों को रोकना योग है अर्थात् चित्त की चंचलता का दमन ही योग है।"

योग का महत्व(Importance of yoga)-

योग का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व है जो निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है 

(1) शारीरिक महत्व- योग एक ऐसा साधन है जो हमारे शरीर को हष्ट-पुष्ट रखता है। योग करने से शरीर में कार्य करने की शक्ति बढ़ जाती है। योग करने से व्यक्ति में किसी प्रकार की बीमारी होने का भय नहीं रहता है। योग करने से हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्व है जो निम्न है

(i) योग करने से पाचन क्रिया नियंत्रित होती है तथा शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

(ii) योगाभ्यास से शरीर का तापमान सामान्य रहता है। कार्य करते समय जो हमारे शरीर से पसीना निकलता है वह दुर्गधपूर्ण नहीं होता है।

(III) योग के द्वारा रक्त दाब तथा हृदय की गति प्रकृति के अनुकूल बनाये रखने में हमें मदद मिलती है। 

(iv) योग करने से शारीरिक थकावट भी नहीं आती है। यह धीरे-धीरे शारीरिक शक्ति को प्राप्त करने एवं स्वस्थ रहने में हमारा सहयोग करती है। 

(v) योग शरीर में विभिन्न प्रकार के रस-द्रव्यों को बनाता है तथा ग्रन्थियों को नियंत्रित करता है। 

(2) मानसिक महत्व- योग करने से व्यक्ति केवल शारीरिक रूप से ही स्वस्थ नहीं रहता बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहता है। यह मस्तिष्क में चेतन शक्ति का विकास इस प्रकार करना है कि मानसिक पोषण सम्पूर्ण मस्तिष्क में सूर्य के प्रकाश के समान फैलती है। इस प्रकार योग का मानसिक महत्व निम्न है

(i) योगाभ्यास करने से मन की चंचलता पर नियंत्रण रहता है तथा चित्त में शक्ति रहती है। 

(ii) यदि प्रतिदिन योग किया जाता है तो संयम साधना और समाधि में इन्हें उचित शक्ति मिलती है। 

(iii) योग करने से मन के विकार समाप्त हो जाते हैं, मन शुद्ध होता है तथा पूर्वागृह भी समाप्त हो जाता है।

(iv) जब मन स्वस्थ, शान्त तथा एकाग्रचित होता है, तो व्यक्ति का किसी भी कार्य को करने में मन लगता है। अतः योग करना भी मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

(v) योगाभ्यास से धारणा शक्ति, ग्रहण करने की क्षमता, स्मरण शक्ति आदि का विकास होता है।

(vi) योग के द्वारा सबल शरीर में उतम मस्तिष्क तथा ग्रहण करने की शक्ति का भी विकास होता है। 

(3) सामाजिक महत्व- योग करने का सामाजिक महत्व निम्न है

(i) वर्तमान समय में समाज को स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है। समाज के सामने मूल्यों, नैतिकता तथा परम्पराओं को बनाये रखने की समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं जिनके कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का शत्रु बन गया है।

(II) आधुनिक समय में अत्ति भौतिकवाद ने भारतीय समाज की उदात्त व्यवस्था को खोखला बना दिया है। परन्तु योगाभ्यास के द्वारा भौतिक सुखों को प्राप्त करने की अन्धी दौड़ से बचा जा सकता है। अतःस्वार्थ जैसी भावना को त्यागकर परोपकार तथा सहयोग की भावना का विकास किया जा सकता है।

(iii) समाज में अनेक प्रकार को बुराइयाँ फैली हुई हैं जैसे-छल, कपट, विश्वासघात, हिंसा, कालाबाजारी आदि समस्याओं को योगभ्यास द्वारा समाधान किया जा सकता है।

योग के भेद(Differences of yoga)-

योग के अनेक भेद हैं। यह योग के सभी प्रकार मन में शान्ति और सामंजस्य तथा आत्म व्यवस्थापन के काम सुगम बनाते हैं। योग के भेदों का वर्णन निम्न है

(I) राजयोग- यह चित्त में होने वाली चंचलता कम करने का कार्य करता है। मानव संयम का यह योग चेतना के उच्चतर स्तरों तक पहुंचने का आसान मार्ग प्रदान करता है।

(2) कर्मयोग- यह बिना फल की इच्छा के नि:स्वार्थ कर्म का मार्ग है। इस योग में सभी कार्य सरलता से करना सीखते हैं। इसके द्वारा मानव अपनी दुर्बलताओं से छुटकारा पा लेता है और उसका मन स्थिरता को प्राप्त कर लेता है। 

(3) भक्ति योग- यह भक्ति का मार्ग है जिसमें स्वयं का परमात्मा के लिए समर्पण होता है। इसमें व्यक्ति स्वयं को अपने अस्तित्व को भुलाकर परमात्मा के अस्तित्व के साथ मिल जाता है। 

(4) ज्ञान योग- योग का यह प्रकार अज्ञानता को समाप्त करके आध्यात्मिक विषय में गलत धारणायें बना लेते हैं और मुखीटे लगाए रहते हैं जो उन्हें अहंकार और विभिन्न प्रकार के द्वंदों की ओर ले जाता है।

इसके अलावा योग के भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों, परम्पराओं, दर्शन, धर्मों एवं गुरु-शिष्य परम्पराओं के चलते भिन्न-भिन्न पारस्परिक पाठशालाओं का मार्ग प्रवृत्त हुआ। इनमें हठ योग, भेटयोग, लययोग, पतंजलि योग आदि हैं।

योग के लक्ष्य(Goals of yoga)- 

योग के लक्ष्यों का अध्ययन निम्नलिखित रूप में किया जा सकता हैं–

1. योग का प्रथम लक्ष्य है- शारीरिक अंग-प्रत्यंगों की वृद्धि तथा विकास का मार्ग प्रशस्त करना 

2. योग करने से मानसिक शक्तियों को विकसित करने के उपयुक्त अवसर प्राप्त होते हैं।

3. योग मानसिक बीमारियों जैसे- भ्रम, तनाव, अशान्ति, अनिद्रा आदि को दूर करने में सहायता करता है। 

4. शारीरिक रोगों से मुक्त दिलाना।

5. संवेगात्मक रूप से मन को स्थिर करके उसे सबल बनाने में सहायता करना। 

6. व्यक्ति के आचरण का सुधार करना तथा उसे नैतिक और चारित्रिक रूप से सबल बनाना। 

7. इन्द्रियों पर कैसे नियन्त्रण किया जा सकता है, इस दिशा में मनुष्यों की सहायता करना ।

लाभ(Advantage)–

1. भजन, पूजा पाठ, स्वाध्याय मनन के लिए उपयोगी है। 

2. प्राणायाम अभ्यासी के लिए विशेष उपयोगी आसन है।

3. चित्त स्थिर होता है।

4. मन बाह्य वृत्तियों को छोड़कर आन्तरिकता में रमने लगता है। बिना पद्मासन के प्राणायाम सिद्धि सम्भव नहीं।

5. पद्मासन के अभ्यास से कब्ज, बदहजमी तथा वायु-विकार दूर होता है। पाचन शक्ति बढ़ती है तथा जठराग्नि प्रदीप्त होती है।

6. घुटनों, जंघाओं और पैरों में असीम शक्ति आती है।