वर्धा शिक्षा योजना (बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी)

 वर्धा शिक्षा योजना (बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी) [Wardha Education Scheme (Basic Education Mahatma Gandhi)]



जाकिर हुसैन समिति की प्रथम रिपोर्ट को फरवरी, 1938 में हरिपुरा में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अधिवेशन ने रिपोर्ट को स्वीकार किया। यही रिपोर्ट वर्धा शिक्षा योजना' के नाम से प्रसिद्ध है और बुनियादी शिक्षा का आधार है।

वर्धा- शिक्षा योजना की रूपरेखा (Wardha- Education Scheme Outline)


"वर्धा-योजना" एवं "बेसिक शिक्षा योजना" की रूपरेखा इस प्रकार है

1. बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम की अवधि 7 वर्ष की है। 

2. यह शिक्षा 7 से 14 वर्ष तक के बालकों और बालिकाओं के लिए निःशुल्क और अनिवार्य है।

3. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है।

4. पाठ्यक्रम में अंग्रेजी का कोई स्थान नहीं है।

5. सम्पूर्ण शिक्षा का सम्बन्ध किसी आधारभूत शिल्प से होता है।

6. शिल्प को बालकों की योग्यता और स्थान की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर चुना जाता है। 

7 चुने हुए शिल्प की शिक्षा इस प्रकार दी जाती है कि वह बालकों को अच्छा शिल्पी बनाकर, उनको स्वावलम्बी बना देती है, 

8. उक्त शिल्प को शिक्षा इस प्रकार प्रदान की जाती है कि बालक उसके सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व से भली-भाँति परिचित हो जाते हैं।

9. शारीरिक श्रम पर बल दिया जाता है, ताकि बालक सीखे हुए शिल्प के द्वारा अपनी जीविका का उपार्जन कर सके। 

10 शिक्षा का बालक के जीवन, गृह एवं ग्राम से और उसके ग्राम के उद्योगों, हस्तशिलों और व्यवसायों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। 

11. बालकों द्वारा बनायी जाने वाली वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जिनका प्रयोग किया जा सकता है या जिनको बेचकर विद्यालय का कुछ व्यय चलाया जा सकता है।

इस प्रकार बेसिक शिक्षा को योजना में गांधी जी के शिक्षा दर्शन के मुख्य तत्त्वों का समावेश है।

बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य (Basic Education Objectives)

बुनियादी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1. आर्थिक उद्देश्य- इस उद्देश्य से दो अभिप्राय है- (i) बालकों द्वारा बनायी जाने चाली वस्तुओं को बेचकर विद्यालय के व्यय की आंशिक पूर्ति करना और (ii) बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बालकों का किसी उद्योग के द्वारा धन का अर्जन करना। इस सम्बन्ध में स्वयं गाँधी जी ने लिखा है- "प्रत्येक बालक और बालिका को विद्यालय छोड़ने के पश्चात् किसी व्यवसाय में लगकर स्वावलम्बी बनना चाहिए।"

2. नैतिक लक्ष्य- आधुनिक भारतीय समाज का अविराम गति से नैतिक पतन हो रहा है। अत: बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है- बालक का नैतिक विकास करना। नैतिक शिक्षा में अपना विश्वास प्रकट करते हुए गाँधीजी ने लिखा है- "मैंने हृदय की संस्कृति या चारित्रिक निर्माण को सर्वोच्च स्थान दिया है। मुझे विश्वास है कि नैतिक प्रशिक्षण सबको समान रूप से दिया जा सकता है। इस बात से कोई प्रयोजन नहीं है कि उनकी आयु और पालन-पोषण में कितना अन्तर है।"

3. सांस्कृतिक उद्देश्य- हमारी शिक्षा प्रणाली का एक प्रत्यक्ष दोष यह है कि उसमें भारतीय संस्कृति का ज्ञान न कराया जाकर बालकों को पाश्चात्य आदर्शों और विचारों का भक्त बनाया जाता है। फलस्वरूप, वे अपनी परम्परागत संस्कृति से पूर्णत: अनभिज्ञ रहते हैं। इसके दूषित परिणाम को बताते हुए गाँधी जी ने लिखा है- "यदि किसी स्थिति में पहुंचकर एक पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयासों से पूर्णतः अनभिज्ञ हो जाती है या उसे अपनी संस्कृति पर लज्जा आने लगती है तो वह नष्ट हो जाती है।"

अपने इस विचार में दृढ विश्वास रखने के कारण गाँधी जी ने शिक्षा की अपेक्षा शिक्षा के सांस्कृतिक पक्ष को अधिक महत्त्व दिया है। इसी उद्देश्य से बुनियादी शिक्षा में भारतीय उद्योगों या शिल्पों को आधारभूत स्थान दिया गया है और शिक्षा को भारतीय संस्कृति के अनुरूप बनाया गया है।

4. नागरिकता का उद्देश्य- जनतन्त्रीय शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति शासन के प्रति उत्तरदायी होता है और राज्य के प्रति उसके कर्तव्यों में वृद्धि हो जाती है। किन्तु इसके साथ-साथ उसे अनेक अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं। वह इन कर्तव्यों का पालन और अधिकारों का उपयोग तभी कर सकता है, जब वह उनके प्रति सजग हो। इसके लिए ऐसी शिक्षा आवश्यक है, जो उसमें नागरिकता के सब गुणों का विकास करे। बुनियादी शिक्षा इन गुणों के विकास में योग देती है।

5. त्रिविध विकास का उद्देश्य- भारत की वर्तमान शिक्षा पद्धति में केवल बालक के मानसिक विकास पर बल दिया जाता है। उसमें बालक के शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति रंचमात्र भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इस प्रकार, बालक का केवल एकांगी विकास होता है। इसके विपरीत, बुनियादी शिक्षा में बालक के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति पूर्ण ध्यान दिया जाता है। पाठ्यक्रम में इस प्रकार के विषयों का समावेश किया गया है, जिनसे बालक का तीनों प्रकार का अर्थात् त्रिविध विकास होना निश्चित हो जाता है। इस विकास पर बल देते हुए गाँधी जी ने कहा है- "शिक्षा से मेरा अभिप्राय है- बालक और मनुष्य की सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का सर्वतोन्मुखी विकास।"

6. सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य- आज का सम्पूर्ण समाज स्वार्थ सिद्धि की नीति का अनुकरण कर रहा है। यह समाज स्पष्ट रूप से दो वर्गों में विभक्त है धनवान और धनहीन। ये दोनों वर्ग विकृत हैं- पहला धन की प्रचुरता के कारण और दूसरा, धन के " के स्थान अभाव के कारण। बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है इस "विकृत समाज" पर "सर्वोदय समाज" की स्थापना करना।

सर्वोदय समाज में श्रम का महत्त्व होगा, धन का नहीं, स्नेह और सहयोग की भावनाएँ होंगी, घृणा और पृथकता की नहीं। इस समाज में शोषण का स्थान सेवा, निज-हित का स्थान पर-हित और संचय की प्रवृत्ति का स्थान त्याग की प्रवृत्ति लेगी। बच्चों को इसी सर्वोदय समाज के लिए तैयार करने के विचार से बुनियादी शिक्षा द्वारा उनमें प्रेम, सहयोग, आत्म-बलिदान, आत्म-विश्वास आदि भावनाओं को समाविष्ट करने की चेष्टा की जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर डॉ० एम०एस० पटेल ने लिखा है- "बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य में एक उद्देश्य यह है- गाँधी जी की सर्वोदय समाज की धारणा के अनुसार भारतीय समाज का पुनर्संगठन करना।"

बुनियादी शिक्षा का पाठ्यक्रम (Basic education course)

बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्नलिखित विषय निर्धारित किये गये है

1. आधारभूत शिल्प- अग्रांकित शिल्पों में से कोई एक (1) कृषि, (i) कताई-बुनाई, (iii) लकड़ी का काम, (iv) चमड़े का काम, (v) मिट्टी का काम (खिलौने और बर्तन बनाना), (vi) पुस्तक कला (कागज और कार्ड बोर्ड का काम), (vii) मछली पालना (vii) फल और सब्जी की बागवानी, (ix) गृह-विज्ञान (केवल बालिकाओं के लिए) (x) स्थानीय और भौगोलिक आवश्यकताओं के अनुकूल कोई अन्य उपयुक्त और शिक्षाप्रद हस्तशिल्प ।

2. मातृभाषा ।

3. गणित।

4. सामाजिक अध्ययन (इतिहास, भूगोल और नागरिकशास्त्र)

5. सामान्य विज्ञान - (i) प्रकृति अध्ययन, (ii) वनस्पति विज्ञान (iii) जीव विज्ञान, (iv) रसायन शास्त्र, (v) स्वास्थ्य विज्ञान, (vi) नक्षत्रों का ज्ञान, (vii) महान अन्वेषकों और वैज्ञानिकों की कहानियाँ।

6. कला- संगीत और चित्रकला। 

7. हिन्दी- जहाँ यह मातृभाषा नहीं है।

8. शारीरिक शिक्षा व्यायाम और खेल-कूद 

बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम की विशेषताएँ (Features of Basic Education Curriculum)

बुनियादी शिक्षा के पाठ्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है 

1. पाँचवीं कक्षा तक सह शिक्षा है और बालकों एवं बालिकाओं के लिए समान पाठ्यक्रम है। 

2. पाँचवीं कक्षा के पश्चात् बालक और बालिकाएँ आधारभूत शिल्प के स्थान पर गृह-विज्ञान ले सकते हैं। 

3. सातवीं और आठवीं कक्षाओं में संस्कृत, वाणिज्य, आधुनिक भारतीय भाषाओं आदि की शिक्षा की व्यवस्था है। 

4. शिक्षा का माध्यम- मातृभाषा है, पर राष्ट्रभाषा हिन्दी का अध्ययन सब बालकों और बालिकाओं के लिए अनिवार्य है। 

5. पाठ्यक्रम का स्तर वर्तमान मैट्रिक के समकक्ष है। 

6. पाठ्यक्रम में अंग्रेजी और धर्म का कोई स्थान नहीं है।

अपनी योजना में धर्म को स्थान न देने का कारण बताते हुए महात्मा गाँधी ने लिखा है "हमारी वर्धा-शिक्षा योजना में से धार्मिक शिक्षा का बहिष्कार कर दिया गया है, क्योंकि हमें भय है कि आज जिन धर्मों की शिक्षा दी जाती है अथवा पालन किया जाता है, वे मेल के स्थान पर झगड़े उत्पन्न करते हैं। साथ ही मेरा विश्वास है कि बच्चों को ऐसी शिक्षा अवश्य दी जानी चाहिए, जिसमें सभी मुख्य धर्मों का सार निहित हो। धर्म का यह सार केवल शब्दों और पुस्तकों से नहीं पढ़ाया जा सकता है। इसे तो बालक केवल शिक्षक की दैनिक जीवन चर्या से ही सीख सकता है।"

बुनियादी शिक्षण विधि (Basic teaching method)


रायबर्न के अनुसार- "बेसिक शिक्षा शिक्षण की विधि नहीं है। यह पाठ्यक्रम को निश्चित करने की विधि है। अध्यापक उन विधियों का उपयोग करता है, जो सबसे अधिक रोचक और प्रभावपूर्ण सिद्ध हुई है। सब प्रगतिशील विधियों का बुनियादी शिक्षा में स्थान हो सकता है और प्रयोग किया जा सकता है।"

बुनियादी शिक्षा में चाहे जिस विधि का प्रयोग किया जाये, पर शिक्षण का वास्तविक कार्य क्रियाओं और अनुभवों पर अनिवार्य रूप से आधारित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, शिक्षण विधि इतनी व्यावहारिक होती है कि बालक विभिन्न विषयों का ज्ञान एक ही समय में प्राप्त करता है। साथ ही, उसे यह ज्ञान थोड़े समय में प्राप्त हो जाता है।

बालकों को विभिन्न विषयों की शिक्षा स्वतन्त्र रूप में न दी जाकर किसी आधारभूत शिल्प के माध्यम से प्रदान की जाती है। गणित, सामान्य विज्ञान, सामाजिक विषयों आदि के शिक्षण में इसी विधि को प्रयुक्त किया जाता है। यदि किसी विषय के किसी भाग को आधारभूत शिल्प के माध्यम से शिक्षा नहीं दी जा सकती है, तो उसकी शिक्षा किसी अन्य विधि से दी जाती है।

पाठ्यक्रम के सब विषय परस्पर सम्बन्धित ज्ञान क्षेत्रों के रूप में बालकों के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते हैं। प्राकृतिक परिस्थिति सामाजिक परिस्थिति और हस्तकला के माध्यम से अनेक विषयों पर परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। बालक को अपनी रुचि के अनुसार हस्तशिल्प का चुनाव करने की स्वतन्त्रता दी जाती है।

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