गोखले का विधेयक 1911

 गोखले का विधेयक 1911 (Gokhale's Bill 1911)





एक वर्ष तक गोखले की आँखें सरकार की गतिविधियों पर लगी रहीं। किन्तु, सरकार ने आश्वासन देकर भी प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क एवं अनिवार्य बनाने की दिशा में एक कदम भी नहीं उठाया। इससे क्रुद्ध एवं क्षुब्ध होकर गोखले ने 16 मार्च, 1911 को 'केन्द्रीय धारा सभा' के समक्ष प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी अपना 'विधेयक' प्रस्तुत करते हुए कहा "इस विधेयक का उद्देश्य देश की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में अनिवार्यता के सिद्धान्त को क्रमशः लागू करना है।"

गोखले का 'विधेयक' उनके प्रस्ताव पर आधारित था और उसमें निहित मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे 

1. अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिनियम केवल उन स्थानीय बोर्डी के क्षेत्रों में लागू किया जाये, जहाँ बालकों एवं बालिकाओं का एक निश्चित प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहा हो। यह प्रतिशत गवर्नर जनरल की कौंसिल द्वारा निश्चित किया जाये।

2. इस अधिनियम को लागू करने से पूर्व स्थानीय बोर्डों द्वारा सरकार की अनुमत प्राप्त की जाये।

3. इस अधिनियम को स्थानीय बोर्डों द्वारा अपने सम्पूर्ण या किसी निश्चित क्षेत्र में लागू किया जाये।

4. प्राथमिक शिक्षा का व्यय-भार स्थानीय बोर्डों और सरकार द्वारा 1 : 2 के अनुपात में वहन किया जाये।

5. प्राथमिक शिक्षा के व्यय की पूर्ति करने के लिए स्थानीय बोर्डों को शिक्षा कर लगाने का अधिकार दिया जाये।

6. अभिभावकों द्वारा 6 से 10 वर्ष तक की आयु के बालकों को मान्यता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में अनिवार्य रूप से भेजा जाये। इस नियम का उल्लंघन करने वाले अभिभावकों को दण्ड दिया जाये। 

7. जिन बालकों के अभिभावकों की मासिक आय 100 रुपये से कम है, उनसे शिक्षा-शुल्क न लिया जाये।

8. कुछ समय के पश्चात् प्राथमिक शिक्षा को बालिकाओं के लिए अनिवार्य बना दिया जाये। 

गोखले के 'विधेयक' में निहित उपरिअंकित सभी सुझाव स्पष्ट, सरल एवं साधारण थे। अतः अत्यन्त शिष्ट एवं विनम्र भाव से गवर्नर जनरल का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट करते हुए गोखले ने अपना भाषण इन शब्दों से समाप्त किया- "श्रीमान् जी, संक्षेप में मेरा यह सम्पूर्ण विधेयक है। अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की यात्रा के प्रथम चरणों के सम्बन्ध में सुझाव देने का यह लघु एवं तुच्छ प्रयास है।" 

केन्द्रीय सरकार ने गोखले के विधेयक को जनमत संग्रह के लिए विश्वविद्यालयों, प्रान्तीय सरकारों एवं कुछ व्यक्तिगत संस्थाओं के पास भेज दिया। 18 मार्च, 1912 को 'केन्द्रीय धारा-सभा' में विधेयक पर वाद-विवाद आरम्भ हुआ। सरकारी प्रवक्ता के रूप में सर हारकोर्ट बटलर ने उसके विपक्ष में छः शक्तिशाली तर्क दिये, यथा-

1. प्रान्तीय सरकारें, विधेयक के पक्ष में नहीं हैं। 

2. शिक्षित वर्ग ने विधेयक का विरोध किया है।

3. देश, अनिवार्य शिक्षा के लिए तैयार नहीं है। 

4. अनिवार्य शिक्षा के लिए जनता की माँग नहीं है।

5. अनिवार्यता को लागू करने में अनेक प्रशासनिक कठिनाइयाँ हैं।

6. स्थानीय संस्थाएँ, अनिवार्य शिक्षा के लिए नवीन कर लगाने के लिए उद्यत नहीं है। 

इस प्रकार सरकार ने विधेयक को सर्वथा अनुपयुक्त एवं असामयिक बताकर तिरस्कृत किया।