लार्ड मैकाले के विवरण पत्र (43वीं धारा)

लार्ड मैकाले का घोषणापत्र (Lord Macaulay's manifesto)



10 जून, 1834 को लार्ड मैकाले गवर्नर जनरल की काउंसिल के 'कानून सदस्य के रूप में भारत आये। उस समय तक उक्त प्राच्य पाश्चात्य विवाद अपनी चरम सोमा पर था। बेटिंक का विश्वास था कि मकाले जैसा विद्वान् ही इस विवाद का अन्त कर सकता था। इस विचार से उसने मैकाले को बंगाल की लोक शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त किया। फिर उसने मैकाले से 1813 के आज्ञापत्र की 43वीं धारा में अंकित एक लाख रुपये की धनराशि को व्यय करने की विधि एवं अन्य विवादग्रस्त विषयों के सम्बन्ध में कानूनी सलाह देने का अनुरोध किया। साथ ही उसने समिति के मन्त्री का प्राच्यवादी और पाश्चात्यवादी दलों के वक्तव्यों को लार्ड मैकाले के समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया। लार्ड मैकाले ने विवरण-पत्र तैयार कर 2 फरवरी, 1835 की बेटिक की सेवा में प्रेषित कर दिया।


लार्ड मैकाले के विवरण पत्र (1835) का परिचय (Introduction to Lord Macaulay's Prospectus (1835))- 

सन् 1834 में गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के प्रथम विधि सदस्य के रूप में लार्ड टी.बी. मैकाले भारत आया। मैकाले को लोक शिक्षा समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया तथा उससे चार्टर एक्ट 1813 की धारा 43 के विषय में परामर्श भी माँगा गया। मैकाले ने प्राच्वादियों तथा पाश्चात्यवादियों दोनों के विचारों को सुना और धारा 43 का सूक्ष्म अध्ययन किया और 1835 में पाश्चात्य शिक्षा के पक्ष में अपना निर्णय दिया। अपने इस प्रतिवेदन (सलाह) को 2 फरवरी 1835 को लार्ड विलियम बैंटिंक के पास भेज दिया। मैकाले ने अपने विवरण पत्र में 1813 के आज्ञापत्र की धारा 43 की व्याख्या निम्न प्रकार से की है

1. एक लाख रुपये की धनराशि व्यय करने के लिए सरकार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। वह इस राशि को अपनी इच्छानुसार खर्च कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में गवर्नर जनरल पूर्ण स्वतन्त्र है।

2. मैकाले ने स्पष्ट रूप से साहित्य शब्द की व्याख्या अंग्रेजी साहित्य के रूप में की। उसका कहना था कि साहित्य शब्द से तात्पर्य अरबी, फारसी तथा संस्कृत साहित्य से ही नहीं है बल्कि इसमें अंग्रेजी साहित्य भी शामिल है। 

3. भारतीयों की शिक्षा के माध्यम के रूप उसने अंग्रेजी की वकालत की।

4. भारतीय विद्वान से अभिशाप मुस्लिम, मौलवी तथा संस्कृत के पंडित के अलावा अंग्रेजी भाषा व साहित्य के विद्वान से भी है।

5. प्राच्य संस्थाओं को तोड़ने की सलाह- संस्कृत, अरबी तथा फारसी विद्यालयों पर होने वाले खर्च को उसने निरर्थक समझा। उसका विचार था कि सरकार जो धनराशि अरबी, फारसी और संस्कृत विद्यालयों पर व्यय करती है वह व्यर्थ है। उसने कलकत्ता मदरसा को तोड़ देने की सलाह दी, क्योंकि वह हिन्दू कॉलेज की अपेक्षा कम लाभप्रद था।

6. मैकाले विदेशी भाषा के द्वारा पाश्चात्य सभ्यता को थोपना चाहता था- मैकाले के इस दृष्टिकोण से हम भारतीय पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान की ओर न झुककर पाश्चात्य सभ्यता की तरफ ही झुक गये। भारतीयों ने इसी नशे में अपनी संस्कृति का विस्मरण कर दिया।

7. मैकाले ने भारतीय भाषाओं का अपमान तथा अनादर किया- मैकाले भारतीय भाषाओं को अपमान व अनादर की दृष्टि से देखता था, जिनमें सूर, कबीर और तुलसी के साहित्य का सम्मान विश्व स्तर पर हुआ। उसको मैकाले ने मजाक की दृष्टि से देखा और अपमान किया।

8. मैकाले ने भारतीय धर्म और संस्कृति का अपमान किया- मैकाले ने भारतीय साहित्य की भी कठोर निन्दा की है। उसे भारतीय वेदों, उपनिषदों और संस्कृत भाषा ग्रन्थों का कोई ज्ञान शायद नहीं था। प्रसिद्ध इतिहासकार लार्ड एवटन ने लिखा है- "मैकाले को सत्रहवीं शताब्दी के पहले के इतिहास का वस्तुत: ज्ञान नहीं था। वह विदेशी इतिहास, दर्शन, धर्म तथा कला से पूर्णत: अपरिचित तथा अनभिज्ञ था।" 7. नवीन वर्ग का निर्माण- मैकाले पाश्चात्य सभ्यता के उपासक वर्ग का निर्माण करना चाहता था। उसने कहा था कि "हमें भारत में एक ऐसा वर्ग बनाना चाहिए, जो रक्त और वर्ण में भारतीय हों, किन्तु रुचियों, विचारों, नैतिक आदर्श और बुद्धि में अंग्रेज हों।"

9. शिक्षित वर्ग और जन-साधारण के बीच खाई बनाना- मैकाले ने निस्यन्दन सिद्धान्त द्वारा बताया कि जो शिक्षा उच्च वर्ग को दी जायेगी, वह निम्न वर्ग के पास स्वतः पहुँच जायेगी, लेकिन मैकाले की यह आशा निरर्थक रह गयी। फल यह हुआ कि शिक्षित वर्ग और जनसाधारण के बीच एक खाई बन गयी।

10. भारतीय धार्मिक एकता को विनष्ट करने का प्रयास- यद्यपि मैकाले ने अपने विवरण-पत्र में धार्मिक तटस्थता की नीति का दावा किया है, लेकिन उसकी दिली इच्छा भारतीय एकता को विनष्ट करने की थी। वह ईसाई धर्म का प्रचार करना चाहता था तथा हिन्दू धर्म को विनष्ट करना चाहता था।

एस. एन. मुखर्जी के अनुसार, "मैकाले ने शिक्षा के द्वारा भारत में ऐसे लोगों के निर्माण की बात कही जो रंग-रूप में तो भारतीय हो किन्तु वेश-भूषा, बातचीत, चिन्तन तथा विचारों में अंग्रेज हो।"

भारतीय शिक्षा पर मैकाले के विवरण पत्र 1835 का परिचय (Introduction to Macaulay's Statement 1835 on Indian Education)- 

भारतीय शिक्षा पर मैकाले के विवरण पत्र 1835 का प्रभाव निम्न है

1. मैकाले ने धारा 43 की व्याख्या बड़ी चतुराई व तर्कपूर्ण ढंग से की। जिसके परिणामस्वरूप गवर्नर विलियम बैटिंक ने इससे सहमत होकर अंग्रेजी माध्यम से यूरोपीय ज्ञान विज्ञान प्रधान शिक्षा नीति की घोषणा कर दी।

2. इस नीति के घोषित होते ही अंग्रेजा माध्यम के स्कूल और कालेज खुले जिससे देश की शिक्षा का विकास तेजी से होने लगा।

3. मैकाले के ही अंग्रेजी के पक्ष में दिये गये तर्कों के परिणामस्वरूप आकलैण्ड ने फारसी के स्थान पर अंग्रेजी को राजभाषा घोषित किया।

4. सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए अंग्रेजी का ज्ञान रखने वाले अभ्यर्थियों को वरीयता दी जाने लगी।