वनस्थली विद्यापीठ के लक्ष्य एवं उद्देश्य, विशेषताएँ

वनस्थली विद्यापीठ (Vanasthali University)




 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में प्रचलित शिक्षा प्रणाली से असन्तुष्ट होकर कुछ नेताओं ने राष्ट्रीय शिक्षा की स्थापना के लिए राष्ट्रीय विद्यालयों का निर्माण प्रारम्भ किया वनस्थली विद्यापीठ इन्हीं में से एक है। राजस्थान में वनस्थली नामक एक ग्राम है। पं. हीरालाल शास्त्री ने अपनी पुत्री की अभिलाषा को ध्यान में रखते हुए अपने आश्रम जीवन कुटीर में एक शिक्षा कुटीर की स्थापना की। 1936 में इस शिक्ष कुटीर का नाम राजस्थान बालिका विद्यालय रखा गया और 1942 से वह वनस्थली विद्यापीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1983 ई. में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हो गया।

वनस्थली विद्यापीठ के लक्ष्य एवं उद्देश्य (Aims and Objectives of Vanasthali Vidyapeeth)- 

इस विद्यापीठ के निम्न लक्ष्य एवं उद्देश्य है

1. प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा आदशों के आधार पर बालिकाओं की आधुनिक शिक्षा प्रदान करके उनका चतुर्मुखी विकास करना।

2. बालिकाओं का शारीरिक, मानसिक तथा चारित्रिक विकास करना ।

3. विभिन्न प्रकार के गृहकार्यों की शिक्षा द्वारा बालिकाओं को स्वावलम्बी बनाना। 

4. बालिकाओं में सहयोग, समाजसेवा, नागरिकता, देशप्रेम की भावनाओं का समावेश करना।

5. बालिकाओं में स्त्री स्वातन्त्र की भावना का विकास करके उन्हें पर्दा-प्रथा आदि बन्धनों से मुक्त करना।

6. शिक्षा को बाह्य परीक्षाओं एवं बन्धनों से मुक्त करके बालिकाओं को स्वतन्त्र रूप से अपना सन्तुलित विकास करने का अवसर प्रदान करना।

7. पूर्व की आध्यात्मिक विरासत और पश्चिम की सफलताओं के समन्वय के लिए प्रयत्न करना।

वनस्थली विद्यापीठ के उद्देश्य को इन शब्दों में बताया गया है- "विद्यापीठ का उद्देश्य भारतीय संस्कृति की पृष्ठभूमि में विज्ञान और प्रदान के आधार पर व्यक्तित्व का सर्वतोन्मुखी शारीरिक, नैतिक, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक विकास करने वाली ऐसी सर्वांगीण शिक्षा की व्यवस्था करना है जिसके परिणामस्वरूप गतिशील जीवन के अनुरूप सुसंस्कृति, सुयोग्य और कार्य कुशल नागरिक का निर्माण किया जा सके। छात्राएँ सफल नागरिक तथा साथ-साथ सफल गृहिणी और माताएँ दोनों बन सकें इस उद्देश्य को लेकर वनस्थली विद्यापीठ आगे आया है।"

वनस्थली विद्यापीठ की विशेषताएँ (Features of Banasthali Vidyapeeth)-

1. शिक्षा सर्वागीण, स्वतन्त्र तथा प्रगतिशील है। 

2. भारतीय परम्पराओं के अनुसार मर्यादापालन, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता एवं सामाजिक उत्तरदायित्व का समन्वय किया गया है।

3. छात्राओं का जीवन सादा और सरल है। 

4. छात्राओं द्वारा सूत कातने का कार्य अनिवार्य रूप से किया जाता है।

5. छात्राओं तथा अध्यापकों के लिए खादी वस्त्र पहनना अनिवार्य।

6, छात्राओं को सामाजिक तथा सामुदायिक कार्य करना अनिवार्य है। 

7. छात्राएँ ऊँच-नीच का भेदभाव किये बिना छात्रावास में सामुदायिक जीवन व्यतीत करते हैं।

8. छात्रावास का प्रबन्ध सभी बालिकाओं के सहयोग से किया जाता है। 

9. बालिकाओं को सर्वतोन्मुखी शिक्षा देने के विचार से 'पंचमुखी शिक्षा' योजना लागू की गई है

जिसके अन्तर्गत-

(क) शारीरिक शिक्षा- इसका उद्देश्य छात्राओं को स्वस्थ, साहसी और निडर बनाता है। इस शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के शारीरिक व्यायामों और खेलों को स्थान दिया गया है। जैसे-सैनिक योग्यता, शारीरिक योग्यता, लाठी, तलवार, भाला और बल्लम चलाना, लेजिम डम्बल, जोड़ी, वॉलीबाल, रिंगवाल, साइकिल चलाना, घुड़सवारी करना आदि।

(ख) बौद्धिक शिक्षा- इस शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों का बौद्धिक, मानसिक एवं ज्ञानात्मक विकास करना है। विभिन्न विषयों का शिक्षण देते समय इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि छात्राओं का मानसिक विकास एकांगी तथा संकीर्ण न होकर, विशाल एवं व्यापक रूप में हो। इसके अतिरिक्त इस बात पर बल दिया जाता है कि बालिकाओं में स्वयं विचार करने की शक्ति का विकास हो, जीवन तथा संसार के प्रति उनका दृष्टिकोण पूर्ण एवं वैज्ञानिक हो, पुस्तकीय ज्ञान पर आवश्यकता से अधिक बल न दिया जाय और बालिकाओं का व्यक्तित्व पुस्तकों एवं परीक्षाओं से दब न जाय। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बालिकाओं को प्रारम्भ से ही समाजशास्त्र एवं विज्ञान की शिक्षा दी जाती है। भारतीय तथा विश्व इतिहास के शिक्षण पर विशेष बल दिया जाता है। 

(ग) प्रायोगिक शिक्षा- इस शिक्षा का उद्देश्य छात्राओं को गृहकार्य में दक्ष बनाना और उनमें शारीरिक श्रम के प्रति सम्मान उत्पन्न करना है। इस शिक्षा के अन्तर्गत निम्न कार्यों की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने पर बल दिया जाता है। अनाज छानना, साफ करना, भोजन बनाना, पापड़, बिस्कुट, मिठाई और मंगौड़ी बनाना, सीना कसीदा करना, चमड़े का पर्स बनाना, तेल, साबुन और वैसलीन बनाना, हाथ का कागज बनाना आदि।

(4) कला की शिक्षा- इस शिक्षा का उद्देश्य छात्राओं में रागात्मक वृत्ति का विकास करना और उनमें माधुर्य, सौन्दर्य एवं सुरुचि उत्पन्न करना है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए छात्राओं को विभिन्न कलाओं से अवगत कराया जाता है। जैसे-कक्षा 1 से कक्षा 5 तक की छात्राओं के लिए संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है। कक्षा 6 से उन्हें इन दोनों विषयों में से केवल एक का चयन करने का अधिकार है। संगीत के अन्तर्गत वाद्य एवं गायन दोनों की व्यवस्था है। बालिकाओं के लिए नृत्य सीखने का समुचित प्रबन्ध है।

(5) नैतिक शिक्षा- विद्यापीठ का प्रमुख उद्देश्य छात्राओं का चारित्रिक निर्माण करना है। अतः इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। इस शिक्षा का रूप व्यावहारिक है। व्याख्यानों तथा उपदेशों का चरित्र निर्माण के कार्य को वरीयता नहीं दी। इसके विपरीत सामूहिक प्रार्थना, साप्ताहिक विचार विनिमय, छात्र पंचायत, स्वच्छ वातावरण एवं सामूहिक जीवन द्वारा बालिकाओं के चरित्र का निर्माण करने का प्रयास किया जाता है।

बालिकाओं को शारीरिक शिक्षा प्रदान करके निडर तथा चुस्त बनाने का प्रयास किया जाता है।