दृश्य श्रव्य सामग्री अर्थ, परिभाषा, लाभ, महत्व, सिद्धांत
दृश्य श्रव्य सामग्री का अर्थ (meaning of audiovisual material or aids)
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दृश्य श्रव्य सामग्री वह सामग्री या साधन है जिसे हम आंखों से देख सकते हैं कानों से उसकी आवाज सुन सकते हैं वे प्रतिक्रियाएं जिनमें दृश्य तथा श्रव्य इंद्रियां सक्रिय होकर भाग लेती हैं दृश्य श्रव्य साधन या सामग्री कहलाती है
ऐसे उपकरणों जिनमें देखने एवं सुनने की व्यवस्था होती है इनसे हम ज्यादा सीख पाते हैं क्योंकि छात्र आंख एवं कान की सहायता से 85% सीखता है किसके अंतर्गत टेलीविजन, कंप्यूटर, टेली कॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो डिस्क आदि आते हैं
दृश्य श्रव्य सामग्री की परिभाषा (definition of audiovisual aids)
फ्रोबेल के अनुसार- हमारा पाठ अमूर्त से प्रारंभ होकर मूर्त पर समाप्त होता है
फ्रांसिस डब्ल्यू. नायल के अनुसार- अच्छा अनुदेशन शैक्षिक कार्यक्रम का आधार है दृश्य श्रव्य सहायक सामग्री उस आधार का एक हिस्सा है
झट के अनुसार- दृश्य श्रव्य सामग्री शिक्षक को पाठ की पूरी तरह से एवं प्रभावशाली तरीके से पढ़ाने में सहायता करती है
बर्नेट के अनुसार- दृश्य श्रव्य सामग्री में वे संवेदनशील चित्र या उद्देश्य हैं जो सीखने को प्रोत्साहित या उत्प्रेरित करते हैं
पिस्टन के अनुसार- उदाहरण केवल उद्धत करने की क्षमता नहीं रखता बल्कि ज्ञान को मजबूत करने की क्षमता भी रखता है अच्छे उदाहरण के द्वारा नितांत निष्क्रिय ज्ञान को भी जीवित कर दिया जाता है
दृश्य श्रव्य उपकरणों के प्रकार
दृश्य श्रव्य उपकरणों के तीन भेद किए जा सकते हैं
- श्रव्य उपकरण जैसे- रेडियो, ग्रामोफोन, टेप रिकॉर्डर
- दृश्य उपकरण जैसे- मॉडल, रेखाचित्र, श्यामपट्ट कार्य, चार्ट, संग्रहालय, ओवरहेड प्रोजेक्टर
- दृश्य-श्रव्य उपकरण जैसे- चलचित्र, टेलीविजन, वीडियो, कंप्यूटर आदि।
दृश्य श्रव्य सामग्री के लाभ (Benefits of audiovisual content)
- अनुभव की सीमा का विस्तार होता है
- अध्यापक में इनके प्रयोग से विविधता का गुण आ जाता है
- बालकों में निष्क्रियता नहीं रहती वह भाषा सीखने के लिए सक्रिय रहते हैं
- साहित्य में आए हुए काल्पनिक दृश्यों को स्थूल आकार मिल जाता है
- सार्थक शब्द भंडार में वृद्धि होती है सीखना स्थाई हो जाता है पाठ रोचक एवं आकर्षक बन जाता है
दृश्य श्रव्य सामग्री के चयन के सिद्धांत (Principles of selection of audiovisual material)
दृश्य श्रव्य सामग्री और कक्षा में इनका प्रयोग करते समय कुछ आवश्यक सिद्धांत निम्न है
- आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक के लिए जाने योग्य होनी चाहिए
- विद्यार्थी को सामग्री व विषय वस्तु का कुछ पूर्व ज्ञान होना चाहिए
- इनके प्रयोग करने से पहले योजना बना लेना चाहिए
- दृश्य श्रव्य उपकरण साधन है साध्य नहीं।
- शिक्षक को उपकरणों के संचालन एवं प्रयोग का सही तरीका आना चाहिए
- छोटी कक्षाओं में इनका प्रयोग अधिक उपयोगी सिद्ध होता है
- मंदबुद्धि बालकों के लिए अधिक उपयोगी है
- यह निश्चित कर लेना चाहिए कि इनके प्रयोग से शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में कोई बाधा ना पड़े
- बहुत अधिक सहायक सामग्री का एक साथ प्रयोग नहीं करना चाहिए
- अनावश्यक रूप से सहायक सामग्री लादना नहीं चाहिए
- सामग्री दिखाने के बाद उस पर प्रश्न अवश्य किए जाने चाहिए
- अधिक सहायक सामग्री के प्रयोग से छात्र ऊब जाते हैं
- पढ़ाते समय प्रसंग आने पर ही सहायक सामग्री को दिखाना चाहिए
- समय-समय पर प्रयुक्त सामग्री का मूल्यांकन कर लेना चाहिए
- उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए साधनों का प्रयोग करना चाहिए
- सहायक सामग्री स्पष्ट रूप से सामान्य आकार के शब्दों में नामांकित होनी चाहिए
- अत्यधिक सूचनापरक व प्रेरित करने वाली होनी चाहिए
- वह विद्यार्थियों को आकर्षित करने वाली होनी चाहिए
- विषय वस्तु का विकल्प होना चाहिए एवं वास्तविक वस्तु के अनुपात, रंग, एकरूपता आदि को प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए
- विषय वस्तु के अनुसार शिक्षण प्रक्रिया पाठ का अंग होनी चाहिए
- दृश्य श्रव्य सामग्री विद्यार्थियों की आयु अनुभव एवं मानसिक स्तर के अनुसार होनी चाहिए।
दृश्य श्रव्य उपकरणों के उपयोग के उद्देश्य (Purposes of the use of audiovisual equipment)
- गणित के शिक्षण को रोचक, आकर्षक एवं प्रभावशाली बनाना
- कक्षा शिक्षण के समय नीरस वातावरण दूर करने का प्रयास करना
- विषय वस्तु की ओर छात्रों का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करना
- छात्रों के भाषागत दोषों को दूर करने में सहयोग प्रदान करना
- ज्ञानार्जन में छात्रों को सहयोग देना
- छात्रों द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान को स्थाई बनाना
- छात्रों की रुचि गणित के प्रति उत्पन्न करना
दृश्य श्रव्य सामग्री का महत्व (Importance of audiovisual material)
- इससे सूचना व अमूर्त वस्तुओं को भी समझाया जा सकता है तथा विचार वस्तु का भी प्रतिरूप बनाकर उसके प्रत्येक पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है
- इससे शिक्षकों में आत्मविश्वास तथा निरीक्षण में कुशलता आती है
- इससे विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है
- विद्यार्थियों की अधिक संख्या होने पर भी अनुशासन की समस्या नहीं रहती क्योंकि छात्र का ध्यान सहायक सामग्री में ही केंद्रित रहता है
- यह विद्यार्थियों को ज्ञानेंद्रियों का सर्वाधिक प्रयोग करने के अवसर देती है
- यह विद्यार्थियों के मन और ध्यान को शिक्षण की ओर केंद्रित करने का प्रयास करती है
- यह विषय वस्तु की जटिलता को कम कर सरल बनाती है
- यह कक्षा कक्ष को जीवंत बनाने में सहायक होती है
- यह समय बचाती है तथा इसमें अधिगम सुधा दीर्घकालीन होता है
- कक्षा अंतः क्रिया को बढ़ाने में सहायक होती है
- यह विद्यार्थियों के लिए उत्तम उत्प्रेरक का कार्य करती है
- यह शिक्षक के मौखिक अनुदेशन को कम कर, विद्यार्थियों को ऊबने से रोकती है तथा शिक्षण में रुचि जागृत करती है
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