मुस्लिम कालीन शिक्षा
मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा (Medieval Muslim Education)
मध्यकालीन शिक्षा के अंतर्गत हम मुस्लिम शिक्षा का वर्णन करेंगे हिंदू शिक्षक की रूपरेखा में बहुत कम परिवर्तन इस देश में मुसलमानों के राज से पहले हुआ मध्यकाल में भी उसका पूरा वही रूप वही रहा। अंतर दो बातों में विशेष रूप से हुआ―
- समाज का संगठन रूढ़ियुक्त एवं परंपरावादी हो गया और शिक्षा में संकीर्णता आ गई
- शिक्षा केवल उच्च वर्णों एवं उनके लिए रह गई जो संपन्न थे जन शिक्षा का महत्व लगभग नहीं के बराबर रह गया किंतु इसके उद्देश्य तथा पद्धति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया।
हिंदुओं की भांति ही मुसलमान भी विद्या का आदर करते थे वह विद्वान का आदर करना और विद्या का प्रसार करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे
मुस्लिम शिक्षा का रूप भी निजी था राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं थी मस्जिदों में मौलवियों द्वारा शिक्षा प्रदान की जाती थी आसपास के धनी मुसलमान धन या स्थान देकर सहायता करते थे दो प्रकार के विद्यालय प्रचलित थे― 1.मकतब तथा 2.मदरसा
मकतब में कुरान शरीफ के उन भागों को जुबानी याद कराया जाता था जो एक धार्मिक मुसलमान को अपने जीवन की इबादत के लिए अवश्य थे। मदरसे जो उच्च शिक्षा प्रदान करते थे उनमें अरबी तथा फारसी की शिक्षा दी जाती थी कुरान शरीफ का पढ़ना और पाठन करना भी आवश्यक रूप से शामिल किया जाता था
हिंदुओं की भांति ही बालक की शिक्षा एक संस्कार से प्रारंभ होती थी जिसे बिस्मिल्लाह संस्कार कहते थे
मकतब में पढ़ने और रखने पर जोर दिया जाता था आवश्यक नहीं है कि मकतब में जो बालक रख रहा है उसका अर्थ भी समझे। मदरसे में व्याकरण, तर्कशास्त्र, वाक्य शास्त्र, साहित्य, धर्म, कानून और चिकित्सा शास्त्र का अध्ययन होता था।
मदरसे में विद्यार्थी मौलवियों के पास रहते थे और इस प्रकार अध्यापक शिक्षक संपर्क बहुत पास का था। शिक्षकों से आशा की जाती थी कि वह विद्यार्थी को ना केवल विभिन्न विषय सिखाएंगे वरन उनके आध्यात्मिक विकास की ओर भी ध्यान देंगे मदरसे के साथ मस्जिद के पांचों समय की नमाज में विद्यार्थी का शामिल होना आवश्यक था मदरसे को बादशाह या अन्य अमीरों के अनुदान मिलता था विद्यार्थियों को वजीफे दिए जाते थे
अनेक मुस्लिम बादशाहों के राज में शिक्षा को बहुत प्रोत्साहन मिला कुतुबुद्दीन, रजिया बेगम, बलबन इत्यादि ने बहुत से मकतब और मदरसों को स्थापित किया फिरोज तुगलक शिक्षा के लिए काफी अनुदान देता था।
मुगल काल में अकबर का नाम विशेष रूप से शिक्षा के प्रोत्साहन के संबंध में किया जाता है अकबर विद्वानों की इज्जत करता था वह बहस में स्वयं भी भाग लेता था।
मुस्लिम काल में स्त्रियों की शिक्षा घर की चार दीवारों के भीतर ही होती थी कुरान शरीफ का पढ़ना उन्हें सिखाया जाता था अच्छे घराने की महिलाएं बहुत सी अन्य उपयोगी विद्यायें भी सीख लेती थी
इस्लाम वास्तव में एक धर्म से अधिक है यह एक जीवन व्यतीत करने की दिशा है और जीवन की रूपरेखा है यह एक सामाजिक सांस्कृतिक दर्शन है और अपने अनुयायियों को नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा देता है मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य अच्छे और नैतिक मानवों का निर्माण करना है जो खुद की वंदना सही अर्थों में करें तथा अपने सांसारिक जीवन को इस्लाम धर्म की हिदायतें के अनुरूप बनाएं।
मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य एवं आदर्श (Objectives and Ideals of Muslim Education)
मुस्लिम शिक्षा के उद्देश्य और आदर्श निम्नलिखित है
1.इस्लामिक संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार― भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना होने पर उन्होंने भारत में इस्लाम संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार करना शक्ति से आरंभ कर दिया यद्यपि मुसलमान भारत में अपनी संस्कृति लेकर आए थे उनकी अपनी भाषा थी अपने रीति रिवाज थे अपने रहन-सहन की विधियां थी और उन्हीं में उनकी आस्था थी उन्होंने यहां इस्लाम शिक्षा पर बल दिया मकतब और मदरसा में बच्चों को अनिवार्य रूप से फारसी पढ़ाई जाती थी शरिअत (इस्लामी धर्म एवं कानून) का ज्ञान कराया जाता था और इस्लामी तहजीब सिखाई जाती थी।
2.ज्ञान का विकास एवं प्रसार― इस्लाम धर्म के प्रतिपादक हजरत मोहम्मद साहब ज्ञान को अमृत मानते थे मुस्लिम शिक्षा का प्रथम उद्देश्य इस्लाम धर्म के अनुयायियों में ज्ञान का प्रसार था और यह कहते थे कि ज्ञान ही मुक्ति का साधन है ज्ञान के प्रकाश से आलोकित होकर ही व्यक्ति धर्म और अधर्म में अंतर कर सकता है मोहम्मद साहब ने अपने उपदेश में कहा था- "दान में धन देने की अपेक्षा बच्चों को शिक्षा देना कहीं अधिक अच्छा है छात्रों के कलम की स्याही शहीदों के खून से भी अधिक पवित्र है"।
3.नैतिक एवं चारित्रिक विकास मुस्लिम― शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य व्यक्तियों में इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार विशिष्ट नैतिकता का समावेश था इस्लामी शिक्षा में नैतिकता पर अधिक बल दिया जाता था क्योंकि इस्लाम धर्म का उद्देश्य एक विशेष प्रकार की नैतिकता का विकास करना था मुस्लिम शिक्षा का एक उद्देश्य चरित्र का निर्माण करना भी था इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोहम्मद साहब ने एक सुधारक का कार्य किया और मानव के सुधार के लिए कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएँ भी दी हैं इसीलिए शिक्षा को व्यक्ति के नैतिक और भौतिक उन्नति का साधन माना है और उनकी दृष्टि में चरित्र निर्माण के बल पर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है।
4.शासन के प्रति वफादारी― मुसलमान बादशाह भारत के लिए विदेशी थे इसीलिए वे शिक्षा द्वारा भारतीयों को शासन के प्रति वफादार बनाना चाहते थे यह मुस्लिम शिक्षा का एक बड़ा उद्देश्य एवं आदर्श था यही कारण है कि उन्होंने अरबी और फारसी भाषा जानने वाले और इस्लामी तहजीब को अपनाने वाले हिंदुओं को ही शासन में उच्च पद दिए।
5. कला कौशल एवं व्यवसाय की शिक्षा― जिस समय मुसलमान बादशाह इस देश में आए यहां कला-कौशल के क्षेत्र में बड़ा विकास हो चुका था वह भी अपने साथ अनेक कला कौशल को लेकर आए थे प्रायः सभी मुसलमान बादशाह कला और शिल्प प्रेमी थे इसीलिए इन्होंने इनकी शिक्षा पर विशेष बल दिया इस शिक्षा के परिणाम स्वरूप ही कला कौशल के क्षेत्र में बहुत अधिक उन्नति हुई साथ ही विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा की व्यवस्था भी की गई थी।
6.राजनीतिक उद्देश्य― इस्लामिक शिक्षा का राजनीतिक उद्देश्य भी था मुस्लिम शासकों को हमेशा इस बात का भय बना रहता था कि कहीं हिंदू जनता उनका विरोध ना करें अतः उनके लिए ऐसी राजनीतिक अवस्था उत्पन्न करना आवश्यक हो गया था जिसके द्वारा उनका शासन स्थापित स्थाई रूप से चल सके मुगल सम्राट अकबर का शिक्षा संबंधी यही दृष्टिकोण था।
7.मुस्लिम श्रेष्ठता की स्थापना― मुस्लिम शिक्षा का अंतिम उद्देश्य हिंदू सभ्यता एवं संस्कृति को प्रभावित करके भारत में मुस्लिम श्रेष्ठता को सुदृढ़ आधार पर स्थापित करना था मुस्लिम शासक यह भली-भांति जानते थे कि शिक्षा ही वह साधन है जिसके द्वारा हिंदुओं के विचारों एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन करके उन्हें भारत में मुस्लिम शासक का स्थिर स्तंभ बनाया जा सकता है अतः शिक्षा के माध्यम से हिंदुओं के मस्तिष्क में मुस्लिम आदर्शों एवं सिद्धांतों को सिखाने के लिए उपयोग किया गया।
हिंदू शिक्षा प्रणाली और मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में समानताएं (Similarities between Hindu education system and Muslim education system)
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा के धार्मिक एवं नैतिक विकास के उद्देश्य की प्राप्ति पर सबसे अधिक बल दिया जाता था
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा केवल दो स्तरों में विभाजित थी प्रारंभिक और उच्च शिक्षा।
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में मुख्य रूप से शिक्षण की मौखिक विधियों का प्रयोग किया जाता था और रटने पर बल दिया जाता था
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षा राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण से मुक्त थी
- दोनों शिक्षा प्रणाली में उच्च शिक्षा केंद्रों पर विशिष्टीकरण की व्यवस्था थीं, भिन्न-भिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के लिए भिन्न-भिन्न विशिष्ट संस्थाएं थी
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में शिक्षण हेतु नायक विधि का प्रयोग किया जाता था
- दोनों शिक्षा प्रणाली में शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करते थे
- दोनों शिक्षा प्रणाली में स्त्री शिक्षा की व्यवस्था के लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए
- दोनों शिक्षा प्रणाली में कला कौशल और व्यवसायों की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था थी
- दोनों शिक्षा प्रणालियों में चिकित्सा विज्ञान की उच्च शिक्षा की उत्तम व्यवस्था थी।
हिंदू शिक्षा प्रणाली और मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में असमानताएं (Inequalities between Hindu education system and Muslim education system)
- वैदिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य वैदिक धर्म और संस्कृति का प्रचार था और मुस्लिम शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म और मुस्लिम संस्कृति का प्रचार था
- वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था घरों में और उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुल में होती थी, परंतु मध्यकाल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था मकतब और उच्च शिक्षा की व्यवस्था मदरसों में होती थी।
- प्राचीनकाल में शिक्षण की तर्क विधि को अधिक महत्व दिया जाता था, मध्यकाल में भाषण विधि को अधिक महत्व दिया जाता था
- वैदिक शिक्षा में संस्कृत भाषा और वैदिक साहित्य अनिवार्य थे और मुस्लिम शिक्षा में अरबी और फारसी भाषाएं और इस्लाम साहित्य अनिवार्य थे
- वैदिक काल में शिक्षा का माध्यम प्राकृत और संस्कृत भाषा थी और मध्यकालीन में अरबी और फारसी भाषा का प्रयोग किया जाता था
- प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में यूनानी चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी
- प्राचीन काल में शिक्षक शिक्षार्थियों के बीच पिता-पुत्र तुल्य संबंध थे, मध्यकाल में शिक्षक शिक्षार्थियों के बीच संबंधों में अपनत्व की कमी दिखाई देती थी
- प्राचीन काल की अपेक्षा मध्य काल में स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अधिक प्रयास हुआ
- वैदिक शिक्षा प्रणाली में सभी राजकुमारों और क्षत्रियों को सैनिक शिक्षा दी जाती थी, मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में सैनिक शिक्षा की व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक उत्तम थी
- प्राचीन काल की अपेक्षा मध्यकाल में कला-कौशलों की शिक्षा का बहुत अच्छा प्रबंध था।
मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली के गुण अथवा विशेषताएँ (Properties of Medieval Muslim Education System)
मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली के गुण निम्न है
1.शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त― लोकतांत्रिक शासन में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का उत्तरदायित्व माना जाता है भारत में इस कार्य की शुरुआत मध्यकालीन मुसलमान बादशाहों ने ही कर दी थी उन्होंने इस देश में अनेक मकतब, मदरसों और पुस्तकालयों का निर्माण कराया और उन्हें खुले हाथों से आर्थिक सहायता दी उन्होंने उच्च कोटि के मदरसों के साथ बड़ी-बड़ी जागीर भी लगा दी थी उन्होंने मदरसों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति में भी सहयोग दिया था इस प्रकार मध्यकालीन शिक्षा को राज्य का संरक्षण प्राप्त हुआ
2.निशुल्क शिक्षा― मध्यकाल में मुस्लिम शिक्षा प्रणाली के मकतब, मदरसों में किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था इतना ही नहीं मदरसों में छात्रावासों में रहने वाले छात्रों के लिए आवास और भोजन भी निशुल्क दिया जाता था यह सब व्यय अमीर तथा राजा महाराजा उठाया करते थे कुछ संस्थाओं को आर्थिक व्यवस्था सामाजिक समितियों द्वारा की जाती थी
3.व्यवहारिकता― शिक्षक केवल शिक्षा के लिए ना होकर जीवन के लिए थी इस काल में शिक्षा का उद्देश्य भावी जीवन को सुखी तथा समृद्ध बनाना था पाठ्यक्रम में जीवन उपयोगी विषयों को पढ़ाया जाता था किस तरह उस काल की शिक्षा व्यवहारिक थी
4.कला कौशल एवं व्यवसायियों की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था― प्रायः सभी मुसलमान बादशाह कला प्रेमी हुए कौशल प्रेमी हुए और तरक्की पसंद थे यही कारण है कि मदरसों में कला, कौशल और व्यवसायियों की शिक्षा की उत्तम व्यवस्था कराई गई आज की शिक्षा वयवसाय परक बनाने पर बल दिया जाता है
5.ज्ञान के विकास पर बल― मोहम्मद साहब ज्ञान को अमृत मानते थे यही कारण है कि मध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में इस्लाम धर्म एवं संस्कृति के विकास के साथ-साथ ज्ञान के विकास पर बल दिया गया
6.साहित्य रचना को प्रोत्साहन― मुस्लिम बादशाहों ने अपने काल में साहित्य रचना को बहुत प्रोत्साहन दिया उन्होंने साहित्य रचना की प्रवृत्ति वाले छात्रों को सम्मान दिया उनकी आर्थिक सहायता की इस कारण मुस्लिम काल में इतिहास तथा साहित्य का विकास हुआ
7.उच्च शिक्षा की उत्तम व्यवस्था― मध्यकाल में मुस्लिम बादशाहो ने भिन्न-भिन्न प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए भिन्न-भिन्न मदरसों का निर्माण करवाया और उसमें उच्च कोटि के पुस्तकालयों और योग्य शिक्षकों की व्यवस्था कराई इस कारण इस काल में उच्च शिक्षा की उत्तम व्यवस्था हुई उस समय शासन के उच्च पदों पर उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को ही नियुक्ति दी जाती थी परिणाम स्वरूप उच्च शिक्षा का विकास हुआ।
मध्यकालीन शिक्षा के दोष (Demerits of medieval education)
मध्यकालीन शिक्षा के दोष निम्नलिखित है
1.आर्थिक सहायता में पक्षपात― यह बात सत्य है कि मध्यकाल में मुस्लिम बादशाहों ने शिक्षा के विकास में विशेष रुचि ली और उन्होंने अनेक मकतब और मदरसों का निर्माण कराया यह बात भी सत्य है कि उन्होंने कई शिक्षण संस्थाओं को पूरी-पूरी आर्थिक सहायता दी परंतु दूसरी ओर यह बात भी सच है कि मुगल सम्राट अकबर को छोड़कर अन्य किसी भी मुस्लिम बादशाह ने हिंदू शिक्षण संस्थाओं को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं दी
2.तत्कालिक भारतीय शिक्षा पर प्रभाव― मध्यकाल में केवल इस्लाम धर्म एवं संस्कृति की शिक्षा की व्यवस्था की गई तत्कालीन ब्राह्मणीय शिक्षण संस्थाओं को सहयोग देना तो दूर उन्हें नष्ट करने का प्रयत्न किया इस देश के प्रथम मुस्लिम बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने गद्दी पर बैठते ही अपने सेनापति बख्तियार खिलजी द्वारा यहां के विश्वविख्यात बौद्ध विश्वविद्यालय नालंदा और विक्रमशिला को नष्ट करवा दिया
3.शिक्षा का मूल्य उद्देश्य इस्लाम― धर्म और संस्कृति का प्रचार मध्यकाल में लगभग सभी मुस्लिम शासकों ने इस्लाम धर्म और संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार पर बहुत अधिक बल दिया परिणाम स्वरूप चाहे मकतब हो या मदरसे सभी में इस्लाम धर्म और संस्कृति की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जाती थी यही मुस्लिम शिक्षा का यह उद्देश्य संकीर्णता को प्रदर्शित करता है
4.जन भाषा की उपेक्षा― मध्यकाल में बहुसंख्यक हिंदू समाज की भाषा प्राकृत तथा अपभ्रंश थी फारसी और अरबी तो बाहर से आने वाले मुसलमानों की भाषा थी परंतु जन भाषा को शिक्षा का माध्यम ना बनाकर फारसी को भाषा का माध्यम बनाया गया इस कारण क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचार नहीं हो सका
5.कठोर दंड व्यवस्था― इस काल में विद्यार्थियों को कठोर दंड देने की व्यवस्था थी बालको को को छोटे-छोटे अपराधों पर कड़े दंड दिए जाते थे कठोर शारीरिक दंड की व्यवस्था होने से बालक पढ़ाई से भयभीत रहते थे तथा शिक्षा के प्रति उनमें अरुचि का भाव उत्पन्न हो जाता था
6.रटने पर अधिक बल― मध्यकाल में मकतबा में प्रारंभ से ही कुरान शरीफ की आयतें हटाई जाती थी गिनती और पहाड़ा रटाये जाते थे इस्लामी शिक्षाएं और कानून रटाये जाते थे बच्चों की आधे से अधिक शक्ति इस सब को रटने में ही व्यय हो जाती थी यह उस समय की मुस्लिम शिक्षा प्रणाली का बहुत बड़ा दोष था आज रखने पर नहीं समझने पर बल दिया जाना आवश्यक है।
7.स्त्री शिक्षा की अवहेलना― मुस्लिम काल में पर्दा प्रथा का जोर था जिससे लड़कियां तथा महिलाएं घरों के बाहर नहीं निकल सकती थी तथा लड़कों के महत्त्व तथा मदरसों में लड़कियों को पढ़ने का कोई अधिकार नहीं था केवल मध्यम वर्ग तथा राजघराने की लड़कियों की पढ़ाई घर पर ही हुआ करती थी जिससे स्त्री शिक्षा को बहुत क्षति पहुंची।
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