प्रयोजनवाद का अर्थ परिभाषा, सिद्धांत, उद्देश्य

 प्रयोजनवाद का अर्थ (Meaning of Pragmatism)


prayojanavaad ka arth paribhaasha siddhaant uddeshy


प्रयोजनवाद अंग्रेजी भाषा के pragmatism का हिंदी रूपांतरण है इसकी उत्त्पति ग्रीक भाषा के pragmatikos से मानी जाती है pragmatikos शब्द pragma, pramatos से निकला है जिसका अर्थ है A thing done किया गया कार्य



Pragmatism की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द pragmaticus से भी मानी जाती है जिसका अर्थ है व्यवहारिकता
वर्तमान युग की दार्शनिक विचारधाराओं में प्रयोजनवादी विचारधारा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है यह विचारधारा एक और आदर्शवाद का विरोध करती है तो दूसरी ओर प्रकृतिवाद का इस विचारधारा में व्यवहारिक तत्वों को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है और सत्य की कसौटी पर कसकर ही किसी तत्व को स्वीकार किया जाता है व्यवहारिक परिणाम को ही सब कुछ माना जाता है वास्तव में यह अनिवार्य रूप से एक मानवतावादी दर्शन है और इसके अनुसार मनुष्य अपनी क्रिया के बीच में अपने मूल्यों का निर्धारण करता है






प्रयोजनवाद की परिभाषा (Definition of Pragmatism)


रॉस के अनुसार– प्रयोजनवाद निश्चित रूप से एक मानवतावादी दर्शन है जो यह मानता है कि मनुष्य क्रिया में भाग लेकर अपने मूल्यों का निर्माण करता है और यह मानता है कि वास्तविकता सदैव निर्माण की अवस्था में रहती है

विलियम जेम्स के अनुसार– प्रयोजनवाद मस्तिष्क का स्वभाव और दृष्टिकोण है यह सत्य और विचारों की प्रकृति का भी सिद्धांत है अंतिम रूप से या वास्तविकता का ही सिद्धांत है

जेम्स वी. पेट के अनुसार– प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धांत, सत्य का सिद्धांत, ज्ञान का सिद्धांत और वास्तविकता का सिद्धांत देता है

रस्क– प्रयोजनवाद एक प्रकार से नवीन आदर्शवाद के विकास की अवस्था है जो ऐसा आदर्शवाद है जो वास्तविक के प्रति  पूर्ण न्याय करेगा व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का मूल्य कराएगा और इसके परिणाम स्वरूप जिस संस्कृति का निर्माण होगा उसमें निपुणता का प्रमुख स्थान होगा न कि उसकी उपेक्षा होगी

प्रयोजनवाद के आधारभूत सिद्धांत (Basic Principles of Pragmatism)



  1. प्रथाओ और परंपराओं का विरोध एवं लचीलापन पर विश्वास 
  2. मानव स्वयं अपने मूल्यों का निर्माण करता है 
  3. जेम्स के अनुसार सत्य की कसौटी उसकी उपयोगिता में है न कि आकाशीय आदर्शवाद है 
  4. प्रयोजनवाद विज्ञान और विचार को क्रिया का अनुगामी मानते हैं 
  5. मानव अपने वर्तमान भविष्य का स्वयं सर्जक है 
  6. सत्य का आधार दर्शन अथवा तक नहीं बल्कि जीवन गत अनुभव है 
  7. प्रवोजनवादी परिवर्तन पर जोर देते हैं 
  8. प्रवोजनवादी बहवाद का समर्थन करते हैं जगत में तत्व एक नहीं बल्कि अनेक है 
  9. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसीलिए उसे सामाजिक कुशलता का गुण प्राप्त करना चाहिए 
  10. किसी भी सिद्धांत की सच्ची कसौटी उसकी उपयोगिता है प्रयोजनवाद प्रकृति वादी सिद्धांतों और आदर्शवादी निष्कर्षों का योग है 
  11. मानव प्रयासों का आध्यात्मिक महत्व है 
  12. जो सिद्धांत कार्य करते हैं वह सत्य है






प्रयोजनवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Pragmatism and aims of Education)


प्रयोजनवादियों ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताएं हैं 

  1. नवीन मूल्यों की रचना करना 
  2. छात्र का विकास करना 
  3. गतिशील एवं लचीले मस्तिष्क का विकास करना 
  4. इच्छाओं को पूर्ण करना 
  5. प्रयोजनवादियों का कहना है कि मनुष्य को सदैव क्रियाशील रहकर बराबर उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ते जाना है 
  6. जॉन डीवी ने सामाजिक कुशलता का विकास करना शिक्षा का उद्देश्य है उनका कहना है कि जिस व्यक्ति में जितनी ही सामाजिक कुशलता होगी वह उतना ही सामाजिक उन्नति कर  सकता है 
  7. प्रयोजनवादी पूर्व निर्धारित शक्तियों, मूल्यों, अवधारणाओं को मानने के लिए तैयार नहीं है इसीलिए वे पूर्व निश्चित उद्देश्यों का विरोध करते हैं

प्रयोजनवाद एवं पाठ्यक्रम (Pragmatism and Curriculum)


प्रयोजनवादियो ने पाठ्यक्रम निर्माण के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं 

1.उपयोगिता का सिद्धांत (Principle of Utility)– पाठ्यक्रम के निर्धारण के लिए प्रयोजनवादियो ने उपयोगिता का सिद्धांत प्रस्तुत किया है इस सिद्धांत के अनुसार पाठ्यक्रम में उन विषयों का समावेश होना चाहिए जो बालक के वर्तमान एवं भावी जीवन के लिए उपयोगी हो 

2.रुचि का सिद्धांत (Principle of Interest)– पाठ्यक्रम के विषयों के निर्धारण के लिए बालकों के स्वभाव व रुचि का भी ध्यान रखना चाहिए भिन्न-भिन्न स्तरों पर बालों को की रुचियां एवं प्रवृत्तियां भिन्न-भिन्न होती हैं अतः विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न विषयों की शिक्षा देनी चाहिए 

3.अनुभव का सिद्धांत (Principle of Experiences)– इस सिद्धांत के अनुसार शिक्षा के पाठ्यक्रम के अनुसार सीधा संबंध बालक के अनुभवों, भावी व्यवसाय एवं क्रियाओं से होना चाहिए इसका कारण यह है कि जैसे ही या संबंध स्थाई हो जाता है बालक अपनी इच्छा द्वारा सीखने हेतु प्रेरित होता है 

4.क्रिया का सिद्धांत (Principle of Activity)– पाठ्यक्रम में बालक की क्रियाओं पर आधारित होना चाहिए इसीलिए पाठ्यक्रम में स्वतंत्र, अर्थपूर्ण, उद्देश्यपूर्ण और सामाजिक कार्यों का भी स्थान होना चाहिए 

5.एकीकरण का सिद्धांत (Principle of Integration)– प्रयोजनवादी पाठ्यक्रम में विषयों के परंपरागत विभाजन की निंदा करते हैं प्रयोजनवाद बुद्धि की समग्रता और ज्ञान की अखंडता में विश्वास करते हैं अतः उनका कहना है कि वास्तविक ज्ञान अखंड होना चाहिए छात्र को अलग-अलग पढ़ाने के बजाय क्रिया संबंधी समस्त ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।






प्रयोजनवाद और शिक्षण विधियां (Pragmatism and Methods of teaching)


  1. समस्या समाधान विधि 
  2. योजना पद्धति 
  3. सीखने की प्रक्रिया में एकीकरण का सिद्धांत 
  4. सीखने की उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया का सिद्धांत 
  5. अनुभव से सीखना या करके सीखना।

प्रयोजनवाद के गुण (Merits Of Pragmatism)


  1. इन्होंने शिक्षा दर्शन को नई बातें दी हैं नवीन शिक्षा, प्रगतिशील शिक्षा, क्रियाप्रधान पाठ्यक्रम, संगठित इकाई आदि 
  2. प्रयोजनवादियों का उपयोगिता वादी दृष्टिकोण सराहनीय है 
  3. विद्यालय को नया स्वरूप प्रदान किया इस प्रकार विद्यालय समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है 
  4. इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अनुशासन की बिल्कुल नहीं व्याख्या प्रस्तुत की है 
  5. जिन्होंने शिक्षा को जो योगदान दिया है उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती इसकी सबसे महत्वपूर्ण दिन प्रोजेक्ट विधि है 
  6. प्रयोजनवाद ने शिक्षा के सहयोग से बालक को व्यवहारिक जीवन के लिए तैयार करना उसके व्यक्तित्व के विकास की सही शिक्षा समझी 
  7. प्रयोजनवाद ने शिक्षा को वर्तमान परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुकूल नया रूप प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है 
  8. यह बाल केंद्रित शिक्षा है बालक का व्यक्तित्व, उसकी आवश्यकताएं, उसके अनुभव शिक्षा प्रक्रिया की विषय वस्तु है 
  9. प्रयोजनवाद विचार की बजाय क्रिया को अधिक महत्व देते हैं 
  10. यह सामाजिक और जनतंत्र शिक्षा है क्योंकि यह स्वतंत्रता, समानता आदि गुणों का विकास करती है 






प्रयोजनवाद के दोष ( Demerits of Pragmatism)


  1. प्रयोजनवादी विचारधारा अतीत की पूर्ण उपेक्षा करती है तथा वर्तमान एवं भविष्य को महत्वपूर्ण समझती है किंतु जैसा कि हम सब जानते हैं कि अतीत का ज्ञान प्राप्त किए बिना वर्तमान को समझना कठिन है 
  2. प्रयोजनवाद इस सत्य को परिवर्तनशील मानते हैं जो सर्वथा अनुचित है सत्य परिवर्तनशील नहीं है 
  3. प्रयोजनवाद में क्रिया पर विशेष आग्रह है और बौद्धिकता का विरोध किया गया है ज्ञान को क्रिया के माध्यम द्वारा प्रत्यक्ष प्रणाली से देने पर आग्रह किया गया है किंतु बौद्धिक सूचनाएं भी आवश्यक होती हैं सभी विषयों को प्रत्यक्ष एवं क्रिया द्वारा संप्रेषित करना संभव नहीं है 
  4. यह वाद शिक्षण की प्रयोजना विधि को श्रेष्ठ मानता है किंतु प्रयोजना विधि से सभी विषयों का शिक्षण संभव नहीं है 
  5. प्रयोजनवाद में बालक को अनुभव का केंद्र माना गया है जिसका अर्थ है– वह केवल सामाजिक है उसका कोई आध्यात्मिक पक्ष नहीं है यह विचार भ्रामक है 
  6. प्रयोजनवाद के अनुसार यह जगत व उसकी वस्तुएं परिवर्तनशील है अतः शिक्षा के उद्देश्य भी निर्माण अवस्था में है कोई पूर्व निश्चित उद्देश्य नहीं है इस रूप में यह वाद शिक्षा को ही निरुद्देश्य बना देता है 
  7. प्रयोजनवाद किसी भी रूप पूर्व निश्चित आदर्शों अथवा मूल्यों को नहीं मानता और आध्यात्मिक जगत की उपेक्षा करता है इसका अर्थ यह है कि उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने मूल्यों का सृजन करता है जो अपने साथ ही समाप्त हो जाते हैं यह इस वाद की बहुत बड़ी कमी है।