स्वामी विवेकानंद शिक्षा, उद्देश्य, पाठ्यक्रम

 स्वामी विवेकानंद जीवन परिचय (Swami Vivekanand Life-History)




स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन कोलकाता नगर में हुआ था इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कोलकाता के प्रसिद्ध वकील थे सन्यास ग्रहण करने के पूर्व का नाम 'नरेंद्र' था वे क्षत्रिय थे 17 वर्ष की अवस्था में जब वे बी.ए. के छात्र थे स्वामी रामकृष्ण के संपर्क में आए पहले तो वह स्वामी रामकृष्ण परमहंस की विचारधारा का विरोध करते रहे किंतु शीघ्र ही वे इतने प्रभावित हुए कि उनके भक्त बन गए गुरु की मृत्यु के पश्चात 1886 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और भ्रमण करके उनकी विचारधारा का देश विदेश में प्रचार करने लगे अपने गुरु की शिक्षा के प्रचार करने लगे
अपने गुरु की शिक्षा के प्रचार क्रम में स्वामीजी ने यूरोप, इंग्लैंड, पेरिस का भ्रमण किया और 4 जुलाई 1902 को नश्वर शरीर त्यागकर हमेशा के लिए भारतीय जनमानस में अविस्मरणीय हो गए स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई








शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)


स्वामी विवेकानंद के अनुसार― "शिक्षा का अर्थ मनुष्य में नींद शक्तियों का पूर्ण विकास है न कि मात्र सूचनाओं का संग्रह" उनके अनुसार― "यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाओं से होता तो पुस्तकालय संसार के सर्वश्रेष्ठ संत होते तथा विश्वकोश ऋषि बन जाते" शिक्षा मनुष्य में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है उनके मध्य में शिक्षा वह नहीं है जो दिमाग में ठूँस-ठूँसा कर भर्ती जाए ऐसी शिक्षा केवल जानकारी का ढेर एक मात्र है सच्ची शिक्षा तो मानव  निर्माण की शिक्षा है

शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)


  1. शारीरिक विकास करना 
  2. चरित्र की विकास करना 
  3. पूर्णत्व को प्राप्त करना 
  4. धार्मिक विकास 
  5. राष्ट्रीयता का विकास 
  6. विभिन्नता में एकता की खोज करना 
  7. आत्मविश्वास श्रद्धा एवं आत्म त्याग की भावना का विकास करना 
  8. सांसारिक सुखों के त्याग की भावना का विकास करना 
  9. समाज सेवा और विश्व बंधुता की भावना का विकास करना 
  10. व्यवसायिक विकास करना




पाठ्यक्रम (Curriculum)


स्वामी जी जब पाठ्यक्रम की बात करते हैं तो वह मानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा विभिन्न विषयों के ज्ञान के द्वारा ही वह अपने को परिष्कृत करता है उनकी मान्यता थी कि पाठ्यक्रम निर्माण का आधार धर्म व मूल्यों का होना चाहिए क्योंकि वह मनुष्य को पूर्ण मानव बनाने का सहयोग देते हैं परंतु पाठ्यक्रम में लैंगिक विषयों को भी सम्मिलित करना चाहिए इन आधारों पर उन्होंने पाठ्यक्रम को दो श्रेणी में विभाजित किया है 

  1. लैंगिक पाठ्यक्रम 
  2. आध्यात्मिक पाठ्यक्रम 

1.लैंगिक पाठ्यक्रम―


  • भाषा― संस्कृत, मातृभाषा, प्रादेशिक भाषा, अंग्रेजी को सम्मिलित किया 
  • विज्ञान 
  • गृह विज्ञान 
  • उद्योग कौशल 
  • कृषि व व्यवसायों की शिक्षा 
  • भूगोल 
  • राजनीति 
  • खेलकूद व व्यवसाय 
  • मनोविज्ञान 
  • तकनीकी शास्त्र 
  • कला, संगीत, अभिनय व चित्रण 
  • इतिहास 
  • गणित 
  • अर्थशास्त्र 
  • राष्ट्रसेवा।

2.आध्यात्मिक पाठ्यक्रम― 


  • धर्म एवं दर्शन 
  • पुराण 
  • गीत व भजन 
  • उपदेश श्रावण 
  • कीर्तन 
  • साधु संगति।




शिक्षण विधि (Teaching method)


  1. वाद-विवाद 
  2. तर्क 
  3. व्याख्या द्वारा 
  4. चित्तवर्त्तियों के निरोध के लिए योग विधि का प्रयोग 
  5. शिक्षक के गुणों एवं आदर्शों के अनुकरण हेतु अनुकरण विधि का प्रयोग 
  6. मन को एकाग्र करने हेतु केंद्रीयकरण विधि का प्रयोग 
  7. व्यक्तिगत निर्देशन व परामर्श द्वारा शिक्षण कार्य संपन्न किया जाना चाहिए 
  8. प्रयोग प्रदर्शन द्वारा तथ्यों का ज्ञान देने अथवा स्वयं प्रयोग करके तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रयोग विधि का प्रयोग।